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  • टोंक

    टोंक

    अदब का गुलशन, ख़रबूज़ों का शहर

टोंक

अदब का गुलशन, ख़रबूज़ों का शहर

‘राजस्थान का लखनऊ’ के नाम से पहचान बनाने वाला शहर टोंक, पूर्व में एक रियासत रहा तथा 1948 में राजस्थान का हिस्सा बन गया। पुरानी हवेलियों, बड़ी मस्जिद और मीठे खरबूजों के लिए प्रसिद्ध यह शहर बहुत ही मनोहारी है। शुरू में, जयपुर का यह नगर, अफगानिस्तान के पठानों द्वारा शासित रहा तथा मुग़लकाल में सर्वाधिक सम्पन्न रहा। साहित्य प्रेमी टोंक के नवाब ने, अरबी और फारसी की शिक्षा, शोध तथा पांडुलिपियों के संग्रह को, टोंक की विरासत बनाया। 17वीं शताब्दी में स्थापित टोंक, ब्रिटिश औपनिवेशिक इमारतों और सांस्कृतिक विरासत की शानदार संरचनाओं से समृद्ध यह शहर, पर्यटकों, विशेषकर शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है। नेशनल हाइवे 12 पर, जयपुर से 100 कि.मी. दूर इस शहर में 1093 गाँव बसते थे। बनास नदी के किनारे पर बसा टोंक, पश्तून मूल के नवाब, मोहम्मद अमीर खान ने 1746 - 1834 में बसाया था। यह मराठा सल्तनत में मिलिट्री जनरल थे तथा मराठा सरदार यश्वन्त राव होल्कर ने, उन्हें टोंक की सल्तनत, युद्ध में जीतने पर दी थी। टोंक मुस्लिम नवाबों की रियासत रहा, इसीलिए यहाँ उर्दू व फारसी अदब और तहजीब का बोलबाला रहा। टोंक को राजस्थान का लखनऊ, रोमांटिक शायर अख्तर शीरानी का शहर, मीठे खरबूजों का नगर और हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक कहा जाता है।

टोंक में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

आइए, टोंक के पर्यटन आकर्षणों से रूबरू हों। राजस्थान में सदा ही कुछ निराला देखने को मिलता है।

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  • सुनहरी कोठी

    सुनहरी कोठी

    टोंक का मुख्य आकर्षण 19वीं सदी की सुनहरी कोठी या गोल्डन मैन्शन है, जो नज़र बाग रोड पर बड़ा कुआँ के पास है। इमारत अपने बाहरी रूवरूप से साधारण लगती है, लेकिन इसके आंतरिक भाग की बहुरंगी स्वर्ण रंगों की शाही झलक, इसके नाम से मेल खाती है। शीश महल, या सुनहरी कोठी का शीशे से शोभायमान कमरा, मीनाकारी कार्य के सर्वोत्कृष्ट नमूनों के साथ अद्भुत ग्लास और फूलों के अलंकरण की कारीगरी मंत्रमुग्ध करते हैं। 7 मार्च, 1996 में राजस्थान सरकार द्वारा सुनहरी कोठी को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया है।

  • अरेबियन एवं पर्शियन रिसर्च इन्स्टीट्यूट

    अरेबियन एवं पर्शियन रिसर्च इन्स्टीट्यूट

    टोंक का यह इन्स्टीट्यूट, सन् 2002 में स्थापित किया गया था। रियासत के समय में विद्वानों द्वारा हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ, धार्मिक पुस्तकें, ऐतिहासिक पुस्तकें, पेन्टिंग्स तथा सुलेखिक रेखांकन के नमूने यहाँ संग्रहीत किए गए हैं। कुछ प्राचीन किताबें, सोने, पन्ना, मोती व माणक से सुशोभित की गई हैं। संस्थान में एक खूबसूरत कलादीर्घा है, जो आगंतुकों तथा शोधकर्ताओं के लिए खुली है।

  • हाथी भाटा

    हाथी भाटा

    टोंक से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर सवाई माधोपुर राजमार्ग पर ’हाथी भाटा’ स्थित है। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो एक ही पत्थर-चट्टान से तैयार किया गया एक विशाल हाथी का रूप है। सवाई राम सिंह के शासनकाल के दौरान रामनाथ सियात द्वारा निर्मित इस स्मारक पर एक शिलालेख है, जो नल-दमयंती की कहानी अभिव्यक्त करता है।

  • बीसलदेव मंदिर

    बीसलदेव मंदिर

    बीसलपुर - टोंक से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बीसलपुर की स्थापना 12वीं शताब्दी में चव्हाण शासक विग्रहराजा चतुर्थ द्वारा की गयी थी। बीसलपुर को ’गोकर्णेश्वर’ के मंदिर की वजह से महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे बीसलदेव जी के मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह विग्रहराजा चतुर्थ द्वारा बनाया गया था, जो गोकर्ण का परम भक्त था। मंदिर के भीतर एक पवित्र शिवलिंग है। मंदिर का एक गोलाकार गुंबद जो चारों ओर से आठ लम्बे स्तंभों पर आधारित है, पुष्प अलंकरण से आच्छादित है।

  • हाड़ी रानी बावड़ी

    हाड़ी रानी बावड़ी

    टोडारायसिंह - हाड़ी रानी बावड़ी टोंक से 2 घंटे आगे सड़क मार्ग पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह बावड़ी 12वीं शताब्दी में बनाई गई है। यह आयताकार संरचना पश्चिमी तरफ से दो मंजिला बरामदे के साथ बनी है। इसके गलियारों में से प्रत्येक मेहराब युक्त द्वार के साथ घिरा है ब्रह्मा, गणेश और महिषासुरमर्दिनी की छवि निचली मंजिलों पर अंकित है। सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और शाहरूख़ ख़ान अभिनीत बॉलीवुड फिल्म "पहेली "के कुछ दृश्य यहां फिल्मांकित किये गये थे।

  • डिग्गी कल्याण जी मंदिर

    डिग्गी कल्याण जी मंदिर

    डिग्गी - 5600 वर्षों पूर्व का सबसे पुराना पूजनीय हिंदू मंदिरों में से एक है श्री डिग्गी कल्याण जी मंदिर। भगवान विष्णु के अवतार श्री कल्याण जी यहां स्थित हैं। पूरे देश से लोग यहां अपने दुखों से मुक्ति और देवता के आशीर्वाद के लिए आते हैं। प्राचीन काल की शिल्प-कौशल की गवाही देता यह मंदिर, टोंक से लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। मंदिर का भव्य शिखर 16 स्तम्भों पर आधारित है।

  • जामा मस्ज़िद

    जामा मस्ज़िद

    भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक टोंक की जामा मस्ज़िद है जो कि एक प्रभावशाली स्मारक है तथा गुज़रे ज़माने की मुग़ल क़ालीन स्थापत्य कला का एक बेजोड़ भव्य उदाहरण है। टोंक के पहले नवाब अमीर ख़ां द्वारा इस जामा मस्जिद का निर्माण शुरू करवाया गया था। इस जामा मस्जिद का निर्माण कार्य नवाब वजीरूद्दौला के ज़माने में पूरा किया गया। इस जामा मस्ज़िद का अन्दरूनी हिस्सा और दीवारें स्वर्ण चित्रांकन और मीनाकारी से सुसज्जित हैं, जो कि इस मस्जिद की आंतरिक सुन्दरता को और बढ़ा देता है तथा बाहर की तरफ काफी दूर से भी नजर आने वाली बड़ी बड़ी चार विशाल मीनारे हैं, जिन्हें दूर से देख कर मस्जिद की पहचान हो जाती है। सब कुछ मिला कर इसकी रमणीय जटिलता और बनावट इसे अलग से ही चिन्ह्ति करती हैं।

  • बीसलपुर डैम (बांध)

    बीसलपुर डैम (बांध)

    राजस्थान राज्य की राजधानी के लिए जीवनदायिनी के रूप में पहचान बनाने वाला, बीसलपुर डैम एक गुरूत्व बांध है जो कि बनास नदी पर निर्मित किया गया है - यह राजस्थान के टोंक ज़िले के देवली कस्बे के पास है। इस डैम का निर्माण सन् 1999 में पूरा किया गया था तथा तभी से यह डैम राज्य के कई क्षेत्रों को पानी सप्लाई करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है। बीसलपुर का यह डैम जयपुर के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के तत्वाधान में लगभग जयपुर जिले के आधे क्षेत्र में ही पानी सप्लाई करने का कार्य नहीं करता बल्कि सवाई माधोपुर जिले अजमेर जिले और टोंक जिले को भी इसी डैम से पानी सप्लाई किया जाता है। अजमेर के नसीराबाद क्षेत्र से एक पन्द्रह वैगन की ट्रेन, लगभग 2.5 लाख लीटर पानी लेकर भीलवाड़ा जिले के लिए पानी लेकर जाती है।

  • जल देवी मंदिर

    जल देवी मंदिर

    राजस्थान में टोंक जिले के टोडारायसिंह नगर के पास बावड़ी गाँव में जलदेवी मन्दिर स्थित है। यह मंदिर जल देवी को समर्पित किया गया है तथा ढाई सौ वर्ष पुराना माना जाता है। स्थानीय लोगों के मतानुसार जल देवी की मूर्ति असल में पास के एक कुएं में मिली थी, जिसे बाद में मंदिर में स्थापित किया गया। चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर, तीन दिनों तक चलने वाला एक मेला इस मंदिर में भरता है जो कि इस स्थान की महत्ता को और अधिक बढ़ा देता है।

  • घण्टा घर

    घण्टा घर

    क्लॉक टावर जिसे ’घण्टा घर’ के नाम से स्थानीय लोग जानते हैं तथा इसका नाम टोंक की सबसे अधिक प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारतों में से एक गिना जाता है। टोंक के पूर्व नवाब मोहम्मद सआदत अली खां द्वारा इस घण्टा घर का निर्माण कराया गया है तथा इसी लिए इसकी महत्ता बहुत अधिक है। यदि स्थानीय लोगों द्वारा बताई गई कहानी पर विश्वास करें तो कहा जाता है कि एक बार सन् 1936 में टोंक शहर में हैजा (कॉलरा) की महामारी फैल गई थी। इस दुखद समय में टोंक नवाब ने उन सभी लोगों को मुफ्त दवाईयां बांटी जो इस बीमारी से पीड़ित हो गए थे। अंत में इस दौरान जो पैसा इकट्ठा किया गया था, उसमें से जो बचा, उसका उपयोग इस प्रतिष्ठित घण्टा घर को बनवाने के काम में लिया गया। यहाँ हमेशा कोई न कोई आयोजन, इस ऐतिहासिक घण्टा घर के सामने की तरफ होते रहते हैं, जहाँ आप टोंक शहर के लोगों का जोश और खुशी देख सकते हैं। इस दिलचस्प ऐतिहासिक घण्टाघर की असली खूबसूरती देखनी हो तो आप इसे रात के समय आकर देखें।

टोंक के उत्सव और परंपराओं का हिस्सा बनें। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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टोंक में गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षाा कर रहे हैं। राजस्थान में करने के लिए सदैव कुछ नया निराला है।

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यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon सबसे निकटतम हवाई अड्डा, जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा, 94 किमी दूर स्थित है।
  • Car Icon टोंक के लिए बस सेवा जयपुर, कोटा, ग्वालियर, भीलवाड़ा और अन्य शहरों से उपलब्ध है।
  • Train Icon टोंक से 38 किलोमीटर दूर स्थित बनस्थली निवाई रेलवे स्टेशन, जयपुर कोटा, सिकंदराबाद, भोपाल, जोधपुर, इंदौर, दुर्ग, और विशाखापट्टनम से रेलगाड़ियों से मिला है।

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