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  • डूंगरपुर

    डूंगरपुर

    पहाड़ों और नदियों का संगम स्थल

डूंगरपुर

पहाड़ों और नदियों का संगम स्थल

यहाँ के पहाड़ों में, नायाब हरे रंग का संगमरमर निकलता है, जो कि दुनियाँ भर की इमारतों में जड़ा जाता है। अरावली पहाड़ियों की तलहटी में बसा यह शहर, एक तरफ कठोर और जंगली है तो दूसरी तरफ उपजाऊ मैदानों से भरा है। जिसे हरा भरा बनाती हैं, यहाँ बहने वाली दो नदियाँ ’माही’ और ’सोम’। डूंगरपुर - सन् 1258 ई. में. मेवाड़ के शासक करण सिंह के बड़े बेटे रावल वीर सिंह द्वारा बसाया गया था। इन्होंने स्थानीय भील मुखिया डुंगेरिया को यहाँ से खदेड़ कर अपना शासन स्थापित किया और इस शहर को उत्कृष्ट वास्तुकला की संरचना से शानदार बना दिया।

डूंगरपुर में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

डूंगरपुर आएं और अद्भुत और विविध दर्शनीय स्थलों का आनंद लें। देखें, राजस्थान में बहुत कुछ अनूठा देखने को मिलता है।

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  • उदय विलास पैलेस

    उदय विलास पैलेस

    अद्भुत, अभूतपूर्व और उत्कृष्ट संरचना - उदय विलास पैलेस। महाराजा उदयसिंह द्वितीय के नाम पर उदय विलास पैलेस का नाम रखा गया था। बेजोड़ राजपूत वास्तुशिल्प शैली पर आधारित इसका मंत्रमुग्ध करने वाला रेखांकन है, जिसमें छज्जे, मेहराब और झरोखों में विस्तृत चित्रांकन किया गया है। यहां पाए जाने वाले पारेवा नामक स्थानीय नीले ’धूसर’ पत्थर से बनाई गई संुदर कलाकृति झील की ओर मुखरित है। महल को रानीवास, JUNA MAHALउदय विलास और कृष्ण प्रकाश में विभाजित किया गया है जिसे ’एकथंभिया महल’ भी कहा जाता है। एकथंभिया महल राजपूत वास्तुकला का एक वास्तविक आश्चर्य है जिसमें जटिल मूर्तिस्तम्भ और पट्टिका, अलंकृत छज्जे, जंगला, कोष्ठक वाले झरोखे, मेहराब और संगमरमर में नक़्काशियों की सजावट शामिल है। उदय विलास पैलेस आज एक हैरिटेज होटल के रूप में पर्यटकों को आकर्षित करता है तथा शाही ठाट-बाट का असीम आनन्द देता है।

  • जूना महल

    जूना महल

    राजपूती शान का प्रतीक और महल के साथ साथ गढ़ के समान सुदृढ और सुरक्षित है जूना महल। 13वीं शताब्दी में निर्मित जूना महल (ओल्ड पैलेस) एक सात मंज़िला इमारत है। यह एक ऊँची चौकी पर ’पारेवा’ पत्थर से बनाया गया है जो बाहर से एक क़िले के रूप में प्रतीत होता है। शत्रु से रक्षा हेतु यथा संभव गढ़ की प्राचीरों, विशाल दीवारों, संकरे गलियारांे और द्वारों को विराट रूप में योजनाबद्ध तरीक़े से बनाया गया है। अंदरूनी भाग में बने सुंदर भित्ति चित्रों, लघु चित्रों और नाज़ुक काँच और शीशे की सजावट का काम पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। सन् 1818 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था। यह जगह डूंगरपुर प्रिसंली स्टेट की राजधानी थी।

  • गैब सागर झील

    गैब सागर झील

    इस झील के प्राकृतिक वातावरण और कोलाहल से दूर होने के कारण यहाँ बड़ी संख्या में पक्षियों का बसेरा है। रमणीय झील गैप सागर डूंगरपुर का एक प्रमुख आकर्षण है इसके तट पर श्रीनाथ जी का मंदिर समूह है। इस मंदिर परिसर में कई अति सुंदर नक़्काशीदाार मंदिर और एक मूल मंदिर, ’विजय राजराजेश्वर’ मंदिर शामिल है। यहाँ भगवान शिव का मंदिर मूर्तिकारों के कुशल शिल्पकौशल और डूंगरपुर की बेजोड़ शिल्पकला को प्रदर्शित करता है। यहाँ के रमणीय परिवेश और ठण्डी बयार के बीच, झील में खिले हुए कमल के फूल और उन्मुक्त जल क्रीड़ा करते पक्षी मन्त्रमुग्ध करते हैं।

  • राजकीय पुरातात्विक संग्रहालय

    राजकीय पुरातात्विक संग्रहालय

    डूंगरपुर के आमझरा गाँव में, जो कि शहर से 32 कि.मी. दूर है, पुरातात्पिक महत्व की सम्पदा को संजोकर रखा गया है इस संग्रहालय में। उत्खनन के दौरान यहाँ पर गुप्तकालीन संस्कृति के अवशेष पाए गए थे। मुख्य रूप से वागड़ क्षेत्र में यह संग्रहालय राजस्थान सरकार, पुरातत्व और संग्रहालय विभाग द्वारा एकत्र की गई मूर्तियों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। डूंगरपुर शाही परिवार ने संग्रहालय को भूमि और निजी संग्रह से प्रतिमाओं और अपने ऐतिहासिक महत्वपूर्ण शिलालेखों को देकर इसे स्थापित करने में मदद की। इस संग्रह में 6ठी शताब्दी की कई देवी देवताओं की मूर्तियां, पत्थर के शिलालेख, सिक्के और चित्र शामिल हैं। गाँव में उत्खनन के दौरान प्राप्त ’महिषासुरमर्दिनी देवी’ की मूर्ति अद्भुत है।

  • बादल महल

    बादल महल

    यह महल वास्तुकला के जटिल डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध है तथा गैप सागर झील के किनारे स्थित है। पारेवा पत्थर का उपयोग करते हुए बनाया गया बादल महल, डूंगरपुर का एक नायाब महल है। गैप सागर झील पर स्थित यह महल अपने विस्तृत आलेखन और राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली की एक मिली जुली संरचना के लिए प्रसिद्ध है। स्मारक में दो चरणों में तीन गुंबद और एक बरामदा महाराज पुंजराज के शासनकाल के दौरान पूरा किया गया था। अवकाश गृह या गैस्ट हाउस के तौर पर इस महल का, राज्य के मेहमानों को ठहराने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

  • बेणेश्वर मंदिर

    बेणेश्वर मंदिर

    सोम व माही नदियों में डुबकी लगाने के बाद, बेणेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने के लिए भक्तगण समर्पण के भाव से आते हैं। इस अंचल के सर्वाधिक पूजनीय शिवलिंग बेणेश्वर मंदिर में स्थित है। सोम और माही नदियों के तट पर स्थित पांच फीट ऊँचा ये स्वयंभू शिवलिंग शीर्ष से पांच हिस्सों में बंटा हुआ है। बेणेश्वर मंदिर के पास स्थित विष्णु मंदिर, एक अत्यंत प्रतिष्ठित संत और भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले ’मावजी’ की बेटी, जनककुंवरी द्वारा 1793 ई. में निर्मित किया गया था। कहा जाता है कि मंदिर उस स्थान पर निर्मित है जहां मावजी ने भगवान से प्रार्थना करते हुए अपना समय बिताया था। मावजी के दो शिष्य ’अजे’ और ’वाजे’ ने लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण किया। यद्यपि ये अन्य देवी देवता हैं, पर लोग उन्हें मावजी, उनकी पत्नी, उनके पुत्र वधू और शिष्य जीवनदास के रूप में पहचानते हैं। इन मंदिरों के अलावा भगवान ब्रह्मा का मन्दिर भी है। माघ शुक्ल पूर्णिमा (फरवरी) यहाँ, सोम व माही नदियों के संगम पर बड़ा भारी मेला लगता है, जहाँ दूर दूर के गाँवों तथा शहरों से लोग तथा आदिवासी, पवित्र स्नान करने व मंदिर में पूजा करने आते हैं।

  • भुवनेश्वर

    भुवनेश्वर

    डूंगरपुर से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भुवनेश्वर पर्वत के ऊपर स्थित है और एक शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के समीप ही बनाया गया है। पहाड़ के ऊपर स्थित एक प्राचीन मठ की भी यात्रा की जा सकती है।

  • सुरपुर मंदिर

    सुरपुर मंदिर

    डूंगरपुर से लगभग 3 किलोमीटर दूर ’सुरपुर’ नामक प्राचीन मंदिर गंगदी नदी के किनारे पर स्थित है। मंदिर के आस पास के क्षेत्र में भूलभुलैया, माधवराय मंदिर, हाथियों की आगद और महत्वपूर्ण शिलालेख जैसे अन्य आकर्षण भी हैं।

  • विजय राजराजेश्वर मंदिर

    विजय राजराजेश्वर मंदिर

    भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित ’विजय राजराजेश्वर मंदिर’ गैप सागर झील के तट पर स्थित है। यह अपने समय की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प को प्रदर्शित करता है। मंदिर का निर्माण महाराज विजय सिंह द्वारा प्रारम्भ किया गया था एवं जिसे महारावल लक्ष्मणसिंह द्वारा 1923 ई. में पूरा किया गया। दक्षिण प्रवेश द्वार दो मंज़िला है। गर्भ गृह में एक ऊँचा गुबंद है। इसके सामने सभा मंडप है - जो 8 राजसी स्तंभों पर बनाया गया है। इसमें बीस तोरण थे जिनमें से चार अभी भी मौजूद हैं। अन्य सोम नदी में आई बाढ़ के पानी से नष्ट हो गए थे। तीर्थ यात्रियों के द्वारा कई शिलालेख हैं और सबसे पुराना 1493 ईस्वी के अंतर्गत आता है। कई योद्धाओं के अंतिम संस्कार मंदिर के समीप किए गए थे और उनके सम्मान में स्मारक बनाये गये थे। इस मंदिर की बहुत मान्यता है।

  • श्रीनाथ जी मंदिर

    श्रीनाथ जी मंदिर

    भगवान कृष्ण का यह मंदिर तीन मंजिला कक्ष मंे है, जो यहाँ स्थित तीनों मंदिरों के लिए गोध मंडप, एक सार्वजनिक कक्ष है। 1623 में महाराज पुंजराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसका प्रमुख आकर्षण श्री राधिकाजी और गोवर्धननाथ जी की मूर्तियां है। इसी परिसर में श्री बांकेबिहारी जी और श्री रामचन्द्र जी को समर्पित कई मंदिर भी हैं। पर्यटक यहाँ एक गैलेरी देख सकते हैं, जो मुख्य मंदिर में है।

  • गोध मंडप

    गोध मंडप

    गोध मंडप एक तीन मंजिला विशाल सभा मंडप है जो पास स्थित तीनों मंदिरों द्वारा आपसी उपयोग के लिए है। 64 पैरों और 12 खम्भों पर अवस्थित, यह विशाल सभा मंडप देखने योग्य है।

  • नागफन जी

    नागफन जी

    डूंगरपुर रेल्वे स्टेशन से यह दिगम्बर जैन समुदाय का मंदिर, 35 कि.मी. की दूरी पर है। नागफनजी अपने जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जो न केवल डूंगरपुर के भक्तों को आकर्षित करते हैं बल्कि दूर दूर से यात्रा पर आये पर्यटक भी इसे देखने के लिए लालायित रहते हैं। यह मंदिर देवी पद्मावती, नागफनी पार्श्वनाथ और धरणेन्द्र के प्रतिमाओं के मंदिर हैं। नागफनजी शिवालय जो इस मंदिर के नजदीक स्थित है, यह भी एक पर्यटक आकर्षण है। इस स्थान पर गुरू पूर्णिमा पर विशेष आयोजन होता है।

  • गलियाकोट

    गलियाकोट

    दसवीं शताब्दी में बाब जी मौला सैयदी फख़रूद्दीन साहब का निवास था यहाँ। दाऊदी बोहरा समाज का पवित्र स्थान है ’गलियाकोट दरगाह’। डूंगरपुर से 58 किलोमीटर की दूरी पर माही नदी के किनारे स्थित, गलियाकोट नामक एक गांव है। यह स्थान सैयद फख़रूद्दीन की मज़ार के लिए जाना जाता है। वह एक प्रसिद्ध संत थे जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद गांव में ही दफन किया गया था। यह मज़ार श्वेत संगमरमर से बनायी गयी है और उनकी दी हुई शिक्षाएं दीवारों पर सोने के पानी से उत्कीर्ण हैं। गुंबद के अन्दरूनी हिस्से को खूबसूरत स्वर्णपत्रों से सजाया गया है, जबकि पवित्र कुरान की शिक्षाओं को कब्र पर सुनहरे पन्नों में उत्कीर्ण किया गया है। मान्यताओं के अनुसार इस गांव का नाम एक भील मुखिया के नाम पर पड़ा था, जिसने यहाँ राज किया था।

  • देव सोमनाथ

    देव सोमनाथ

    देवगाँव में स्थित यह मंदिर, अपनी बनावट के लिए प्रसिद्ध है। तीन मंज़िलों में बना यह मंदिर, 150 स्तम्भों पर खड़ा है। देव सोमनाथ के नाम पर 12वीं सदी में बना सोम नदी के किनारे पर एक पुराना और सुंदर शिव मंदिर है। सफेद पत्थर से बने, मंदिर में ऊँचे बुर्ज़ बनाये गये हैं। कोई भी मंदिर से आकाश को देख सकता है। यद्यपि चिनाई में प्रत्येक भाग अपने सही स्थान पर मजबूती से टिकाया गया है, फिर भी यह आभास देता है कि प्रत्येक पत्थर ढह रहा है। मंदिर में 3 निकास हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक गुंबद में एक नक़्काशीदार कमल खिले हैं, जबकि सबसे बड़े गुंबद में तीन कमल खिले हैं। सावन के महीने में यहाँ बड़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।

  • बोरेश्वर

    बोरेश्वर

    1179 ईस्वी में महाराज सामंत सिंह के शासनकाल में ’बोरेश्वर महादेव’ मंदिर का निर्माण हुआ था। यह सोम नदी के तट पर स्थित है।

  • क्षेत्रपाल मंदिर

    क्षेत्रपाल मंदिर

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला 200 वर्ष पुराना यह मंदिर ’खाडगढ़’ में स्थित है। इस मंदिर की लोकप्रियता भैरव देवी के मंदिर होने के कारण है। इस मंदिर के चारों ओर अन्य छोटे मंदिर हैं, जिनमें देवी गणपति, भगवान शिव, देवी लक्ष्मी और भगवान हनुमान स्थापित हैं।

डूंगरपुर के उत्सव और परम्पराओं के आंनद में सम्मिलित हों। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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  • बेणेश्वर मेला

    बेणेश्वर मेला

डूंगरपुर में गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजस्थान में करने के लिए सदैव कुछ निराला है।

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  • मंदिर दर्शन

    मंदिर दर्शन

    डूंगरपुर में कई प्राचीन और आकर्षक मंदिर हैं। सोम नदी के तट पर देवस्थान नामक मंदिर है, जो 12वीं शताब्दी में बनाया गया था और यह पूरी तरह से श्वेत पत्थर का बना है। नागफनजी के अलावा, एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है - ’सुरपुर मंदिर’ एक और आकर्षक गंतव्य स्थल है जिसके पास में कई दर्शनीय स्थान हैं जैसे भूलभुलैया, माधवराय मंदिर और हाथियों की आगद हैं।

  • महल अवलोकन

    महल अवलोकन

    डूंगरपुर महल अपने सुंदर स्थापत्य, आलेखन और उनके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले रंगीन पत्थरों के लिए जाने जाते हैं। बादल महल, एकथंबिया महल और जूना महल कुछ ऐसे प्रसिद्ध नाम हैं जो प्रत्येक पर्यटक को देखने चाहिएं।

यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon 120 किलोमीटर की दूरी पर, उदयपुर निकटतम हवाई अड्डा है और अहमदाबाद 175 किलोमीटर दूर है।
  • Car Icon राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8, जो दिल्ली, मुम्बई के बीच से गुज़रता है और राज्य का राजमार्ग (सिरोही, रतलाम राजमार्ग) ज़िले से गुज़रता है।
  • Train Icon रेलवे स्टेशन शहर से 3 किलोमीटर दूर है। महत्वपूर्ण रेल संपर्क मार्ग हिम्मतनगर डूंगरपुर, उदयपुर हैं।

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डूंगरपुर के समीप देखने योग्य स्थल

  • उदयपुर

    107 कि.मी.

  • चित्तौड़गढ़

    221 कि.मी.

  • कोटा

    396 कि.मी.