शाहपुरा
भीलवाड़ा से 55 कि.मी. दूर शाहपुरा कस्बा है। यह चार दरवाजे
वाली दीवार से घिरा, राम स्नेही संप्रदाय के अनुयायियों के लिए सन् 1804
में स्थापित तीर्थस्थान है। इस पंथ का एक पवित्र मंदिर है जिसे रामद्वारा
कहा जाता है, इस रामद्वारा के मुख्य पुजारी ही इस पंथ-सम्प्रदाय के
मुखिया है। पूरे वर्ष देशभर से तीर्थयात्री इस मंदिर की यात्रा करने आते
हैं। यहाँ पांच दिन के लिए फूल डोल मेला के रूप में जाना जाने वाला
वार्षिक मेला फाल्गुन शुक्ला (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है।
शाहपुरा के उत्तरी भाग में एक विशाल महल परिसर है, जो छज्जों, मीनारों और छतरियों द्वारा सुशोभित है। इसके ऊपरी भाग से रमणीय झील और शहर के सुंदर दृश्य को देखा जा सकता है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह, जोरावर सिंह और प्रताप सिंह बारहठ शाहपुरा के थे। त्रिमूर्ति स्मारक, बारहठ जी की हवेली, जो अब राजकीय संग्रहालय में परिवर्तित कर दी गई है। और पिवनीया तालाब यहाँ के अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण हैं। शाहपुरा पारंपरिक फड़ चित्रकला के लिए भी जाना जाता है।