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  • जोधपुर

    जोधपुर

    पारम्परिक और आधुनिक वैभव का अभूतपूर्व संगम

जोधपुर

पारम्परिक और आधुनिक वैभव का अभूतपूर्व संगम

जोधपुर थार मरूस्थल का प्रवेश द्वार है। एक नजर शहर पर डालें तो सभी मकान हल्के नीले रंग के दिखाई देते हैं, जैसे आसमान उतर आया है जमीन पर। लाल रंग के पत्थरों का समृद्ध किला और उसके पास मोती सा चमकता जसवन्त थड़ा। किले, महल, मंदिर, हवेलियाँ और बहुत सारे पर्यटन स्थल, जोधपुर को पर्यटकों में लोकप्रिय बनाते हैं। ’ब्लू सिटी’ के नाम से लोकप्रिय ‘जोधपुर’ राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यहाँ अधिकांश स्थापत्य - महलों, मंदिरों, हवेली और यहां तक कि घरों को भी नीले रंग से रंगा गया है। वर्ष भर सूर्य यहाँ अपनी विशेष दमक दिखाता है। अतः जोधपुर को ’सूर्य नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है। मेहरानगढ़ का विशाल भव्य किला इस शहर को एक अलग ही पहचान देता है जो एक पहाड़ी चट्टान पर आठ द्वारों के साथ विद्यमान है। किले के बाहर नया नगर है। इसीलिए जोधपुर में पारंपरिक और आधुनिकता का एक सुंदर सम्मिश्रण नजर आता है। जोधपुर केवल यहीं पाए जाने वाले मारवाड़ी या मालानी घोड़ों की दुर्लभ नस्ल के लिए भी जाना जाता है। इस समृद्ध शहर का सम्पूर्ण इतिहास राठौड़ वंश के इर्द-गिर्द घूमता है। राठौड़ प्रमुख राव जोधा ने 1459 ईस्वी में जोधपुर का निर्माण किया। शहर की प्राचीन राजधानी, मण्डोर के स्थान पर जोधपुर को बनाये जाने के भी उल्लेख मिलते हैं। जोधपुर और आस पास के इलाकों के लोगों को आज भी ’मारवाड़ी’ के नाम से जाना जाता है। जोधपुर के प्रमुख आकर्षण और दर्शनीय स्थल - आइए, जोधपुर के आकर्षक स्थलों की सैर करें। राजस्थान में बहुत कुछ नया-निराला है, देखने के लिए।

जोधपुर में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

आइए, जोधपुर के आकर्षक स्थलों की सैर करें। राजस्थान में बहुत कुछ नया-निराला है, देखने के लिए।

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  • मेहरानगढ़ किला

    मेहरानगढ़ किला

    आज इस किले की तारीफ पूरी दुनियां में की जाती है। इसका संरक्षण, समृद्धि, मजबूती और रख रखाव अतुलनीय है। जोधपुर के क्षितिज पर शोभायमान 125 मीटर ऊँची सीधी पहाड़ी पर अभेद्य मेहरानगढ़ किला है। यह ऐतिहासिक किला भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय किलों में से एक हैं। यह इतिहास और किंवदंतियों में सदा जीवित रहा है। मेहरानगढ का किला आज भी जयपुर की सेनाओं द्वारा इसके दूसरे द्वार पर किये गए तोप गोले के हमले की गवाही देता है। किला अपने उत्तम मेहराबदार झरोखों, नक़्काशीदार पट्टिकाओं, सजावटयुक्त द्वारों और मोती महल, फूल महल और शीश महल की चित्रित दीवारों के लिए जाना जाता है। राजस्थान में आने वाले सभी देशी-विदेशी पर्यटक जब इस किले को देखते हैं तो सिर इतना ऊँचा करना पड़ता है कि उनकी टोपी गिर जाती है। इसका ऐतिहासिक, पारम्परिक, आधुनिक और लोकप्रिय वैभव, पर्यटकों को अभिभूत कर देता है।

  • खेजरला किला

    खेजरला किला

    मुख्य शहर से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, 400 वर्ष पुराना खेजरला किला ग्रामीण अंचल में स्थित है। वर्तमान में होटल में परिवर्तित, सुर्ख लाल बलुआ पत्थर का यह स्मारक, राजपूत स्थापत्य कला का एक अच्छा उदाहरण है। किले की प्राकृतिक सुन्दरता, कटावदार मेहराब और नक़्काशीदार झरोखे पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करते हैं।

  • उम्मेद भवन महल

    उम्मेद भवन महल

    यह बीसवीं सदी का महल, एकमात्र ऐसा महल है जो बाढ़ राहत परियोजना के अन्तर्गत निर्मित किया गया था। इस महल की शान को बरकरार रखने का श्रेय पूर्व महाराजा को जाता है। इसका रख रखाव, इसकी सज्जा, इसके हरे-भरे बगीचे और रात के समय, इस पर की जाने वाली रौश्नी, महल में चार चाँद लगा देती है। वर्ष 1929 में महाराजा उम्मेद सिंह ने उम्मेद भवन महल अकाल राहत योजना के अन्तर्गत बनवाया था। छीतर पहाड़ी पर प्रस्तरों से महल का निर्माण किया गया, अतः यह महल ’छीतर महल’ भी कहलाता है। यह महल हेनरी वॉघन लैन्चेस्टर नामक एक प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार द्वारा डिजाईन किया गया था जिसे पूरा करने में 16 वर्ष लगे थे। बलुआ पत्थर और संगमरमर के साथ निर्मित, महल की स्थापना कला ’इंडो सरसेनिक क्लासिकल रिवाइवल’ और पश्चिमी आर्ट डेको शैली की मिश्रित संरचना हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े निजी निवास स्थानों में से एक माना जाता है, जो डेको शैली में निर्मित है और सबसे बेजोड़ भवनों में से एक है। यहाँ ये भी उल्लेखनीय है कि यह 20वीं सदी में निर्मित एक मात्र महल है। इस महल को कुछ वर्ष पहले, हैरिटेज होटल्स ग्रुप के द्वारा होटल में परिवर्तित कर दिया गया था। राजस्थान में आने वाला समृद्ध पर्यटक, जोधपुर आने पर इसी होटल में ठहरना पसन्द करता है।

  • मोती महल

    मोती महल

    मोती महल एक सभा मंडप था जहां शाही परिवार अपनी प्रजा के साथ रूबरू होते थे। इस हॉल की विशेषता इसकी कांच की खिड़कियाँ और पांच कोने हैं, जिनसे रानियाँ श्रृंगार चौकी से ही जोधपुर राजकाज को देख सकती थीं।

  • शीश महल

    शीश महल

    मेहरानगढ़ किले में स्थित जोधपुर का शीश महल, शानदार कांच और दर्पण से सजी दीवारों वाला स्थापत्य है। जिसकी छतों, फर्श के किनारे और दीवारों पर सुंदर अलंकरण है। यहाँ दीवारों पर धार्मिक आकृतियां अंकित हैं। चाक मिट्टी में चमकते रंगों से धार्मिक आकृतियों को शीशे के काम से उकेरा गया है।

  • फूल महल

    फूल महल

    फूल महल पुष्प के समान अलंकरण युक्त महल है। यह सुंदर कक्ष महाराज के मनोरंजन के लिए उपयोग में लिया जाता था। महल की सजावट के लिए स्वर्ण के अलंकरण का प्रयोग किया गया जो अहमदाबाद, गुजरात से मंगवाया गया था।

  • चामुंडा माताजी मंदिर

    चामुंडा माताजी मंदिर

    देवी चामुंडा माताजी राव जोधा की आराध्य देवी थीं और इसलिए उनकी प्रतिमा मेहरानगढ़ किले में प्रतिष्ठित की गई। अतः किले में पूजा का स्थान बन गया और वहां एक मंदिर बन गया। तब से स्थानीय लोग चांमुडा माता की पूजा की परम्परा निभाते आ रहे हैं। देवी आज भी शाही परिवार की ’कुल देवी’ हैं।

  • रानीसर-पद्मसर

    रानीसर-पद्मसर

    रानीसर और पद्मसर, मेहरानगढ़ में फतेह पोल के पास 1459 में बनाई गई दो कृत्रिम झीलें हैं। रानीसर झील, राव जोधा की पत्नी रानी जसमदे हाड़ी के आदेश पर बनवाई गई थी, जबकि पùसर झील को राव गंगा की रानी एवं मेवाड़ के राणा सांगा की पुत्री पùिनी द्वारा बनवाया गया था।

  • जोधपुर राजकीय संग्रहालय

    जोधपुर राजकीय संग्रहालय

    उम्मेद बाग के मध्य में बने जोधपुर राजकीय संग्रहालय में शस्त्रागार, शाही वस्त्र आभूषण, स्थानीय कला और शिल्प, लघु चित्रकारी, शासकों के चित्र, पांडुलिपियां और जैन तीर्थंकरों की छवियों सहित प्राचीन अवशेषों का एक समृद्ध संग्रह है। वन्यजीव प्रेमी इसके समीप स्थित चिड़ियाघर भी देख सकते हैं।

  • जसवंत थड़ा

    जसवंत थड़ा

    19वीं शताब्दी के अंत में निर्मित श्वेत संगमरमर का आकर्षक स्मारक, नायक जसवंत सिंह को समर्पित है। जोधपुर पर शासन करने वाले जसवंत सिंह ने अपने राज में अनेक निर्माण और विकास किए। उन्होंने अपराध को कम करने, डकैती निर्मूलन, रेल सेवा निर्माण और मारवाड़ की अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण के लिए अनेक ठोस कदम उठाये।

  • घंटाघर

    घंटाघर

    जोधपुर शहर के बीच में स्थित घंटाघर का निर्माण जोधपुर के महाराजा श्री सरदार सिंह जी (1880-1911) ने करवाया था। यहां के सबसे व्यस्त सदर बाज़ार में स्थित यह घंटाघर अद्भुत व ऐतिहासिक है। सदर बाजार देशी व विदेशी पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है। यहां राजस्थानी वस्त्र, स्थानीय छपाई के कपड़े, मिट्टी की मूर्तियां व बर्तन, खिलौने, पीतल, लकड़ी व संगमरमर के बने ऊँट-हाथी और मार्बल-इन-ले में बना सजावटी सामान प्रचुर मात्रा तथा उचित दामों पर मिलता है। उत्तम श्रेणी के चांदी के जड़ाऊ गहने खरीदने के लिए भी यह उपयुक्त स्थान है।

  • महामंदिर मंदिर

    महामंदिर मंदिर

    महामंदिर, जिसका शाब्दिक अर्थ महान मंदिर है, एक पवित्र स्थान है जहाँ सर्वत्र शांति व्याप्त है। ये मंदिर मंडोर मार्ग पर स्थित है और अनूठे वास्तुशिल्प का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह 84 खंभों पर टिका है और दीवारों पर योग के विभिन्न पदों को दर्शाते विस्तृत रेखांकन और आंकड़ों के साथ शोभायमान है।

  • मंडलेश्वर महादेव

    मंडलेश्वर महादेव

    923 ई. में मंडलेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण श्री मंडलनाथ ने किया था। यह शहर में सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। मंदिर की दीवारों में भगवान शिव और देवी पार्वती के असीम सुंदर चित्र हैं।

  • सरदार समंद झील और महल

    सरदार समंद झील और महल

    महाराजा उम्मेद सिंह के शाही परिवार के सदस्यों के मनोरंजन के लिए सरदार समंद झील के किनारे पर बोट हाउस, स्विमिंग पूल, टैनिस तथा स्कवॉश के कोर्ट (मैदान) और पैदल-पथ बनवाए थे। पर्यटकों के देखने व घूमने तथा मनोरंजन के लिए यहाँ बहुत कुछ है। वर्ष 1933 में महाराजा उम्मेद सिंह ने सरदार समंद झील के तटों पर एक शानदार शिकारगाह बनवाया जो एक महल है। यह शाही परिवार का पसंदीदा आश्रम स्थल है, जहां उनकी अनेक ऐतिहासिक वस्तुओं का संग्रह है। जिसमें अफ्रीकी ट्राफियां और प्राचीन प्राकृतिक चित्रों का विशाल संग्रह है। झील में अनेक प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के प्रवास सैलानियों को आकर्षित करते हैं। जैसे हरा कबूतर, हिमालय क्षेत्र का गिद्ध और चितकबरी बड़ी बतख़, जिससे यह क्षेत्र पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान प्रतीत होता है।

  • मसूरिया हिल्स

    मसूरिया हिल्स

    राजस्थान के तीन सबसे सुंदर और प्रसिद्ध उद्यानों में से एक मसूरिया हिल्स जोधपुर के मध्य में मसूरिया पहाड़ी के ऊपर स्थित है। स्थानीय देवता बाबा रामदेव को समर्पित प्राचीन मंदिर होने के कारण यह स्थल भक्तों में अति लोकप्रिय है। यहाँ एक होटल है जहां से शहर की मनोरम छवि को निहारा जा सकता है।

  • शास्त्री सर्कल

    शास्त्री सर्कल

    शहर के मध्य में स्थित शास्त्री सर्किल नाम का एक चौराहा है। दिन के समय बेहद व्यस्त यह चौराहा रात को दमकती रोशनी और भव्य फव्वारे की मनोहारी छवि से बेहद आकर्षक प्रतीत होता है। यह स्थल स्थानीय लोगों के साथ साथ पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।

  • मण्डोर

    मण्डोर

    इस स्थान का प्राचीन नाम माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करता था। एक किंवदंती के अनुसार, रावण का ससुराल हुआ करता था। यहाँ सदियों से होली के दूसरे दिन रावण का मेला लगता है। मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मण्डोर जोधपुर के उत्तर में स्थित है। इस क्षेत्र का अपना ऐतिहासिक महत्व है। यहां जोधपुर के पूर्व शासकों के स्मारक एवं छतरियां हैं। राजस्थान स्थापत्य कला से बनी परम्परागत छतरियों की अपेक्षा ये हिन्दू मंदिरों की संरचना पर आधारित है।

  • कायलाना झील

    कायलाना झील

    जैसलमेर रोड पर छोटी कृत्रिम झील कायलाना झील, एक सुंदर पिकनिक स्थल है। कैनवास के चित्र जैसी दिखती इस झील की रमणीयता अविस्मरणीय है। आर.टी.डी.सी. के माध्यम से झील में विहार हेतु नौकायन सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

  • माछिया सफारी उद्यान

    माछिया सफारी उद्यान

    जैसलमेर मार्ग पर कायलाना झील से लगभग 1 किलोमीटर दूर माछिया सफारी उद्यान स्थित है। यह एक पक्षीविहार है। यहां हिरण, रेगिस्तान की लोमड़ियां, विशाल छिपकली, नीलगाय, ख़रगोश, जंगली बिल्लियां, लंगूर, बंदरों जैसे कई पशु पाये जाते हैं। उद्यान सूर्यास्त के दृश्य के लिए भी सुविख्यात है।

  • सोमनाथ मंदिर

    सोमनाथ मंदिर

    पाली शहर के मध्य में स्थित सोमनाथ मंदिर अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और प्रतिमाओं के लिए विख्यात है। यह 1920 में गुजरात के राजा कुमारपाल सोलंकी द्वारा बनाया गया था। यह कई छोटे-छोटे मंदिरों में विराजे-देवी देवताओं का घर है।

  • बालसमंद झील

    बालसमंद झील

    जोधपुर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर मंडोर रोड पर बालसमंद झील स्थित है। इसका निर्माण 1159 ईस्वी में मंडोर के एक जलस्त्रोत हेतु किया गया था। बाद में बालसमंद झील के किनारे पर एक ग्रीष्म महल निर्मित किया गया। यह हरे-भरे बागानों से घिरा हुआ है। यहां आम, पपीता, अनार, अमरूद और पलाष जैसे पेड़ों को देखा जा सकता है। पशु और पक्षियों जैसे लोमड़ी और मोर भी यहाँ पाए जाते हैं। यह झील अब पर्यटकों और स्थानीय लोगों का एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है।

  • गुडा गांव

    गुडा गांव

    गुडा, बिश्नोई गांव, वन्य जीवन और प्रकृति की एक अनुपम देन है। यह क्षेत्र हजारों प्रवासी पक्षियों का निवास स्थान है। झील पर दक्षिणी यूरोप और मध्य एशियाई सारस, तेंदुए, मृग और बारहसिंगा को भी देखा जा सकता है। यह जगह प्रकृति प्रेमियों के लिए उपयुक्त है।

  • मेहरानगढ़ फोर्ट और म्यूज़ियम

    मेहरानगढ़ फोर्ट और म्यूज़ियम

    जोधपुर का मेहरानगढ़ का क़िला, एक ऊँची शिला (चट्टान) पर बना है, जो कि आस पास के मैदानी भाग से लगभग 400 फुट की ऊँचाई पर है और देखने पर ऐसा लगता है कि पठारी और पहाड़ी दोनों भाग सम्मिलित होकर परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं। राजस्थान के भव्य क़िलों में से एक ,इस क़िले में बेहतरीन महल दृष्टिगत होते हैं तथा इसमें भारत के शाही दरबार के जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण और बेशक़ीमती वस्तुएं, अवशेष आदि संग्रहण करके एक म्यूज़ियम (संग्रहालय) में सुरक्षित व संरक्षित रखे गए हैं। राठौड़ वंश के पन्द्रहवें शासक तथा जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के नाम पर जोधपुर शहर का नामकरण किया गया। राव जोधा ने सन् 1459 ई. (1438 - 89) में मण्डोर के दक्षिण भाग की ओर 6 मील की दूरी पर एक नया क़िला बनवाना शुरू किया, क्योंकि उस समय मण्डोर उनकी राजधानी था। नए क़िले को बनाने के लिए एक सामरिक (युद्ध) महत्त्व वाले स्थान का चुनाव किया गया जिस के लिए एक निर्जन और पृथक किए हुए पहाड़ की विशाल चट्टान को इसके लिए चुना गया। यह चट्टान काफी ऊँचाई पर थी तथा प्राकृतिक रूप से क़िले के लिए प्रतिरक्षा और मोर्चा बंदी के लिए उपयुक्त थी। क़िले का नाम ’मेहरानगढ़’ रखा गया, जिसका अर्थ है ‘‘सूर्य का किला‘‘ जो कि इस वंश के पौराणिक महत्त्व तथा सूर्य देवता के प्रति आसक्ति का प्रतीक है। पाँच सौ गज़ से अधिक लम्बी क़िले की दीवार सत्तर फुट चौड़ी है और किसी किसी जगह पर तो इसकी ऊँचाई एक सौ बीस फुट तक है। आज मेहरानगढ़ म्यूज़ियम की एक अनोखी पहचान और महत्त्व है तथा यह इसमें संरक्षित रखी गई कलाकृतियों तथा केन्द्रीय राजस्थान और मारवाड़ जोधपुर के बड़े क्षेत्रों के सांस्कृतिक इतिहास के कोष के कारण है। इस संग्रहालय (म्यूज़ियम) में 17 वीं, 18 वीं तथा 19 वीं शताब्दी के अनुकरणीय मिनिएचर पेंटिंग्स, अस्त्र - शस्त्र तथा ज़िरह - बख़्तर (कवच) के अतुल्य संग्रह के कारण यह म्यूज़ियम महत्वपूर्ण है। इसमें सजीली वस्तुओं, फर्नीचर के साथ अद्भुत वस्त्रों का भी वैभवशाली संग्रह है। इस म्यूज़ियम के संग्रह के साथ, बहुत सी अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भी भाग लिया गया, जहाँ मारवाड़ की संपन्न और बहुमूल्य विरासत को प्रदर्शित किया गया और इस क्षेत्र के प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ परस्पर प्रभावपूर्ण बातचीत भी की गई।

  • चोखेलाव बाग़ और इन्टरप्रिटेशन सैन्टर

    चोखेलाव बाग़ और इन्टरप्रिटेशन सैन्टर

    आइए, देखिए मेहरानगढ़ फोर्ट के साथ ही आगे की ओर बना हुआ ’चोखेलाव बाग’। यह दो सौ साल पुराना बाग़, जिस की विभिन्न बनावट, मनभावन गूंज और सुगन्धित फूलों से भरपूर है तथा अठाहरवीं शताब्दी के पुराने मारवाड़ के बाग़ बगीचों जैसे इस बाग़ को मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट द्वारा एक बोटैनिकल म्यूज़ियम के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। क्योंकि इसमें मारवाड़ क्षेत्र के स्थानीय ऐतिहासिक पेड़ पौधे लगाए तथा प्रदर्शित किए गए हैं। यह बाग़, गुज़रे ज़माने की तरह आज भी प्रकृति की सुन्दरता और प्राकृतिक छठा से आनन्दित है तथा मौसम के रंगों के साथ ही रंग बदलता है। बग़ीचे का ऊपरी भाग, सुन्दर, विभिन्न रंगों के फूलों से लदा हुआ, क़ालीन की तरह लगता है। यह बाग़ रात के समय भी उतना ही जादुई नज़र आता है जब ’महताब बाग’ या ’मूनलाइट गार्डन’ में नीचे की तरफ की सजीव सुन्दरता जीवंत हो उठती है और जब मीठी महक वाली, सुवासित कामिनी (मौर्या एक्सोशिया) और सफेद चाँदनी के फूल (टैबरनेमोन्टाना कोरोनेरिया) की चमक रात को रौशन कर देती है। आइए, इस बाग़ को देखिए और अपने साथ इसके कामुक, भावमय अनुभव, जिसमें अठारहवीं शताब्दी के राजपूत गार्डन की महक शामिल है, साथ ले जाइए।

जोधपुर के उत्सव और परम्पराओं के आंनद में सम्मिलित हों। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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  • मारवाड़ उत्सव

    मारवाड़ उत्सव

    मारवाड़ उत्सव के दौरान, जोधपुर और यहाँ के लोगों के लिए, खुशियां मनाने, नाचने, गाने का अवसर होता है। पूरा जोधपुर घूमर की स्वर लहरियों, लंगा-मांगणियार के सुर-ताल और माण्ड गायिकी में डूब जाता है। इस अवसर पर सभी स्मारकों को रोशनी तथा फूलों से सजाया जाता है। हजारों पर्यटक मारवाड़ उत्सव में शामिल होने दूर देशों से भी आते हैं। मारवाड़ उत्सव जोधपुर और भारत के सबसे प्रसिद्ध उत्सवों में से एक है। राजस्थान के नायकों की याद में, अश्विन मास (सितम्बर और अक्टूबर के बीच) थार रेगिस्तान के ओसियां कस्बे में हर वर्ष दो दिन का मेला आयोजित किया जाता है। यह मूलतः ’मौद महोत्सव’ के रूप में जाना जाता था। मारवाड़ के त्यौहार राजस्थान के शासकों के प्रामाणिक लोक संगीत, संस्कृति और जीवन शैली का केन्द्र है। इस मेले में जहाँ कला रूपों का शाही संग्रह नजर आता है, वहीं मारवाड़ के पूर्व शासकों के सम्मान में अंकित और गाई गई गाथाओं को देखने सुनने का अवसर मिलता है। उत्सव के अन्य आकर्षणों में ऊँट, टैटू शो और पोलो भी शामिल हैं। ये मेले उम्मेद भावन पैलेस, मंडोर और मेहरानगढ़ किले जैसे प्रसिद्ध स्थानों पर आयोजित किये जाते हैं।

जोधपुर में गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजस्थान में करने के लिए सदैव कुछ निराला है।

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  • फ्लाइंग फॉक्स

    फ्लाइंग फॉक्स

    सन् 2010 में जोधपुर केे किले महलों को ऊँचाई से दिखाने के लिए ’जिप लाइन टूर’ ने, रोमांचक विकल्प प्रस्तुत किया है। इस कम्पनी ने इस विकल्प का नाम ’फ्लाइंग फॉक्स’ रखा है। ग्लाइडर द्वारा पर्यटकों को राजसी किले की बाहरी इमारत, झीलें, महल और जोधपुर सिटी के सुन्दर दृश्यों का अवलोकन कराया जाता है। हवा में उड़ते हुए इस शहर की चमकती नीली इमारतों का नजारा भी बहुत ही अच्छा दिखाई देता है।

  • विश्नोई गाँव का दौरा

    विश्नोई गाँव का दौरा

    देवी विदेशी पर्यटकों को जीप तथा घोड़ों द्वारा जोधपुर के पास विश्नोई गाँव का दौरा कराया जाता है। विश्नोई समाज प्रकृति प्रेमी रहा है। यह सभी जीवित वस्तुओं की पवित्रता और उनके संरक्षण में विश्वास करते हैं। पर्यटक इस टूर में, गाँव के लोगों का रहन-सहन, उनका पहनावा, आभूषण, खाना-पकाना, घरों को गारे से लीपना, अल्पना बनाना तथा उनके रीति रिवाजों को नजदीक से देख सकते हैं। इन लोगों का जीवन आज भी शहर के कोलाहल और नकली जीवन शैली से परे, उसी पुराने अन्दाज और संस्कृति में रच-बस रहा है।

  • जब जोधपुर में हों तो ऊँट सफारी का आनंद अवश्य लें

    जब जोधपुर में हों तो ऊँट सफारी का आनंद अवश्य लें

    राजस्थान के बेहद आकर्षक रेगिस्तान का पता लगाने का इससे शानदार तरीका कोई नहीं है। रेगिस्तानी टीलों, प्राचीन हवेली, मंदिरों और यहां तक कि ऐतिहासिक स्थलों का अवलोकन ऊँट सफारी के माध्यम से किया जा सकता है। सफारी संचालक के पास पर्यटकों के अनुरूप विकल्प उपलब्ध हैं। इससे पर्यटकों को पारम्परिक एवं ग्रामीण राजस्थानी जीवन शैली को हृदयंगम करने का सुअवसर मिलता है। यदि आप राजस्थान में ऊँट भ्रमण का आनंद लेना चाह रहे हैं तो जोधपुर चलें।

यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon जोधपुर दिल्ली और मुम्बई से जुड़ा है और हवाई अड्डा शहर के केन्द्र से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है।
  • Car Icon सड़क से सभी प्रमुख शहरों और कस्बों से जोधपुर अच्छी प्रकार जुड़ा हुआ है।
  • Train Icon जोधपुर भारत के सभी महानगरों और प्रमुख शहरों से सीधे रेलगाड़ियों से भली प्रकार जुड़ा हुआ है।

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जोधपुर के समीप देखने योग्य स्थल

  • पुष्कर

    86 कि.मी.

  • जैसलमेर

    286 कि.मी

  • उदयपुर

    257 कि.मी.