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  • जालौर

    जालौर

    ग्रेनाइट और गौरव की नगरी

जालौर

ग्रेनाइट और गौरव की नगरी

प्राचीनकाल में ‘जाबलिपुर’ के नाम से पहचान बनाने वाला जालौर उपनदी ‘सुकरी’ के दक्षिण में स्थित है। यह जिला राजपुताना के समय बड़ी रियासतों में से एक था। 12वीं शताब्दी में यह चौहान गुर्जर की राजधानी बना और ’सुवर्णगिरी’ कहलाया। इसका निर्माण परमारों द्वारा कराया गया था। स्वर्णगिरी एक पहाड़ी है जो कि एक जैन तीर्थस्थल है। यहाँ पद्मासन मुद्रा में बैठे भगवान महावीर की श्वेत प्रतिमा है, जिसकी स्थापना 1221 वि.सं. में की गई थी। मूल रूप से एक छोटा सा शहर, अनेक खदानों के लिए विख्यात जालौर, दुनिया में बेहतरीन ग्रेनाइट सप्लाई करने के लिए प्रमुखता से जाना जाता है। औद्योगिक विकास ने जालौर को कई गुना बढ़ने में मदद की है। जालौर किले में ‘तोपखाना’ या तोप ढ़लाई-घर, जालौर का सबसे बड़ा पर्यटक आकर्षण है और यह शहर के महत्व को बढ़ाता है। यह शहर ’सुन्दर माता मंदिर’ के लिए भी प्रसिद्ध है जो लगभग 900 साल पहले बनाया गया था और ये देवी, चामुंडा के भक्तों के लिए पावन स्थल है। माना जाता है कि 8वीं ईस्वी शताब्दी में स्थापित हुआ जालौर, मूल रूप से ’संत महर्षि जाबली’ के सम्मान में जाबलिपुर कहलाता था। शताब्दियों तक कई गुटों ने गुर्जर प्रतिहार, परमार और चौहान के साथ जालौर पर शासन किया, परन्तु फिर इस शहर पर दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन-खिलजी ने कब्जा कर लिया और इसे नष्ट कर दिया। 4 शताब्दियों के बाद शहर 1704 में मारवाड़ के शासक के पास आया।

जालौर में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

आइए, जालौर के आश्चर्यों और दर्शनीय स्थलों का आनंद लें - राजस्थान में हमेशा कुछ नया-नवेला देखने को मिलता है।

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  • जालौर किला

    जालौर किला

    यहाँ के किले और महलों में ज़्यादा सजावट देखने को नहीं मिलती। यहाँ के सबसे प्रतापी शासक ’कानददेव सोनगरा’ हुए हैं। जिन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के कई बार दांत खट्टे किए। खिलजी ने कानददेव से बदला लेने के लिए कई दाँव-पेंच लगाए, परन्तु अन्त में वह कानददेव और उनके पुत्र वीरमदेव की वीरता का कायल हो गया। शहर का मुख्य आकर्षण जालौर का किला है। यह वास्तुकला का एक प्रभावशाली प्रतीक है और माना जाता है कि 8वीं और 10वीं शताब्दियों के बीच इसका निर्माण किया गया था। किला लगभग 336 मीटर की ऊँचाई पर खड़ी पहाड़ी के ऊपर स्थित है और नीचे शहर का अति सुदर दृश्य पेश करता है। किले की मुख्य विशेषताएं इसकी ऊँची दीवारें और गढ़ हैं। किले के चार बड़े द्वार हैं लेकिन दो मील की लंबी घुमावदार चढ़ाई के बाद केवल एक तरफ से जाने का मार्ग है।

  • तोपखाना

    तोपखाना

    जालौर किले में बना तोपखाना बहुत अद्भुत है। यह परमार राजा भोजक द्वारा निर्मित एक संस्कृत पाठशाला थी, जो बाद में दुर्ग के मुस्लिम अधिपतियों द्वारा मस्जिद में परिवर्तित कर दी गई थी तथा इसका नाम तोपखाना मस्जिद रख दिया गया था। जालौर शहर के बीचों बीच स्थित तोपखाना, कभी एक भव्यशाली संस्कृत विद्यालय था। जिसे राजा भोज ने 7वीं और 8वीं शताब्दियों के बीच बनवाया था। राजा भोज जो स्वयं संस्कृत के एक अच्छे विद्वान् थे, उन्होंने अजमेर और धार में शिक्षा प्रदान करने के लिए इसके समान कई विद्यालय बनवाए थे। आजादी के पूर्व की अवधि के दौरान अधिकारियों ने तोपखाने के रूप में गोला बारूद के संग्रह आौर निर्माण के लिए इमारत का इस्तेमाल करने के बाद, स्कूल का नाम बदलकर तोपखाना रख दिया था। यद्यपि आज इस भवन का स्थापत्य जीर्ण-शीर्ण हालत में है, लेकिन अभी भी ये अत्यंत प्रभावशाली है और पत्थर की नक्काशियों से सजा है। तोपखाना दोनों तरफ से दो मंदिरों के मध्य स्थित है जिनमें अब मूर्तियाँ स्थापित नहीं हैं। माना जाता है कि तोपखाना का सबसे प्रभावशाली स्थल एक कमरा है जो भवन के फर्श से 10 फीट ऊपर एक भव्य सीढ़ी के साथ बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि यह स्कूल के हैडमास्टर का निवास स्थान है।

  • मलिक शाह की मस्जिद

    मलिक शाह की मस्जिद

    अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर अपने शासन के दौरान, बगदाद के सुल्तान मालिक शाह के सम्मान में यह मस्जिद बनवाई थी। यह मस्जिद अपनी अनूठी स्थापत्यकला के लिए प्रसिद्ध है। इसकी बनावट, गुजरात में बने भवनों से काफी प्रभावित है।

  • श्री मंदिर

    श्री मंदिर

    रावल रतन सिंह द्वारा, महर्षि जाबली के सम्मान में, यह मंदिर कलशचल पहाड़ी पर 646 मीटर ऊँचाई पर बनवाया गया था। एक किंवदंती के अनुसार इस मंदिर में एक बार पांडवों ने शरण ली थी। मंदिर का मार्ग जालौर शहर के बीच से गुजरता है तथा मंदिर तक जाने के लिए 3 कि.मी. पैदल चलना पड़ता है।

  • सुंधा माता मंदिर

    सुंधा माता मंदिर

    अरावली रेंज में सुंधा पर्वत के ऊपर स्थित, सुंधा माता मंदिर है। यह मंदिर समुद्र तल से ऊपर 1220 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया है और पूरे भारत के भक्तों द्वारा बहुत पवित्र माना जाता है। यहाँ चामुंडा देवी की एक प्रतिमा है। मंदिर के सफेद संगमरमर के बने खंभे माउंट आबू के दिलवाड़ा मंदिर की याद दिलाते हैं। इस मंदिर में ऐतिहासिक महत्व के कुछ शिलालेख भी हैं।

जालौर के उत्सव और परम्पराओं के आंनद में सम्मिलित हों। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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जालौर में गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजस्थान में करने के लिए सदैव कुछ निराला है।

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यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon 140 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है, जो देश भर के मुम्बई, दिल्ली और अन्य प्रमुख महानगरों से दैनिक उड़ानों के साथ जुड़ा है।
  • Car Icon जालौर राजस्थान के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कोई भी जोधपुर, जयपुर, अजमेर, अहमदाबाद, सूरत और मुम्बई से निजी बस का विकल्प चुन सकता है।
  • Train Icon जालौर जोधपुर डिवीजन नेटवर्क से जुड़ा है। गुजरात और मुम्बई से कई ट्रेनें पूरे सप्ताह जालौर रेलवे स्टेशन पर रूकती हैं।

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जालौर के समीप दर्शनीय स्थल

  • पाली

    172 कि.मी.

  • बाड़मेर

    130 कि.मी.

  • उदयपुर

    219 कि.मी.