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  • नागौर

    नागौर

    नागवंशी शासकों का देश- ‘जांगलदेश'

नागौर

नागवंशी शासकों का देश- ‘जांगलदेश’

नागौर, उत्तर पश्चिम मारवाड़ में स्थित है। महाभारत समय में इसे ’जांगलदेश’ कहते थे। मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा, यह नगर राजा अमरसिंह राठौड़ को उपहार स्वरूप दिया गया था। यह थार रेगिस्तान में दूर तक फैला है। नागा, चौहान, राठौड़, मुग़ल और यहाँ तक कि अंग्रेजों ने भी इस शहर पर कब्ज़ा कर लिया था। नागौर के मेड़ता गाँव में संत कवियित्री मीरां बाई का बेहतरीन मंदिर है। ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के मुख्य शिष्य सूफी संत हमीदुद्दीन फारूक़ी नागौरी की शानदार दरगाह भी देखने योग्य है। अबुल फज़ल का भी जन्म स्थान नागौर में ही माना जाता है। इसका क़िला बहुत से युद्धों की गवाही देता है।

नागौर में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

नागौर के दर्शनीय स्थलों का आंनद लें। राजस्थान में सदैव कुछ नया नवेला देखने को मिलता है।

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  • लाइट एवं साउंड शो - मीरा बाई स्मारक

    लाइट एवं साउंड शो - मीरा बाई स्मारक

    परम्परागत लाइट एवं साउंड शो में मीरा बाई के बाल्यकाल की घटनाओ, मीरा बाई का भगवान श्री कृष्ण के लिये प्रथम आकर्षण, मीरा बाई द्वारा भगवान श्री कृष्ण को अपना पति और आराध्य मानने का वृंतात, मेवाड़ के राजकुमार के साथ मीरा बाई विवाह, मीरा बाई के पति देहावसान और उसके बाद की घटनाये, मीराबाई द्वारा राजसी वैभव को छोड़कर सम्पूर्ण रूप से वैराग्य का पथ पकड़ना, वृन्दावन और द्वारका में प्रवास और प्रवास दौरान हुए वृतांत का लाइट एंड ऑडियो फीचर्स के माध्यम चित्रण किया गया है। शो को मीरा बाई से संबधित बहुत ही मधुर भजनो द्वारा भी बहुत रोमांचित और भक्तिमय बनाया गया है।

  • नागौर क़िला

    नागौर क़िला

    नागौर का क़िला, राजपूत और मुग़ल स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है। कहा जाता है कि नागौर क़िले को शुरू-शुरू में दूसरी शताब्दी में नाग राजवंश के शासक ने बनवाया था और तब 12वीं शताब्दी की शुरूआत में इसका पुनर्निर्माण किया गया था। कितने ही युद्धों का गवाह रहा ये क़िला, अपने पुर्नरूद्धार का भी साक्षी बना है। उत्तर भारत के पहले मुग़ल गढ़ों में से एक होने के नाते यह राजपूत - मुग़ल स्थापत्य शैली का महान उदाहरण है। 2007 में क़िले में प्रमुख पुनर्निर्माण हुए और अब मनोरम फव्वारे और रमणीय उद्यान से इसका आकर्षण बढ़ा है। सूफी संगीत उत्सव के लिए भी ये एक आकर्षक मंच है।

  • लाडनूं

    लाडनूं

    लाडनूं में बनी साड़ियाँ, पूरे भारत में कॉटन की साड़ियों में बेहतरीन क़िस्म की मानी जाती हैं तथा इनके चटक रंग और मुलायम कपड़े के लिए पसन्द की जाती हैं। जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण केन्द्र और अहिंसा एवं करूणा का आध्यात्मिक केन्द्र माना जाने वाला लाडनूं, 10वीं सदी में बसाया गया था। इसका अपना एक समृद्ध इतिहास है। जैन धर्म, आध्यात्मिकता और शुद्धि का प्रतीक जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय एक प्रसिद्ध केन्द्र भी है। कहा जाता है कि विश्व विख्यात संत आचार्य श्री तुलसी लाडनूं के थे।

  • खींवसर क़िला

    खींवसर क़िला

    ऐसा माना जाता है कि नागौर किले को दूसरी शताब्दी में नाग वंश के शासक ने बनवाया था। यह 500 वर्षीय क़िला थार रेगिस्तान के पूर्वी किनारे पर स्थित है। कभी यहाँ मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब भी रहे थे। काले मृग इस क़िले के आस पास समूह में विचरण करते हैं। क़िले को आधुनिक सुविधाओं के साथ सुसज्जित किया गया है और अब यह विरासत एक हैरिटेज होटल में बदल गया है।

  •  कुचामन शहर

    कुचामन शहर

    नागौर ज़िले में एक बड़ा क्षेत्र है कुचामन सिटी - इसमें बनी हवेलियाँ अपने अद्भुत वास्तुशिल्प में शेखावाटी हवेलियों से काफी मिलती जुलती हैं। यहाँ का क़िला देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते हैं। कुचामन शहर में कई स्थल हैं। सबसे महत्वपूर्ण कुचामन फोर्ट, एक सीधी पहाड़ी की चोटी पर स्थित राजस्थान का सबसे पुराना और सबसे दुर्गम किला है। इसमें अद्वितीय जल संचयन प्रणाली, एक ख़ूबसूरत महल और अद्भुत भित्ति चित्र हैं। जोधपुर के शासक की सोने और चांदी के सिक्कों की टकसालें भी यहाँ थीं। यहाँ से शहर और नमक झील का सुंदर दृश्य देख सकते हैं। शहर के पुराने मंदिर, जाव की बावड़ी और ख़ूबसूरत हवेली भी यहाँ से देखी जा सकती है।

  • खाटू

    खाटू

    पृथ्वीराज रासो के अनुसार खाटू का नाम ’खटवन’ था। पुराना खाटू लगभग ख़त्म हो गया है। अब वहां दो गांव हैं, जिन्हें ’बड़ी खाटू’ और छोटी खाटू’ कहते हैं। बड़ी खाटू में पहाड़ी पर एक छोटे क़िले के अवशेष हैं, जिसे पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था। छोटी खाटू में एक पुरानी बावड़ी भी है जो ’फूल बावड़ी’ कही जाती है। जिसे माना जाता है कि गुर्जर-प्रतिहार काल के दौरान निर्मित किया गया था। यह वास्तुकला का एक नायाब कलात्मक नमूना है।

  • अहिछत्रगढ़, नागौर फोर्ट (क़िला) और म्यूज़ियम (संग्रहालय)

    अहिछत्रगढ़, नागौर फोर्ट (क़िला) और म्यूज़ियम (संग्रहालय)

    नागौर शहर में स्थित अहिछत्रगढ़, जिसे ’फोर्ट ऑफ हुडेड कोबरा’ अर्थात ‘नागराज का फण’ कहा गया है, लगभग छत्तीस एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा सन् 1980 तक यह क़िला उपेक्षा का शिकार था। सन् 1985 में इस क़िले को मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट के संरक्षण में दे दिया गया। यहाँ स्थित महलों में ऐतिहासिक स्थलों पर राजसी फर्नीचर लगा हुआ है तथा दीवारों पर शाही पेन्टिंग्स तथा बेहतरीन सजावटी सामान प्रदर्शित किया गया है। सन् 2002 में नागौर के क़िले को इसकी ’’संस्कृति विरासत संरक्षण’’ के लिए ‘यूनेस्को एशिया – पैसिफिक हैरिटेज अवार्ड’’ से सम्मानित किया गया था। सन् 2011 – 2013 में इस क़िले को श्रेष्ठ वास्तु शिल्प कला के लिए प्रतिष्ठित ‘‘आग़ा खान अवार्ड’’ के लिए भी चयन (शॉर्टलिस्ट) किया गया था। प्रति वर्ष नागौर फोर्ट में ‘‘वर्ल्ड सेक्रेड स्पिरिट फ़ैस्टिवल’’ आयोजित किया जाता है।

  • झोरड़ा - नागौर

    झोरड़ा - नागौर

    नागौर तहसील में स्थित झोरड़ा एक छोटा गांव है और कवि ’कानदान कल्पित’ तथा प्रसिद्ध सूफी संत ’बाबा हरिराम’ की जन्म स्थली होने के कारण काफी प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष हिन्दी माह भाद्रपद की चतुर्थी और पंचमी (जनवरी – फरवरी) के अवसर पर, झोरडा में लगभग एक – दो लाख दर्शक आते हैं। यहां आने वाले लोगों में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यू. पी. सभी जगह के लोग यहाँ गांव में प्रत्येक वर्ष होने वाले बड़े सालाना मेले में आते हैं। इस गांव में बाबा हरिराम मंदिर होने के साथ ही इन संत के जीवन से सम्बन्धित बहुत सारी स्मरणीय तथा दर्शन करने योग्य वस्तुएं रखी र्हुइं हैं

  • बड़े पीर साहब दरगाह

    बड़े पीर साहब दरगाह

    सुप्रसिद्ध पवित्र स्थान होने के कारण, नागौर में बड़े पीर साहब की दरगाह को 17 अप्रैल 2008 को एक संग्रहालय के रूप में भी दर्शनार्थ खोला गया था। दरगाह में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और लोकप्रिय दर्शन योग्य सुशोभित वस्तु, यहाँ पर रखा गया ‘‘क़ुरान शरीफ’’ है। जिसे हजरत सैयद सैफुद्दीन अब्दुल जीलानी द्वारा सुनहरी स्याही में लिखा गया था, इसके साथ ही उनकी छड़ी और पगड़ी / टोपी भी दर्शनीय है तथा इस संग्रहालय में ऐतिहासिक महत्व की बहुत सी अन्य वस्तुएं भी प्रदर्शित की गईं हैं। यहाँ पर दर्शक, पुराने भारतीय सिक्के, जो कि सन् 1805 के हैं, देख सकते हैं तथा इसके साथ ही अब्राहम लिंकन की छवि के साथ अमेरिकन सिक्के भी यहां देखे जा सकते हैं। सैयद सैफुद्दीन जीलानी रोड पर स्थित यह दरगाह, धार्मिक आस्था रखने वाले लोगों तथा इतिहास जानने के जिज्ञासु लोगों द्वारा अक्सर देखा जाने वाला गंतव्य स्थल है।

नागौर के उत्सव और परम्पराओं का आनन्द लें - राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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  • नागौर मेला

    नागौर मेला

    वर्ल्ड सूफी स्पिरिट फेस्टिवल - राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा, प्रतिवर्ष नागौर मेला आयोजित किया जाता है। इसके अलावा ‘‘नोमैड’’ ट्रेवल्स द्वारा ’सूफी म्यूज़िक’ का एक कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है, जिसमें दूर दूर से सूफी गायक तथा पर्यटक आते हैं। नागौर में प्रत्येक वर्ष दुनिया भरके सूफी कलाकारों का स्वागत किया जाता है, क्योंकि वे नागौर क़िले में प्रदर्शन करते हैं। त्यौहार में कार्यशालायें, व्याख्यान, संगीत और योग सत्र भी शामिल हैं। आध्यात्मिक ज्ञान और सूफी संगीत प्रेमियों के चाहने वाले इस वार्षिक त्यौहार में भाग लेते हैं और राजस्थान की समृद्ध संस्कृति का जष्न मनाते हैं।

  • पशु मेले में शामिल हों

    पशु मेले में शामिल हों

    पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित यह मेला प्रतिवर्ष नवम्बर में नागौर में आयोजित किया जाता है। पशुओं के अलावा, नागौर में लाल मिर्चों का भी ज़बरदस्त व्यापार होता है। सूखी लाल साबुत मिर्चों के ढेर देख कर पर्यटकों के कैमरे लगातार क्लिक करते हैं। ऐसा दृष्य अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा। प्रतिवर्ष पुष्कर के मवेशी मेले के जैसा ही नागौर में भी एक मवेशी मेला आयोजित किया जाता है। यह बहुरंगी मेला भारत का सबसे बड़ा और लोकप्रिय पशु मेला है और दर्शनीय भी। स्थानीय और दूर दराज़ के इलाकों से लोग इस मेले में सम्मिलित होते हैं। मेले के दौरान कई खेल गतिविधियाँ होती हैं और हर वर्ष हजारों पशु, ऊँट और घोड़ों का व्यापार होता है।

नागौर में गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, राजस्थान में करने के लिए हमेशा कुछ निराला है।

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यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon सबसे निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है जो कि 137 कि.मी. दूर है।
  • Car Icon बसें जोधपुर, जयपुर और बीकानेर से नागौर तक उपलब्ध हैं।
  • Train Icon नागौर, इन्दौर, मुम्बई, कोयम्बटूर, सूरत, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर आदि से रेल के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

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नागौर के समीप दर्शनीय स्थल

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  • बीकानेर

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  • जोधपुर

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