मूल रूप से ’अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ कहलाने वाली इमारत एक संस्कृत महाविद्यालय था, परन्तु 1198 ई. में सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी ने इसे मस्ज़िद में तब्दील करवा दिया। हिन्दू व इस्लामिक स्थापत्य कला के इस नमूने को 1213 ई. में सुल्तान इल्तुतमिश ने और ज़्यादा सुशोभित किया। इसका यह नाम पड़ने के पीछे एक किवंदती है...
कोटा से झालावाड़ मार्ग पर लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर आलनियां नदी के किनारे बनीं चट्टानों पर प्रागैतिहासिक काल की गुफाएं तथा रॉक पेंटिंग्स बनी हुई हैं। ...
मरूस्थल से घिरा, झुझंनू में एक छोटा सा नगर है ‘अलसीसर‘। अलसीसर ठाकुर समर्थ सिंह को सम्मानपूर्वक अपने पिता ठाकुर पहाड़ सिंह से मिला, जिन्होंने 1783 ईस्वी में इसे अपनी राजधानी बनाया था। प्रसिद्ध अलसीसर महल राजपूत स्थापत्यकला का एक अच्छा उदाहरण है।
अमर जवान ज्योति या ’अमर सैनिकों की लौ’, राजस्थान के शहीदों को समर्पित एक स्मारक है। अमर जवान ज्योति जयपुर में नए विधानसभा भवन के पास स्थित है। अमर जवान ज्योति राजस्थान के सैनिकों के गर्व और गौरव का प्रतीक है। इसके चारों कोनों में ज्योति प्रज्जवलित हैं।...
अपने मंदिरों के लिए जाने वाला यह स्थान खारी नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह बाघ राव के बड़े बेटे सवाई भोज द्वारा निर्मित है जो मेवाड़ राज्य के प्रथम श्रेणी के कुलीनों में से एक थे। ...
यह एक विशाल पार्क है तथा यह भाटी राजाओं की स्मृतियों को समेटे हुए है। बड़ा बाग जैसलमेर के उत्तर में 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसे ’बरबाग़’ भी कहा जाता है। इस बगीचे में जैसलमेर राज्य के पूर्व महाराजाओं जैसे जय सिंह द्वितीय सहित, राजाओं की शाही छतरियां हैं। ...
सरिस्का वन्य अभ्यारण्य से 50 कि.मी. दूरी पर भानगढ़ स्थित है। आमेर के महाराजा भगवनदास के पुत्र माधव सिंह ने अपनी प्रथम नगरी के रुप में भानगढ़ की स्थापना की थी। कालान्तर में भानगढ़ के वीरान होने के संबंध में किंवदंतियां तंत्र मंत्रों की हैं।
भारतीय लोक कला मंडल, उदयपुर का एक सांस्कृतिक संस्थान है जो राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की संस्कृति, त्यौहारों, लोक कला और लोकगीत के लिए समर्पित है। लोक संस्कृति के प्रचार के अलावा, यह एक संग्रहालय भी है ...
इसका निर्माण 1921 ई. में हुआ था। यह नाट्यशाला, कई यादगार नाटकों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मूक गवाह है। माना जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में ऐसी सिर्फ आठ नाट्यशालाएं हैं। ‘शाकुंतलम’ और शेक्सपियर के लिखे नाटक यहाँ खेले जाते थे। ...
भीलवाड़ा जिले का शहर बिजोलिया यहाँ के श्री दिगंबर जैन पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थक्षेत्र, बिजोलिया किला और मंदाकिनी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। बूंदी-चित्तौड़गढ़ रोड पर स्थित, किले में स्थित शिव मंदिर हजारेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। ...
मूल रूप से विशाला जाट की धानी नाम के झुन्झुनू के एक गांव को बिसाऊ कहा जाता है। यह ठाकुर केसरी सिंह को उनके पिता महाराव शार्दुल सिंह जी द्वारा दिया गया था। केसरी सिंह ने एक किला और रक्षात्मक दीवार का निर्माण कराकर इसकी सीमा को मजबूत किया।...
इस गाँव में प्रसिद्ध प्राचीन सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यह गाँव अनूपगढ - रामसिंहपुर रोड पर स्थित है। उस समय के समृद्ध जीवन के सबूत-कलाकृतियाँ, कंकाल और खंडहर गाँव के आसपास के क्षेत्र में पाए गए हैं। ...
झालावाड़ में सबसे प्रसिद्ध, कोल्वी गाँव की प्राचीन बौद्ध गुफाएं हैं। गुफाओं में सबसे प्रभावशाली है बुद्ध की विशाल प्रतिमा और उत्कीर्णित स्तूप संरचना। झालावाड़ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये भारतीय कला के सर्वश्रेष्ठ जीवंत नमूने माने जाते हैं।...
सैन्ट्रल पार्क जयपुर के केन्द्र में स्थित बड़ा हरा-भरा क्षेत्र है, जो शहर के निवासियों को राहत के पलों के लिए एक स्थान प्रदान करता है। जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा निर्मित यह जयुपर का सबसे बड़ा पार्क है। ...
चंबल नदी के तट पर निर्मित यह सुंदर तथा प्राकृतिक सुरम्य वातावरण का पार्क है। यह स्थानीय नगर निगम द्वारा संचालित है तथा बड़े ही आकर्षक ढंग से यह निर्मित है। ...
राजा चंद्र द्वारा स्थापित, जयपुर-आगरा सड़क पर आभानेरी की चाँद बावड़ी, दौसा ज़िले का मुख्य आकर्षण है। इसका असली नाम ’आभा नगरी’ था, परन्तु आम बोल चाल की भाषा में आभानेरी हो गया। ...
राजा महाराजाओं की मृत्यु के पश्चात्, उनके नाम की, पत्थर की सुन्दर छतरियाँ बनाई जाती हैं। महल में बाहर की तरफ राजा गोपाल सिंह जी की छतरी नदी के पास स्थित है।...
छापी नदी के तट पर सिंचाई बांध के समीप दल्हनपुर गाँव हैं। यहाँ 2 किलोमीटर के क्षेत्र में यत्र-तत्र फैले हुए प्राचीन मंदिर के अवशेष, बेजोड़ तरासे स्तम्भ, तोरण और श्रृंगारिक खण्ड दर्शनीय हैं। ...
यह एक सुंदर झरना है, परन्तु गर्मी के मौसम में यह सूख जाता है। सरमथुरा तहसील में, यह आगंतुकों के लिए, जुलाई से सितम्बर तक, बरसात आने के साथ ही बहना शुरू हो जाता है तथा हरियाली के साथ ही, जीव जंतु भी नज़र आने लगते हैं।...
भरतपुर से 32 कि.मी. की दूरी पर जाट राजा बदन सिंह की राजधानी था डीग। सन् 1721 ई. में उन्होंने यह महल बनवाया। इस महल में बने बगीचों, फलों के पौधे, झाड़ियाँ, पेड़ तथा अनूठे डिज़ायन वाले फौवारे, दिल्ली व आगरा के मुगलों के बगीचों व महलों से प्रेरित होकर, बनवाए गए थे। ...
झुझंनू का एक उपनगर डूंडलोद, अपने किले, हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है, जिसे शासक सरदार सिंह के पुत्र केसरी सिंह ने 1750 ई. में बनवाया था। दिल्ली जयपुर तथा बीकानेर से सड़क मार्ग पर स्थित यह किला राजपूत और मुगल शैली की स्थापत्यकला का मिश्रण है। ...
मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के दरबार में मंत्री ख़ानजादा फतेहजंग की स्मृति में यह गुम्बद बनवाया गया था। बलुआ पत्थर से बने इस विशाल गुम्बद में हिन्दू मुस्लिम वास्तुकला के परिचय के साथ, गुम्बदों और मीनारों का संयोजन है।...
फतेहपुर शहर क़ायमखानी नवाब फतेह मोहम्मद ने 1508 ईस्वी में स्थापित किया था। उन्होंने 1516 में फतेहपुर के किले का निर्माण करवाया। यह शहर एक समय सीकर की राजधानी के रूप में भी जाना गया था। आज फतेहपुर शेखावाटी की लोकप्रिय सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता हैं।...
अरावली की पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा ’गढ़मोरा’ एक ऐतिहासिक नगर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण के समय में इसका प्रादुर्भाव हुआ। इसके शासक राजा मोरध्वज ने इस नगर को यह नाम दिया था।...
गर्भाजी झरना / वॉटर फॉल्स विदेशी और स्थानीय पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। चट्टान दर चट्टान नीचे गिरते हुए पानी की तेज धार वाले मनोरम दृश्य से ओतप्रोत यह जगह सुहाना समां बांधती है। ...
गायत्री शक्ति पीठ, हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी शक्ति या सती और भक्त सम्प्रदाय के मुख्य आराध्य का पवित्र पूजा स्थल है। भीलवाड़ा में, गायत्री शक्ति पीठ शहर में मुख्य बस स्टैण्ड के पास स्थित है।...
जोधपुर शहर के बीच में स्थित घंटाघर का निर्माण जोधपुर के महाराजा श्री सरदार सिंह जी (1880-1911) ने करवाया था। यहां के सबसे व्यस्त सदर बाज़ार में स्थित यह घंटाघर अद्भुत व ऐतिहासिक है। सदर बाजार देशी व विदेशी पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है। ...
गोगामेड़ी का दृष्य हनुमानगढ़ में स्थित गोगामड़ी गांव धार्मिक महत्व रखता है। श्री गोगाजी की स्मृति में आयोजित गोगामेड़ी मेला, ’गोगामेड़ी महोत्सव’ के दौरान स्थानीय लोगों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है। ...
गुडा, बिश्नोई गांव, वन्य जीवन और प्रकृति की एक अनुपम देन है। यह क्षेत्र हजारों प्रवासी पक्षियों का निवास स्थान है। झील पर दक्षिणी यूरोप और मध्य एशियाई सारस, तेंदुए, मृग और बारहसिंगा को भी देखा जा सकता है।...
उदयपुर में ग़ुलाब बाग़ (सज्जन निवास गार्डन) सबसे बड़ा बग़ीचा है 100 एकड़ में फैले हुए इस बग़ीचे में ग़ुलाब की कई प्रजातियां देखने को मिलती हैं, इसी से इसका नाम गु़लाब बाग़ पड़ा।...
टोंक से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर सवाई माधोपुर राजमार्ग पर ’हाथी भाटा’ स्थित है। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो एक ही पत्थर-चट्टान से तैयार किया गया एक विशाल हाथी का रूप है।...
टोडारायसिंह - हाड़ी रानी बावड़ी टोंक से 2 घंटे आगे सड़क मार्ग पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह बावड़ी 12वीं शताब्दी में बनाई गई है। यह आयताकार संरचना पश्चिमी तरफ से दो मंजिला बरामदे के साथ बनी है। ...
यह स्थान मेवाड़ के महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है तथा उदयपुर से 40 कि.मी. की दूरी पर है। इस घाटी की मिट्टी हल्दी के रंग जैसी पीली है, इसीलिए इसका यह नाम पड़ा। ...
अपने महत्वपूर्ण पेड़ पौधों के कारण यह हर्बल गार्डन बहुत प्रसिद्ध है। आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम में लिए जाने वाले वरूण, लक्ष्मना, शतावरी, स्टीविया, रूद्राक्ष तथा सिंदूर जैसी विविध जड़ी बूटियों वाले पौधों के कारण यह हर्बल गार्डन बड़े काम का है।
गंगानगर में स्थित हिंदुमालकोट सीमा भारत आौर पाकिस्तान को अलग करती है। बीकानेर के दीवान हिन्दुमल के सम्मान में नामित, और सीमा के पास स्थित यह पर्यटक आकर्षणों में से एक है। ...
शहर के बीचों बीच 60 फीट ऊँची भव्य मीनार ’ईसरलाट’ को स्वर्ग भेदी मीनार या ‘सरगासूली’ भी कहते हैं। राजा ईष्वरी सिंह ने 1749 ई. में इस मीनार को एक शानदार जीत की स्मृति में बनवाया था।
भीलवाड़ा से 90 किमी दूर जहाज़पुर स्थित है। शहर के दक्षिण में एक पहाड़ी के ऊपर एक विशाल किला गहरी खाई के साथ खड़ी दो प्राचीरों और उस पर अनगिनत बुर्जों के साथ समूह रूप में दिखाई पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि यह मेवाड़ की सीमाओं की रक्षा के लिए राणा कुंभा द्वारा बनाये गये किलों में से एक है।...
जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा बनवाई गई पाँच खगोलीय वेधशालाओं में सबसे विशाल है, जयपुर की यह वेधशाला। इसे जंतर मंतर कहते हैं। यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। ...
19वीं शताब्दी के अंत में निर्मित श्वेत संगमरमर का आकर्षक स्मारक, नायक जसवंत सिंह को समर्पित है। जोधपुर पर शासन करने वाले जसवंत सिंह ने अपने राज में अनेक निर्माण और विकास किए।...
जवाहर कला केन्द्र जो कि जेकेके के नाम से लोकप्रिय है, एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है। जो भारतीय संस्कृति और कला की विभिन्न शैलियों के संरक्षण और प्रचार का काम करती है। 1993 में जयपुर में स्थापित जवाहर कला केन्द्र, शहर में एक बहुत लोकप्रिय सांस्कृतिक गंतव्य है।...
लूणी नदी की उपनदी के पार निर्मित, जवाई बांध का निर्माण जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह ने करवाया था। यह पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध माना जाता है।...
सिंधु नदी की घाटी पर बना यह क्षेत्र पुरातत्व सम्पदाओं को प्रदर्शित करता है। तहसील पीलीपंगा में, कालीबंगा एक प्राचीन व ऐतिहासिक स्थल है। कहते हैं कि 4500 वर्ष पूर्व यहाँ सरस्वती नदी के किनारे हड़प्पा कालीन सभ्यता फल फूल रही थी। पुरातत्व प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण स्थान कालीबंगा सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति स्थल के कारण प्रसिद्ध है।...
रतलाम मार्ग पर स्थित पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन में उत्पन्न चौदह रत्नों में से एक कल्पवृक्ष माना गया है। मान्यतानुसार पीपल एवं वट वृक्ष तरह विशाल यह वृक्ष मनोकामनाएं साकार करता है। एक दुर्लभ वृक्ष है जिसका धार्मिक एवं सामाजिक महत्व है। ...
नाहरगढ़ पहाड़ियों की तलहटी में आमेर के रास्ते पर स्थित कनक वृंदावन पिकनिक स्थल के रूप में स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है। सुदर परिदृष्य वाले बगीचे में एक बेहद आकर्षक नक्काशीदार मंदिर है, जिसे फिल्म शूट के लिए एक ड्रीम लोकेशन भी जाना जाता है।...
जैसा कि इसके नाम से विदित है, यहाँ के शासक ’राजा खींची’ की राजकुमारी के रूप को देखकर, मुगल शासक औरंगज़ेब आसक्त हो गया था तथा उसने अपने सिपाहियों से राजकुमारी को उठा लाने का आदेश दिया था। राजकुमारी ने उसकी रानी बनने के बजाय, मृत्यु का आलिंगन करना ज़्यादा उचित समझा।...
प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर, कपिल धारा, बारां से 50 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ एक सदाबहार झरना और पास में स्थित गौमुख भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं।...
जयपुर रोड पर, इस गाँव का ग्रामीण और सांस्कृतिक जीवन बड़ा समृद्ध है। कतरियासर में बालू रेत के टीले और उन पर ढलती शाम के सूरज की रोशनी देख कर लगता है, पूरी धरती पर सोना बिखरा पड़ा है।...
खाटू में दो गांव शामिल हैं, जिन्हें ’बड़ी खाटू’ और ’छोटी खाटू’ कहते हैं। छोटी खाटू में पहाड़ी पर एक छोटा क़िला है, जिसे पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था। यहां एक पुरानी बावड़ी भी है ...
कोटा बैराज कोटा बैराज, राजस्थान राज्य में चंबल नदी पर निर्मित सबसे महत्वपूर्ण जल संग्रह स्थलों में से एक है। कोटा बैराज 27,332 वर्ग किलोमीटर क्षैत्र में फैला है, जो इसको ‘‘हैती’’ जैसा विशाल बनाता है। ...
शिकार बुर्ज़, जैत सागर रोड पर स्थित यह स्थान शाही परिवार की स्मारक छतरियों का स्थल, ’क्षार बाग’ नाम से भी जाना जाता है। यह चौथ माता मंदिर से पहले स्थित है।...
नागौर शहर में एक बड़ा क्षेत्र है कुचामन सिटी - इसमें बनी हवेलियाँ अपने अद्भुत वास्तुशिल्प में शेखावाटी हवेलियों से काफी मिलती जुलती हैं। यहाँ का क़िला देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते हैं। राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित शाही ट्रेन, ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ के पर्यटकों को भी यहाँ घुमाने लाया जाता है। ...
अनूपगढ़ से 11 कि.मी. बिन्जौर गाँव में लैला मजनू का मज़ार यानी स्मारक स्थित है। एक किंवदंती के अनुसार लैला मजनू सिंध के थे यह ज़िला अब पाकिस्तान में है। लैला के माता पिता व भाई उसके प्रेम के खिलाफ थे, इसलिए उनसे बचने के लिए लैला-मजनू भाग कर यहा आकर बस गए तथा मृत्योपरांत दोनों को एक साथ यहाँ दफनाया गया था।...
सूर्यवंशीय साम्राज्य के 24वें शासक, राजा मुचुकुंद के नाम पर इस प्राचीन और पवित्र स्थल का नाम रखा गया। शहर से लगभग 4 कि.मी. की दूरी पर, यह स्थल भगवान राम से पहले, 19वीं पीढ़ी तक, राजा मुचुकुंद के शाही कार्यस्थल के रूप में रहा। ...
शहर से आमेर के रास्ते में महारानी की छतरी, शाही परिवार की महिलाओं का अंतिम संस्कार का स्थल है। नक़्काशीदार छतरियों की संरचना, संगमरमर पत्थर से की गई है। तथा राजपूत शैली की वास्तुकला के गुम्बद बनाए गए हैं। ...
यह वागड़ विकास की भागीरथ अचंल की अविस्मरणीय सौग़ात है। बांसवाड़ा से 18 किमी की दूरी पर संभाग का यह सबसे बड़ा बाँध है, जिसमें 16 गेट हैं तथा बांध की कुल लम्बाई 3.10 किमी है।...
भीलवाड़ा शहर से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मांडल। जहां एक छतरी जगन्नाथ कच्छवाहा के स्मारक के रूप में है, जिसे बत्तीस खम्भों की छतरी के रूप में भी जाना जाता है।...
भीलवाड़ा से 54 किमी दूर स्थित इस जगह का नाम ऐतिहासिक महत्व का है। क्योंकि यह मध्य काल के दौरान कई युद्धों का साक्षी रहा है। इतिहास प्रसिद्ध हल्दी घाटी युद्ध के दौरान मुगल सम्राट अकबर ने इस स्थान पर डेरा जमाया था।...
प्राचीन समय में मध्यपूर्व और चीन के मध्य का प्राचीन व्यापारिक मार्ग का एक मुख्य केन्द्र था मंडावा। यहाँ से सामान का आदान - प्रदान किया जाता था। यहाँ के ठाकुर नवल सिंह ने नवलगढ़ और मंडावा पर शासन किया। मंडावा में एक किला बनवाया तथा किले के चारों तरफ नगर बसाया। ...
इस स्थान का प्राचीन नाम माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करता था। एक किंवदंती के अनुसार, रावण का ससुराल हुआ करता था। यहाँ सदियों से होली के दूसरे दिन रावण का मेला लगता है।...
करौली से लगभग 40 कि. मी. की दूरी पर स्थित मण्डरायल मध्य प्रदेश की सीमा से मिलता है। यहाँ पर महाराजा हरबक्श पाल द्वारा एक सैन्य रक्षक क़िले का निर्माण किया गया। ...
राजस्थान के तीन सबसे सुंदर और प्रसिद्ध उद्यानों में से एक मसूरिया हिल्स जोधपुर के मध्य में मसूरिया पहाड़ी के ऊपर स्थित है। स्थानीय देवता बाबा रामदेव को समर्पित प्राचीन मंदिर होने के कारण यह स्थल भक्तों में अति लोकप्रिय है। ...
भारतीय राजघरानों के बच्चों के लिए यह बोर्डिंग स्कूल हुआ करता था। अंग्रेजों के समय में रिचर्ड बॉर्क द्वारा 1875 ई. में मेया कॉलेज की स्थापना की गई तथा ’मेयो कॉलेज’ नाम दिया गया।...
भीलवाड़ा से 20 किलोमीटर दूर स्थित मेजा बाँध भीलवाड़ा में सबसे बड़ा बाँध है। यह अपने हर भरे बाग के लिए विख्यात है। यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण और पिकनिक स्थान है।...
भीलवाड़ा से 80 कि.मी. दूर, कोटा रोड पर नैशनल हाइवे 27 पर मेनाल अपने अलौकिक, नैसर्गिक वैभव के कारण, हजारों की संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। इस झरने के पास महानालेष्वर शिवालय है।...
महाराजा बख़्तावर सिंह की रानी - मूसी रानी की स्मृति में बनाई गई इस छतरी की वास्तुकला में भारतीय व इस्लामिक शैली का मिश्रण है। सफेद संगमरमर से बनी छतरी, इसमें 12 विशाल स्तम्भ तथा 27 अन्य स्तम्भ हैं।...
मुग़ल सम्राट बाबर के ज़माने में बनाया गया, यह गार्डन, सबसे पुराना मुग़ल गार्डन माना जाता है तथा ’बाग़-ए-नीलोफर’ के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में बग़ीचे का मूल स्वरूप नहीं रहा, परन्तु किया गया निर्माण मौजूद है।...
एशिया का अपनी तरह का एकमात्र केन्द्र, जहाँ ऊँटों का रख रखाव उन पर अनुसंधान और प्रजनन सम्बन्धित कार्य सम्पन्न होते हैं। शहर से 8 कि.मी. दूर यह केन्द्र 2000 एकड़ से अधिक भूमि पर बना है ...
झुंझनू और सीकर के बीच स्थित, नवलगढ़ अपनी सुन्दर हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कई फिल्मों की शूटिंग भी की गई है, जिसमें कुछ भारतीय तथा कुछ विदेशी फिल्में भी हैं। ...
राजा निहाल सिंह द्वारा सन् 1880 में शुरू किया गया यह टावर, स्थानीय घंटाघर के रूप में, 1910 के आस पास राजा रामसिंह द्वारा पूरा कराया गया। टाउन हॉल रोड पर बना यह घंटा घर 150 फुट ऊँचा है...
बीकानेर के शाही परिवार के राजकुमार पदम सिंह के नाम पर, इस नगर का नाम रखा गया था। गंगनहर के निर्माण के बाद, यहाँ की उपजाऊ मिट्टी में गेहूँ, बाजरा, गन्ना, दलहन, आदि की अच्छी फसलें होने पर, यह एक कृषि केन्द्र के रूप में माना जाता है। ...
शाही परिवार के सदस्यों की व्यक्तिगत सम्पत्ति होने के कारण, इसे देखने के लिए विशेष अनुमति प्राप्त करनी होती है। ’फूल सागर’ एक कृत्रिम झील है और इसके चारों तरफ हरे भरे बग़ीचे इसे और ज़्यादा ख़ूबसूरत बनाते हैं।...
यह एक हैरिटेज पार्क है तथा पूर्व में कम्पनी गार्डन के नाम से जाना जाता था। अन्य स्थानों की तुलना में अधिक ठण्डा रहने के कारण, इसे महाराजा मंगल सिंह ने सन् 1885 ई. में ’शिमला’ नाम दिया था। ...
जयपुर के प्रसिद्ध स्थलों में से एक राज मंदिर एक सिनेमा थियेटर है। इस सिनेमा हॉल का गुलाबी शहर में एक विशेष स्थान है। इस सिनेमा हॉल में हिन्दी फिल्म देखना अद्भुत अनुभव है और अपनी सीट अग्रिम में बुकिंग करवाना एक अच्छा विचार है। ...
शिक्षाविद एवम् शोधकर्ताओं का यहाँ जमावड़ा रहता है। यहाँ संरक्षित प्राचीन प्रशासनिक रिकॉर्ड, जो कि मुग़लकाल के समय के भी हैं, जिनमें अरबी, फारसी के फरमान, निशान और हस्तलिखित ग्रन्थ भी शामिल हैं, इस अभिलेखागार में संरक्षित व सुरक्षित रखे हैं। ...
यह ऐतिहासिक उद्यान महाराजा सवाई रामसिंह द्वारा 1868 में बनवाया गया था। शहर के केन्द्र में स्थित इस बगीचे में अल्बर्ट हॉल संग्रहालय (अब केन्द्रीय संग्रहालय के रूप में जाना जाता है), जन्तुआलय, चिड़ियाघर, रवीन्द्र रंगमंच (थियेटर) एक आर्ट गैलेरी और एक प्रदर्शनी मैदान है।...
भारत के सबसे वैभवशाली नगरों में से एक यह नगर 1790 ई. में पोद्दार परिवार द्वारा स्थापित किया गया था। यहाँ के पुराने मंदिर, छतरियाँ तथा हवेलियों में बने चित्रों के लिए सुविख्यात है।
पर्यटकों के लिए ‘क्वीन स्टैपवैल, रानी जी की बावड़ी,’ सन् 1699 में बूंदी के शासक राव राजा अनिरूद्ध सिंह जी की छोटी रानी नाथावती जी द्वारा बनवाई गई थी। इस बावड़ी का मुख्य द्वार, आमन्त्रण देता प्रतीत होता है। ...
सन् 1617 ई. में यह तालाब के नाम से एक ख़ूबसूरत झील, शहज़ादे शाहजहाँ के लिए शिकारगाह के रूप में बनवाई गई थी। धौलपुर से 27 कि.मी. दूर और बाड़ी से 5 कि.मी. की दूरी पर, यह झील, राजस्थान की ख़ूबसूरत झीलों में से एक है। ...
अत्यन्त सुन्दर सफेद संगमरमर से बनी सुन्दर छतरी के शिखर से, जब पानी निकल कर चारों तरफ गिरता है तो पर्यटक देख कर अभिभूत हो जाते हैं। सहेलियों की बाड़ी यहाँ का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है,...
जोहड़ा मतलब जलाशय, तालाब। राजस्थान में रगिस्तान होने के कारण शुरू से पानी की कमी रही है। इसलिए यहाँ कच्चे और पक्के जलाशय बनाए जाते थे जिनमें वर्षा का पानी एकत्र करके रखा जाता था।...
किशोर सागर के किनारे पर ही सैवन वंडर्स पार्क स्थित है। यह स्थान फिल्म शूटिंग तथा सैल्फी पॉइंट के रूप में विख्यात है। विश्व के सात अजूबे आश्चर्य के मॉडल्स यहां पर खूबसूरती से प्रर्दर्शित हैं। जिनको देखने लोग दूर दराज से कोटा आते हैं।
भीलवाड़ा से 55 कि.मी. दूर शाहपुरा कस्बा है। यह चार दरवाजे वाली दीवार से घिरा, राम स्नेही संप्रदाय के अनुयायियों के लिए सन् 1804 में स्थापित तीर्थस्थान है। इस पंथ का एक पवित्र मंदिर है जिसे रामद्वारा कहा जाता है, इस रामद्वारा के मुख्य पुजारी ही इस पंथ-सम्प्रदाय के मुखिया है। ...
शहर के मध्य में स्थित शास्त्री सर्किल नाम का एक चौराहा है। दिन के समय बेहद व्यस्त यह चौराहा रात को दमकती रोशनी और भव्य फव्वारे की मनोहारी छवि से बेहद आकर्षक प्रतीत होता है। ...
सवाईमाधोपुर से क़रीब 9 कि.मी. की दूरी पर रामसिंहपुरा गांव के पास शिल्पग्राम एवम् संग्रहालय स्थित है। यद्यपि हम इसे एक संग्रहालय के रूप में जानते हैं, तथापि यह उससे अधिक एक शिल्प गांव है जिसमें सभी भारतीय राज्यों की कला, शिल्प और संस्कृतियों की विशाल विविधता शामिल है।...
जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय की एक विशाल आकार की श्वेत संगमरमर की मूर्ति सी-स्कीम क्षेत्र में एक सर्कल के बीच में स्थित है। उनके सम्मान में खड़ी हुई ये प्रतिमा जयपुर के संस्थापक को विनम्र श्रृद्धांजलि देती है। ...
सुखाड़िया सर्कल उदयपुर के उत्तर में स्थित है। इसमें एक छोटा कुंड है जिसमें 21 फीट लम्बे संगमरमर के फव्वारे हैं। रात के प्रकाश में ये बहुत सुंदर लगते हैं। इसका निर्माण 1968 में किया गया था और 1970 में इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया था। ...
सूर्यास्त देखने के लिए मोडा पहाड़ एक लोकप्रिय स्थान है। अजीत सागर झील के तटों से लगा हुआ यह स्थान कई प्रवासी पक्षियों और बारसिंगा का घर है। इस स्थान का मनभावन प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों के लिए दर्शनीय बन पड़ा है। ...
महान धार्मिक महत्व का, सूर्य देवता के नाम पर, सूरज कुण्ड, चारों ओर से बरामदों से सुरक्षित है। यहाँ स्थानीय लोग, अपने दिवंगत रिश्तेदारों की राख प्रवाहित करने तथा देवताओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने के लिए, बड़ी मात्रा में आते हैं। ...
यहाँ एक विशालकाय शिव जी की प्रतिमा है, जिसे शाहबाद के स्थानीय लोग पूजते हैं तथा यहाँ पर्यटक भी शांति और सुकून की तलाश में आते हैं। खड़े पहाड़ इस बगीची की पहरेदारों की तरह रक्षा करते हैं। यहाँ कभी सुपारी की खेती हुआ करती थी। ...
टोंक का यह इन्स्टीट्यूट, सन् 2002 में स्थापित किया गया था। रियासत के समय में विद्वानों द्वारा हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ, धार्मिक पुस्तकें, ऐतिहासिक पुस्तकें, पेन्टिंग्स तथा सुलेखिक रेखांकन के नमूने यहाँ संग्रहीत किए गए हैं। ...
जालौर किले में बना तोपखाना बहुत अद्भुत है। यह परमार राजा भोजक द्वारा निर्मित एक संस्कृत पाठशाला थी, जो बाद में दुर्ग के मुस्लिम अधिपतियों द्वारा मस्जिद में परिवर्तित कर दी गई थी तथा इसका नाम तोपखाना मस्जिद रख दिया गया था। ...
यह महाराण कुम्भा ने मालवा और गुजरात के मुस्लिम शासकों को हराकर, अपनी विजय का जष्न मनाने और उसे चिरस्थापित करने के उपलक्ष्य में सन् 1440 ई. में बनवाना शुरू किया, जो कि 8 वर्षों में निर्मित हुआ। ...
जूलॉजिकल पार्क या जयपुर चिड़ियाघर की स्थापना सन् 1868 में सवाई राजा प्रतापसिंह ने की थी। यह पार्क राम निवास बाग में स्थित है और प्रसिद्ध अल्बर्ट हॉल से पैदल तय की जाने वाली दूरी है।...
पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा इन गाँवों का निर्माण लगभग 13वीं शताब्दी में माना जाता है। इन गाँवों के खण्डहरों को देख कर लगता है कि इनकी बहुत ही बढ़िया वास्तुकला रही होगी। सुनसान जंगल के बीच, काफी बड़े क्षेत्र में फैले, खण्डहरों में आधी अधूरी दीवारें, दरवाज़े, खिड़कियाँ दिखाई देते हैं। ...
अरावली पवर्तमाता की दो प्रसिद्ध चोटियों गुरू शिखर और अचलगढ़ के बीच में बसा है पीस पार्क, जो कि ब्रह्म कुमारियों के प्रतिष्ठान का ही एक भाग है। यह पार्क शांतिपूर्ण परिवेश और प्रशांत व निस्तब्ध वातावरण के साथ ही सुन्दर पृष्ठभूमि में सुकून भरा जीवन प्रदान करता है।...
जयपुर के रामनिवास बाग में आने पर किरण कैफे की पुराने यादें भुला पाना बहुत मुश्किल था। परन्तु अब, वह कौतूहलपूर्ण दृश्य वापस आ गया है, जिसका नाम ’मसाला चौक’ है, वो जगह जहाँ आप प्रफुल्लित होकर, जयपुर के मसालेदार मज़ेदार खाने का मज़ा ले सकते हैं। जयपुर शहर घूमने आने वाले लोगों के लिए मौज-मस्ती के लिए यह बड़ी मश्हूर जगह बन गई है।...
’सिटी ऑफ लेक्स’ के नाम से पहचाना जाने वाला शहर, उदयपुर, कई सुन्दर झीलों का घर है। यहाँ एक गाँव है मेनार, जहाँ पर सर्दी के मौसम में प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा रहता है। यहाँ के ब्रह्म तालाब और डंड तालाब, प्रवासी पक्षियों का आतिथ्य करते हैं और उन्हें आकर्षित करते हैं। यह गाँव एक अनछुआ पर्यटक आकर्षण का स्थल है तथा पक्षी प्रेमियों के लिए यह एक अच्छा पसन्दीदा विकल्प बन सकता है।...
गढ़ पैलेस, बून्दी की सीधी खड़ी चढ़ाई चढ़ते हुए जब ऊपर की तरफ चलते हैं तो हम दो मुख्य द्वारों पर पहुँचते हैं, जो कि गढ़ पैलेस के प्रवेश द्वार हैं। इन दोनों द्वारों में ’हाथी पोल’ सर्वाधिक प्रसिद्ध है। ...
सन् 2005 में जैन सम्प्रदाय / समुदाय द्वारा, जैन आचार्य तुलसी की स्मृति में बनवाया गया ‘प्रज्ञा शिखर’ एक मंदिर है जो कि पूरा का पूरा काले ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। अरावली की पहाड़ियों में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर यह मंदिर टोडगढ़ में स्थित है।...
अजमेर एक ऐसा शहर है जहाँ ब्रिटिश राज्य का आधिपत्य तथा ब्रिटिश शासन का बहुत अधिक प्रभाव था। ब्रिटिश सरकार ने अजमेर में कई रूपों में अपनी विरासत छोड़ी है।...
पृथ्वीराज स्मारक, बहादुर राजपूत ,सेना प्रमुख पृथ्वीराज चौहान तृतीय की स्मृति तथा सम्मान में बनवाया गया ’स्मृति स्मारक’ है। बारहवीं शताब्दी में चौहान वंश के अन्तिम शासक, जिन्होंने अजमेर और दिल्ली की दो राजधानियों पर शासन किया था, उनके भक्तिभाव और साहस का प्रतीक है यह स्मारक।...
अजमेर में स्थित ’आना सागर झील’ के दक्षिण पूर्व में आना सागर के किनारे पर अति सुन्दर सफेद संगमरमर के मंडप बने हुए हैं जो कि बारादरी (बारहदरी) कहलाते हैं।...