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  • बीकानेर

    बीकानेर

    देवी कुण्ड

बीकानेर

रेगिस्तान जहाज़ की भूमि

रेगिस्तानी जहाज़’ यानी ऊँट। दुनियाँ का सबसे बड़ा ऊँट अनुसंधान और प्रजनन केन्द्र बीकानेर में है। बीकानेर की स्थापना सन् 1488 ई. में, राठौड़ राजकुमार राव बीकाजी ने की थी। कहा जाता है कि जोधपुर महाराजा राव जोधा जी के पाँच पुत्रों मे से एक बीकाजी, अपने पिता से किसी बात पर नाराज़ हो गए और उन्होंने जोधपुर छोड़ दिया। काफी दूर यात्रा करने के बाद वह एक जंगल में आए, जिसका नाम जांगलदेश था। यहीं पर उन्होंने रहने का फैसला किया और अपना राज्य यहीं स्थापित किया। इसे उन्होंने एक शानदार शहर के रूप में निर्मित करवाया। बीकानेर के सम्पन्न क़िले व महल अपने लाल रंग के कारण, सबसे अलग नज़र आते हैं और आज भी शान से खड़े हैं। बीकानेर (जूनागढ़ क़िले) में सुरक्षित रखा ’द्विपंखी विमान’ का एक दुर्लभ मॉडल आज भी अपने आप में अजूबा है। इसे ब्रिटिश सेना ने, प्रथम विश्वयुद्ध में काम में लिया था तथा अंग्रेजों ने इसे तत्कालीन महाराजा गंगा सिंह जी को तोहफे में दे दिया था। बीकानेर का एक और आकर्षण हैं - यहाँ फैले रेत के टीले, जो मुख्यतया उत्तर पूर्व से दक्षिणी इलाक़े तक नज़र आते हैं।

बीकानेर में खोजने और देखने योग्य आकर्षक स्थल

बीकानेर आएं और अद्भुत और विविध दर्शनीय स्थलों का आनंद लें। देखें, राजस्थान में बहुत कुछ अनूठा देखने को मिलता है।

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  • जूनागढ़ किला

    जूनागढ़ किला

    इस क़िले को कभी कोई शत्रु नहीं जीत पाया। सन् 1588 ई. में सम्राट अकबर के सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित जनरल, राजा रायसिंह द्वारा बनाया गया यह क़िला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसमें बने लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर के शानदार महल, प्रांगण, बालकनियाँ, छतरीनुमा मंडप तथा खिड़कियाँ, अपनी अदभुत कला को दर्शाती हैं।

  • राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र

    राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र

    एशिया का अपनी तरह का एकमात्र केन्द्र, जहाँ ऊँटों का रख रखाव उन पर अनुसंधान और प्रजनन सम्बन्धित कार्य सम्पन्न होते हैं।शहर से 8 कि.मी. दूर यह केन्द्र 2000 एकड़ से अधिक भूमि पर बना है तथा इसका संचालन भारत सरकार द्वारा किया जाता है।

  • लालगढ़ पैलेस और म्यूज़ियम

    लालगढ़ पैलेस और म्यूज़ियम

    महाराजा गंगासिंह ने 1902 ई. में, इस भव्य राजमहल का निर्माण, अपने स्वर्गीय पिता महाराजा लाल सिंह की स्मृति में करवाया था। इसके वास्तुशिल्प की रूपरेखा की अवधारणा, एक अंग्रेज वास्तुविद् ’सर स्विंटन जैकब’ द्वारा की गई थी। यह महल पूरी तरह से लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया है तथा राजपुताना, इस्लामी तथा यूरोपीय वास्तुकला के मिश्रण से इसे मूर्तरूप प्रदान किया गया। वर्तमान में इस पैलेस को हैरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। कुछ हिस्सा, बीकानेर के राज परिवार के निवास के रूप में है। इसी पैलेस के एक हिस्से में श्री सादुल म्युज़ियम है।

  • रामपुरिया हवेली

    रामपुरिया हवेली

    रामपुरिया यहाँ का सुसमृद्ध और बहुत ही नामी परिवार था। इस हवेली को देखने वालों की आँखें विस्मय से खुली रह जाती हैं। लाल पत्थर से बने, एक से एक खूबसूरत कंगूरे, नक़्काशीदार और पतले-पतले मजबूत खम्भे, खिड़कियाँ, मेहराबदार दरवाज़े, कंगूरेदार जालियाँ, दीवानख़ाना व तहख़ाने अद्भुत हैं। झरोखों की सजावट में इस्तेमाल फूल-पत्ते व सुनहरी कारीगरी से सजावट, दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर देती हैं। इस हवेली में वर्तमान में होटल भँवर निवास का संचालन रामपुरिया परिवार द्वारा किया जा रहा है।

  • गंगा संग्रहालय (राजकीय)

    गंगा संग्रहालय (राजकीय)

    पूरे राजस्थान में सर्वाधिक सुरक्षित व लाजवाब संग्रहालय के रूप में वर्णित है। इस समृद्ध संग्रहालय में हड़प्पा तथा प्राचीन गुप्तकाल की पुरातात्विक कलाकृतियों का संग्रह, चित्रकला, शिल्पकला , बुने हुए क़ालीन, मिट्टी के बर्तन, प्राचीन सिक्के और शाही हथियार, सबको अलग अलग विभाजित करके रखा गया है और कक्षों में सजाया गया है।

  • लक्ष्मी निवास महल

    लक्ष्मी निवास महल

    ब्रिटिश वास्तुकार सर सैमुएल स्विंटन जैकब द्वारा संरचित, तथा 1898 और 1902 ई. के बीच निर्मित, यह महल बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी का निवास था। वर्तमान में यह हैरिटेज होटल के रूप में सुसज्जित व संचालित है।

  • प्राचीन संग्रहालय

    प्राचीन संग्रहालय

    जूनागढ़ के भव्य क़िले के इस संग्रहालय में शाही परिधान व शाही साज़-ओ-सामान, जिसमें कारीगरी की पारंपरिक शैली प्रदर्शित की गई हैं। शाही परिवारों के चित्र, पूर्व शासकों की अमर सांस्कृतिक विरासत और बदलते परिवेश के अंतर को इस संग्रहालय में दर्शाया गया है।

  • देशनोक  - करणी माता मंदिर

    देशनोक - करणी माता मंदिर

    दुनियां भर में चूहों के लिए अपनी पहचान बनाने वाला मंदिर, बीकानेर से 30 कि.मी. की दूरी पर, देशनोक गाँव में है। यह पर्यटकों में ’टैम्पल ऑफ़ रैट्स’ के नाम से मश्हूर है। यहाँ लगभग 25,000 काले चूहे हैं, जिन्हें ’कबा’ कहते हैं। इनकी पवित्रता इस बात से उजागर होती है कि यदि किसी के पाँव से कोई चूहा दब कर मर जाए तो उसे चाँदी का चूहा बनवा कर, करणी माता के चरणों में चढ़ाना पड़ता है। एक किंवदंती के अनुसार करणी माता के सौतेले बेटे लक्ष्मण की एक तालाब में डूबने से मृत्यु हो गई। करणी माता ने यमराज से उन्हें जीवित करने के लिए प्रार्थना की। यमराज ने मना कर दिया फिर इस शर्त पर मान गए कि उस दिन के बाद से लक्ष्मण तथा करणी माता के सभी वंशज , चूहे के रूप में जिन्दा रहेंगे। हजारों चूहों को पवित्र मानकर, मन्दिर में भक्त लोग लड्डू व दूध की बड़ी परातें चढ़ाते हैं, जिन्हें चूहे खाते व पीते हैं। चूहों का खाया हुआ प्रसाद बड़ा सत्कार माना जाता है। गर्भगृह में करणी माता की मूर्ति स्थापित है। करणी माता मंदिर का द्वार सफेद संगमरमर से बनी एक सुन्दर संरचना है। दूर-दूर से पर्यटक इस मन्दिर को देखने आते है। नए दूल्हा-दुल्हन यहाँ माता का आशीर्वाद लेने आते हैं।

  • जैन मन्दिर भांडाशाह

    जैन मन्दिर भांडाशाह

    जैन धर्म के 5वें तीर्थंकर सुमतिनाथ जी को समर्पित यह मन्दिर 15वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसमें काँच का सुन्दर जड़ाऊ काम, भित्ति चित्र तथा सोने के पत्रों से बने चित्र दर्शनीय है। देष के सभी भागों से यहाँ भक्तगण दर्शनार्थ आते हैं।

  • कोडमदेसर मंदिर

    कोडमदेसर मंदिर

    राव बीकाजी द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। जोधपुर से आने के तीन वर्ष बाद ही राव बीकाजी ने, कोडमदेसर भैंरू जी की स्थापना यहाँ पर की तथा पूजा अर्चना की। प्रारम्भ में यह स्थान बीकानेर की नींव रखने के लिए चुना गया था, लेकिन बाद में विचार बदल दिया गया।

  • श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर

    श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर

    भगवान लक्ष्मीनाथ यानी विष्णु भगवान को, बीकानेर के शासकों ने अपना कुल देवता माना तथा स्वयं को उनके दीवान या मंत्रियों के रूप में माना। संगमरमर और लाल पत्थर से बने इस मंदिर का निर्माण, भगवान लक्ष्मीनाथ के देवालय के रूप में किया गया।

  • शिवबाड़ी मंदिर

    शिवबाड़ी मंदिर

    इस मंदिर में काले संगमरमर की बनी, चौमुखी शिव भगवान की प्रतिमा तथा शिवलिंगम के सामने कांस्य की नंदी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में पानी के दो बड़े जलाशय भी हैं, जिन्हें बावड़ी के रूप में जाना जाता है। बीकानेर से 6 कि.मी. दूर, ऊँची दीवारों के बीच, यह शिव मंदिर है, जिसे शिवबाड़ी नाम से जाना जाता है। 19वीं शताब्दी में महाराजा डूंगरसिंह ने अपने पिता महाराजा लाल सिंह के सम्मान में, इस मंदिर का निर्माण कराया था।

  • गजनेर पैलेस और झील

    गजनेर पैलेस और झील

    गजनेर थार का अतुलनीय गहना है. १ ७ ८ ४ में बीकानेर के महाराजा गज सिंह जी ने गजनेर पैलेस की स्थापना की थी, और तब झील के किनारे बीकानेर के महान महाराज गंगा सिंह ने इसे पूरा किया। यह शाही परिवार के साथ ही अतिथियों के लिए शिकारगाह और आरामगाह था। अब यह एक होटल में परिवर्तित हो गया है।

  • गजनेर वन्यजीव अभ्यारण्य

    गजनेर वन्यजीव अभ्यारण्य

    बीकानेर से केवल ३२ किलोमीटर दूर जैसलमेर रोड पर स्थित एक हरे भरे जंगल में नीलगाय, चिंकारा, काली हिरन, जंगली सूअर, मुर्ग पक्षी ,भेड़-बकरियों के झुंड और प्रवासी पक्षियों की कई अन्य प्रजातियां हैं, जो यहाँ अपना शीतकालीन घर और विशाल वन बनाते हैं।

  • देवी कुण्ड

    देवी कुण्ड

    शाही घराने का शमशान है यह देवीकुण्ड। इसमें उत्कृष्ट छतरियाँ हैं। प्रत्येक छतरी को बीकाजी वंश के एक शासक को समर्पित किया गया है। यह मण्डप उस स्थान पर स्थित है जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया था। महाराजा सूरत सिंह की छतरी उस युग की वास्तुकला का एक उत्तम नमूना है। देवी कुण्ड में महाराजा गज सिंह जी से पहले शाही परिवार की 22 महिला सदस्यों के स्मारक हैं, जिन्होंने सती के रूप में अपना बलिदान देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राज्य की एक मात्र सता (पुरूष सती) की भी एक छतरी यहाँ है। महाराजा सूरत सिंह की छतरी पूरी तरह सफेद संगमरमर से बनी तथा राजपूत पेंटिग्स से चित्रित की गई है।

  • राजस्थान राज्य अभिलेखागार

    राजस्थान राज्य अभिलेखागार

    शिक्षाविद एवम् शोधकर्ताओं का यहाँ जमावड़ा रहता है। यहाँ संरक्षित प्राचीन प्रशासनिक रिकॉर्ड, जो कि मुग़लकाल के समय के भी हैं, जिनमें अरबी, फारसी के फरमान, निशान और हस्तलिखित ग्रन्थ भी शामिल हैं, इस अभिलेखागार में संरक्षित व सुरक्षित रखे हैं। राजस्थान की लगभग सभी रियासतों के शासनकाल के दौरान किए गए कार्यों व जारी किए आदेशों के रिकॉर्ड भी यहाँ मिल सकते हैं। बीकानेर का यह अभिलेखागार अत्यन्त असाधारण तथा महत्वपूर्ण है।

  • कोलायत

    कोलायत

    हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान, जहाँ हर साल दूर दूर से श्रृद्धालु, मंदिर में दर्शन को आते हैं। कोलायत एक पवित्र झील है, जो बीकानेर से करीब 50 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ का इतिहास सांख्य योग के प्रणेता कपिल मुनि की कहानी सुनाता है, जो इस जगह के शांतिपूर्ण वातावरण से इतने अभिभूत हो गए थे कि उन्होंने अपनी उत्तर पश्चिम की यात्रा को बीच में रोक दिया और संसार के चक्र से मुक्ति पाने के लिए, यहीं तपस्या करने लगे। यहाँ स्थित मंदिर, घाट और पवित्र झील भक्तों को आमंत्रित करते हैं। यहाँ के बाज़ार, पर्यटकों को पसन्द आते हैं।

  • कतरियासर गाँव

    कतरियासर गाँव

    जयपुर रोड पर, इस गाँव का ग्रामीण और सांस्कृतिक जीवन बड़ा समृद्ध है। कतरियासर में बालू रेत के टीले और उन पर ढलती शाम के सूरज की रोशनी देख कर लगता है, पूरी धरती पर सोना बिखरा पड़ा है। यहाँ पर्यटक भारी संख्या में आते हैं तथा रेत के धोरों पर ’जसनाथ जी का अग्निनृत्य’ देख कर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहाँ पर रेगिस्तानी लोमड़ी, ख़रगोश, चिंकारा, मोर, तीतर, बटेर और चकोर के झुंड दिखाई देते हैं। बीकानेर से 45 कि.मी. की दूरी पर, कतरियासर एक साफ सुथरा और समृद्ध गाँव है। यहाँ खाने पीने के कई ढाबे व रेस्टोरेन्ट भी खुल गए हैं।

बीकानेर के उत्सव और मेलों में मौजूद परम्पराओं का आनन्द लीजिए। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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  • कोलायत मेला

    कोलायत मेला

    हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा (नवम्बर) में कोलायत में ’कोलायत मेला’, जिसे ’कपिल मुनि मेला’ भी कहते हैं, आयोजित किया जाता है। धार्मिक महत्व और मनोरंजन की दृष्टि से, धूमधाम से मनाया जाने वाला यह मेला, बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है। पर्यटक भी राजस्थान की संस्कृति को नज़दीक से देख पाते हैं। कोलायत झील में भक्तों को ठंडे पानी की झील में डुबकी लगाते हुए देखा जा सकता है। अपने पापों को धो कर शुद्धिकरण हेतु भारी संख्या में लोग यहाँ आते हैं।

  • बीकानेर ऊँट उत्सव

    बीकानेर ऊँट उत्सव

    हर वर्ष जनवरी के महीने में बीकानेर शहर और यहाँ के रेत के धोरे, पर्यटकों की आवक से ओतप्रोत हो जाते हैं। बीकानेर उत्सव को ऊँट उत्सव भी कहते हैं। इस समारोह में पर्यटन विभाग द्वारा पर्यटकों के रहने, खाने, घूमने तथा मनोरंजन के लिए विशेष प्रबन्ध किए जाते हैं। मेले की गहमागहमी और लोककलाकारों की हलचल, सूने रेगिस्तान में रंग भर देती है। समारोह में ऊँट नृत्य, ऊँट कलाबाजी, ऊँट को सजाने की प्रतियोगिता, ऊँटनी का दूध निकालने और ऊँट के डिजायनदार बाल काटने की प्रतियोगिता को देख कर, विदेशी पर्यटक ठगे से रह जाते हैं। स्थानीय हस्तकलाओं और खान पान का मजा लेने और खरीददारी करने का यह अच्छा अवसर होता है। कच्छी घोड़ी, चरी नृत्य, घूमर करते लोक कलाकार, नर्तक व नृत्यांगनाएं और रंग बिरंगे घेरदार, घुमावदार घाघरे पहने, कलाकार नज़र आते हैं। ऐसे कलाकारों को देखकर विदेशियों के कैमरे नहीं थमते।

बीकानेर में गतिविधयाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतिक्षा कर रहे हैं - राजस्थान में करने के लिए हमेशा कुछ निराला होता है।

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  • ख़रीदारी

    ख़रीदारी

    बीकानेर के रसगुल्ले और भुजिया (नमकीन सेव) खाने और ले जाने के लिए तो जैसे होड़ लगी होती है। बीकानेर की मोजड़ी, रंग बिरंगे बांधनी के दुपट्टे, साड़ियाँ, स्कार्फ, प्लास्टिक का स्पेशल लाल और सफेद रंग का चूड़ा, दुल्हन का विशेष प्रकार का चूड़ा, कुंदन के काम की ज्वैलरी, लाख की चूड़ियाँ और सबसे उत्तम क्वालिटी के ऊँट के चमड़े से बनी वस्तुएं, बीकानेर की सौग़ात हैं।

  • गजनेर का अभ्यारण्य

    गजनेर का अभ्यारण्य

    मात्र 32 कि.मी. की दूरी पर ’गजनेर वन्यजीव अभ्यारण्य’ है, जहाँ जंगली सूअर, लोमड़ी, गीदड़, सियार आदि बहुतायत में देखे जा सकते हैं। गजनेर में अभ्यारण्य के अलावा, लाल पत्थर से बना, बेहद खूबसूरत गजनेर पैलेस है। इसके खिड़की दरवाजों में रंगीन काँच का काम, सूरज की छनती रोशनी से, महल को सतरंगा बना देता है। पानी में महल की परछाईं देखकर, शाम के धुंधलके और संगीत की स्वर लहरियों के बीच, पर्यटक यहाँ से वापस ही नहीं जाना चाहते।

यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon निकटतम हवाई अड्डा नाल, बीकानेर है जो कि 12 कि.मी. की दूरी पर है।
  • Car Icon राजस्थान के अलावा, अहमदाबाद, आगरा व दिल्ली के लिए भी बसें उपलब्ध हैं।
  • Train Icon देष के लगभग सभी बड़े षहरों लिए रेल सुविधा उपलब्ध है।

आइए, बीकानेर की सतरंगी दुनिया में चलें

चलिए यात्रा की तैयारी कीजिए।

बीकानेर के समीप दर्षनीय स्थल

  • जैसलमेर

    331 कि.मी.

  • जयपुर

    350 कि.मी.

  • अजमेर

    259 कि.मी.