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  • चित्तौड़गढ़

    चित्तौड़गढ़

    चित्तौडग़ढ़ फोर्ट

चित्तौड़गढ़

क़िलों और महलों का वैभव

राजपुताने का गौरव, शौर्यऔर बलिदान की स्थली - चित्तौड़। चारणों द्वारा गाई गई शौर्य गाथाओं में आज भी यहाँ की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं। चित्तौड़गढ़ का क़िला, 180 मीटर ऊँची पहाड़ी पर बना और 700 एकड़ में फैला सर्वोत्तम तथा सबसे बड़ा क़िला है। इस क़िले को तीन बार शक्तिशाली दुश्मनों का हमला सहना पड़ा। राजपूती वीरता, गौरव और जु़नून को, यहाँ एक ‘‘साउण्ड एण्ड लाइट’’ शो द्वारा, रोजाना प्रतिध्वनित किया जाता है। पर्यटक इस शो को देखने और सुनने के लिए एकाग्रचित्त होकर बैठते हैं और चित्तौड़ की भावभीनी कहानी सुनकर दंग रह जाते हैं। सन् 1303 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी एवं उसके बाद 1533 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने इस किले पर हमला कर, तबाही मचाई। फिर चार दशक बाद 1568 में मुग़ल सम्राट अकबर ने इस पर हमला किया और कब्ज़ा कर लिया। सन् 1616 ई. में मुगल सम्राट जहाँगीर के शासनकाल में यह क़िला राजपूतों को वापस सौंप दिया गया।

चित्तौड़गढ़ में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

चित्तौड़गढ़ में आपको विस्मयकारी आकर्षण और अनूठे स्थल देखने को मिलेंगे। राजस्थान में हमेषा कुछ अनूठा देखने को मिलता है।

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  • लाइट एवं साउंड शो  - चित्तौड़गढ़ किला

    लाइट एवं साउंड शो - चित्तौड़गढ़ किला

    परम्परागत लाइट एवं साउंड शो में चित्तोड़गढ़ दुर्ग की स्थापना की कहानी, आक्रान्तो द्वारा दुर्ग पर आक्रमण, दुर्ग को लम्बे समय तक घेरने की कहानी, रानी पदमिनी के सूझबूझ, युद्ध कौशल की कहानी, गौरा बादल के वीरता और बलिदान की गाथा का बहुत रोचक चित्रण किया गया है। समय: सूर्यास्त के पश्चात् टिकट दर: 150+18%GST = 177 संपर्क : 01472 241238

  • विजय स्तम्भ

    विजय स्तम्भ

    यह महाराण कुम्भा ने मालवा और गुजरात के मुस्लिम शासकों को हराकर, अपनी विजय का जश्न मनाने और उसे चिरस्थापित करने के उपलक्ष्य में सन् 1440 ई. में बनवाना शुरू किया, जो कि 8 वर्षों में निर्मित हुआ। शिल्प कला का अद्भुत नमूना ’विजय स्तम्भ’, लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनाया गया, 9 मंज़िला स्ंतभ है। इसमें हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियाँ अलंकृत की गई हैं। इसमें ऊपर जाने के लिए संकरी सीढ़ियों का रास्ता है और ऊपर जाकर बालकनियों से पूरे शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।

  • कीर्ति स्तम्भ

    कीर्ति स्तम्भ

    यह विशाल स्तम्भ, जैन तीर्थंकर तथा महान शिक्षाविद् आदिनाथ जी को समर्पित है। एक धनी जैन व्यापारी जीजा बघेरवाल तथा उसके पुत्र पुण्य सिंह ने, 13वीं शताब्दी में बनवाया था। यह 24.5 मीटर ऊँचा हिन्दू स्थापत्य शैली में बना, विजय स्तम्भ से भी पुराना है। इस 6 मंज़िले स्तम्भ पर जैन तीर्थांकरों की तथा ऊपरी मंजिलों में सैंकड़ों लघु मूर्तियां शिल्पांकित की गईं हैं। यहाँ पास ही नेमीनाथ जी, आदिनाथ जी एवं पार्श्वनाथ जी का मंदिर भी स्थित है I

  • फ़तेह प्रकाश महल (राजकीय संग्रहालय)

    फ़तेह प्रकाश महल (राजकीय संग्रहालय)

    राजपूत वास्तु शैली में यह महल, महाराणा फतेह सिंह द्वारा उनके निवास स्थान के रूप में बनाया गया था। उनकी रूचि कला और संस्कृति में थी। अब इस महल को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। इस महल में बस्सी गाँव के लकड़ी के शिल्प, राशमी गाँव की जैन अंबिका और इन्द्र की पूर्व मध्ययुगीन मूर्तियाँ, प्राचीन हथियार, वेश भूषा, पेंटिग्स, क्रिस्टल के बर्तन आदि का अनूठा संग्रह देखा जा सकता है।

  • जैन मन्दिर

    जैन मन्दिर

    चित्तौड़ के क़िले के अन्दर छह जैन मंदिर हैं। इनमें सबसे बड़ा भगवान आदिनाथ का मंदिर है जिसमें 52 देवकुलिकाएं हैं। सत्बीस देवरी मंदिर समूह बड़ी पोल के दाहिने ओर स्थित हैI यहाँ कुल 27 मंदिर समूह के करण इसका नाम सत्बीस देवरी पड़ा I मंदिर के अन्दर एवं बहार की नक्काशी अद्भुत है I इस मंदिर के साथ दो छोटे मंदिर भी स्थित हैं।

  • कालिका माता मंदिर

    कालिका माता मंदिर

    मूलरूप से सूर्य को समर्पित इस मंदिर को निर्माण राजा मानभंग ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। क्षैतिज योजना में मुदिर पंचरथ गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा मुख मंडप युक्त है। मंडप पारिश्व आलिन्द युक्त है। गर्भगृह की द्वार शाखा के उतरंग के मध्य ललाट बिम्ब में सूर्य की प्रतिमा है। मध्य काल में लगभग 14वीं शताब्दी में राणाहमीर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और यहां शक्ति और वीरता की प्रतीक देवी कालिका माता की उपासना की जाने लगी तभी से यह मंदिर कालिका माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।

  • तुलजा भवानी मंदिर

    तुलजा भवानी मंदिर

    16वीं सदी में आराध्य देवी दुर्गा माता को समर्पित इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। किवंदती के अनुसार बनवीर ने मंदिर बनवाने के लिए, अपने वज़न के बराबर स्वर्ण आभूषण दान दिए थे। इसीलिए इस मंदिर का नाम ’तुलजा मंदिर’ रखा गया। यह भी कहा जाता है की कालांतर में चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर मराठाओं का प्रभाव होने से उन्होंने अपनी आराध्य देवी तुलजा भवानी की मूर्ति यहाँ स्थापित की I

  •  गौमुख जलाशय

    गौमुख जलाशय

    महासती अहाते के दक्षिण में स्थित पवित्र गौमुख कुंड को सास-बहू एवम् मंदाकिनी कुंड के नाम से भी जाना जाता है। यहां स्तम्भ युक्त मंडप में गौमुख उत्कीर्ण है। जिससे अनवरत भूमिगत जल का प्रवाह होता रहता है जो उसके नीचे बने शिवलिंग पर गिरता है। गौमुख के समीप प्राचीन समिद्धेश्वर मंदिर बना हुआ है। यहां बने जलाशय में स्थानीय लोग मछलियों को दाना डालते हैं तथा जलाशय के जल को बहुत पवित्र मानते हैं।

  • रतन सिंह पैलेस

    रतन सिंह पैलेस

    शाही परिवार का इस महल में सर्दियों के मौसम में निवास रहा करता था। पर्यटकों को यह पैलेस तथा थोड़ी दूरी पर स्थित झील काफी आकर्षित करते हैं।

  • राणा कुम्भा महल

    राणा कुम्भा महल

    सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्मारक राणा कुम्भा पैलेस - अपने ऐतिहासिक महत्व और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। महाराणा कुम्भा द्वारा इस महल में किये गए परिवर्तन एवं परिवर्धन के करण इसे कुम्भा महल के नाम से जाना जाता है I महल के मुख्य परिसर में सूरज गोखड़ा, जनाना महल, कँवर पाड़ा का महल व अन्य आवासीय कक्ष स्थित हैं जिनमे प्रवेश हेतु दरिखाने से छोटा प्रवेश द्वार है I आज खण्डहर में तब्दील हुए इस महल में भूमिगत तहखाने हैं।

  • कुम्भ श्याम मंदिर

    कुम्भ श्याम मंदिर

    8वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर मूलतः वराह को समर्पित था I 15वीं शताब्दी में राणा कुंभा के शासन के दौरान इस मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था। और कुम्भा श्याम की प्रतिमा स्थापित की गई थी I उस समय की लोकप्रिय इंडो - आर्यन शैली में बने इस मंदिर का शिल्प अनूठा है I

  • मीरां बाई मंदिर

    मीरां बाई मंदिर

    इस मंदिर का स्वरूप उत्तर भारतीय शैली में मीरां बाई के पूजा स्थल के रूप में किया गया था। इसकी विविधता, इसकी कोणीय छत है, जिसे दूर से ही देखा जा सकता है। यह मंदिर चार छोटे मंडपों से घिरा है और एक खुले आंगन में बनाया गया है।

  • नगरी

    नगरी

    बेडच या बेराच नदी के तट पर स्थित नगरी गाँव है, जो कि चित्तौड़गढ़ से 18 कि.मी. उत्तर में स्थित है। यह प्राचीन युग में ’माझीमिका’ या माध्यमिका’ नाम से जाना जाता था। इसका उद्भव 443 ई. पू. माना जाता है। मौर्य काल में यह एक समृद्ध तथा विकसित नगर था तथा गुप्त काल तक इसी तरह रहा। यहाँ की गई खुदाई में हिंदू तथा बौद्ध प्रभाव के ठोस संकेतों के रूप में कई पुराने सिक्के तथा पंचमार्क सिक्के पाए गए। नगरी या नागरी पर प्रथम शताब्दी में सिब्बी जनजातियों का शासन होने के प्रमाण स्वरूप ‘सिब्बी’ जनजाति के सिक्के मिले, जिन पर ‘‘मझिमिकाया सिबी जनपदासा’’ अंकित है। पुष्यमित्र शुंग के समकालीन पतंजलि ने अपने महाभाष्य में 150 ई.पू. मझिमिका पर यवन (ग्रीक) हमले में, सिब्बी जनजातियों को हराने का, उल्लेख किया है। तत्पश्चात् दूसरी शताब्दी में नगारी क्षत्रियों के प्रभाव में आया। तीसरी शताब्दी में यहाँ मालवा शसक का अधिकार था। बाद में हूण राजा द्वारा इस पर विजय प्राप्त की गई। नागरी के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में, आकर्षक शिव मंदिर, हाथियों का बाड़ा और प्रकाश स्तम्भ शामिल हैं।

  • भैंसरोडगढ़ फोर्ट

    भैंसरोडगढ़ फोर्ट

    यह भव्य आकर्षक किला, 200 फुट ऊँची सपाट पहाड़ी की चोटी पर, चम्बल और ब्रह्माणी नदियों से घिरा हुआ है। उदयपुर से 235 कि.मी. उत्तर पूर्व तथा कोटा से 50 कि.मी. दक्षिण में यह क़िला बहुत शानदार और समृद्ध है। इस क़िले की सुन्दरता से अभिभूत होकर, ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स टॉड ने कहा था कि यदि उन्हें राजस्थान में एक जागीर (संपत्ति) की पेशकश की जाए तो वह ’भैंसरोड गढ़’ को ही चुनेंगे। उल्लेखनीय इतिहास के अनुसार, इसे सलूम्बर के रावत केसरी सिंह के पुत्र रावत लाल सिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। 1783 ई. में मेवाड़ के महाराणा जगत सिंह द्वितीय द्वारा यह क़िला एक जागीर के रूप में लाल सिंह को दिया गया था। कोई सटीक जानकारी न मिलने के कारण, इस क़िले के निर्माण के सम्बन्ध में कुछ सही नहीं कहा जा सकता। हालांकि यह क़िला दूसरी शताब्दी में निर्मित किया गया, ऐसा माना जाता है। कई वंशों के अधीन रहने के बाद ऐसी मान्यता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने भी इस क़िले पर हमला किया था तथा यहाँ के सभी पुराने मंदिर और इमारतों को नष्ट कर दिया था। वर्तमान में इस क़िले को शाही परिवार द्वारा एक शानदार हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जा रहा है। तीन तरफ नदियों से घिरे तथा अरावली पर्वत माला व घने जंगलों के बीच स्थित इस क़िले की खूबसूरती, देशी व विदेशी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है।

आइए, चित्तौड़गढ़ के उत्सव और परम्पराओं का आनन्द लीजिए। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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चित्तौड़गढ़ में गतिविधियाँ पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजस्थान में करने के लिए सदैव कुछ निराला है।

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यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर का डबोक हवाई अड्डा है। जो लगभग 105 कि.मी. दूर है।
  • Car Icon राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से बसे उपलब्ध है।
  • Train Icon चित्तौड़गढ़ रेल द्वारा, उदयपुर, अजमेर, जयपुर और दिल्ली से जुड़ा हुआ है।

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चित्तौड़गढ़ के समीप के दर्शनीय स्थल

  • उदयपुर

    115 कि.मी.

  • डूंगरपुर

    221 कि.मी.

  • झालावाड़

    214 कि.मी.