अजमेर
ख़्वाज़ा की नगरी
अजमेर में ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और 14 कि.मी. की दूरी पर पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के कारण, यहाँ दो संस्कृतियों का समन्वय होता है। 7 वीं शताब्दी में राजा अजयपाल चौहान ने इस नगरी की स्थापना ‘अजय मेरू’ के नाम से की। यह 12वीं सदी के अंत तक चौहान वंश का केन्द्र था। जयपुर के दक्षिण पश्चिम में बसा अजमेर शहर, अनेक राजवंशों का शासन देख चुका है। 1193 ई. में मोहम्मद ग़ौरी के आक्रमण तथा पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद, मुगलों ने अजमेर को अपना ईष्ट स्थान माना। सूफी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती को ’ग़रीब नवाज़' के नाम से जाना जाता है और अजमेर में उनकी बहुत सुन्दर तथा विशाल दरगाह है। प्रत्येक वर्ष ख़्वाजा के उर्स (पुण्यतिथि) के अवसर पर लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं। अजमेर शहर को शैक्षणिक स्तर पर भी उच्च स्थानों में माना जाता है। यहाँ पर अंग्रेजों द्वारा स्थापित मेयो कॉलेज, विश्वविख्यात है तथा इसकी स्थापत्य कला भी अभूतपूर्व है। यहां अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशी छात्र भी पढ़ने आते हैं।