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  • जयपुर

    जयपुर

    जल महल

जयपुर

गुलाबी शहर

जयपुर की स्थापना सन् 1727 में की गई थी। आमेर के राजा जयसिंह द्वितीय द्वारा इस शहर का निर्माण करवाया गया। बढ़ती आबादी और पानी की कमी के कारण उन्होंने अपनी राजधानी को आमेर से इस नए शहर जयपुर में स्थानान्तरित कर दिया। इस शहर की बसावट तथा वास्तु, प्रसिद्ध वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य के सिद्धान्तों के अनुरूप की। 1876 में जयपुर के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया जब प्रिंस ऑफ वेल्स ने भारत का दौरा किया। उनके स्वागत के लिए, तत्कालीन महाराजा रामसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी (हिर्मिची) रंग में रंगवाया। आमेर, नाहरगढ़ और जयगढ़ के किले तथा गुलाबी नगर जयपुर स्वागत के लिए तैयार हो गया। सारी दुनियाँ में अपनी तरह का पहला नियोजित शहर बना जयपुर। अपने रंग-बिरंगे रत्नों और आभूषणों के लिए प्रसिद्ध, राजस्थान की राजधानी अपने वैभवपूर्ण इतिहास के साथ, सबसे बड़ी पर्यटन नगरी बन गया है। पारंपरिक तथा आधुनिकता का सम्मिश्रण, इस शहर की संस्कृति को अभूतपूर्व बनाता है। पर्यटन के स्वर्णिम त्रिकोण (गोल्डन-ट्राएंगल) का एक कोण, जयपुर है - जिसमें दिल्ली, आगरा और जयपुर शामिल हैं।

जयपुर में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

जयपुर आएं और अद्भुत और विविध दर्शनीय स्थलों का आनंद लें। देखें, राजस्थान में बहुत कुछ अनूठा देखने को मिलता है।

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  • लाइट एवं साउंड शो - जयनिवास उद्यान

    लाइट एवं साउंड शो - जयनिवास उद्यान

    शो में जयपुर राजा के सपनों में भगवान श्री कृष्ण का आना और वृदांवन से गोविन्द देव जी की प्रतिमा को लाकर जयपुर में स्थापित करना, गोविन्द देव जी मूर्ति के सम्बद्ध में भूतकाल में हुये वृतांत, गोविन्द देव जी का वृन्दावन में प्रवास, आक्रांताओ द्वारा गोविन्द देव जी वृंदावन मंदिर को तोडना, वृदांवन से जयपुर तक गोविन्द देव जी की मूर्तियों को छिपाकर लाना, कनक वृन्दावन में गोविन्द देव जी की मूर्तियों को अस्थायी रूप से स्थापित करना, उसके बाद जयनिवास उद्यान में स्थापति करना, गोविन्द देव जी को जयपुर की जनता द्वारा जयपुर के प्रथम आराध्य के रूप में पूजना, आदि का चित्रण 3 डी वीडियो प्रोजेक्शन आधारित लाइट एवं साउंड शो किया गया है।

  • आमेर  महल

    आमेर महल

    जयपुर से 11 कि.मी. की दूरी पर पुरानी राजधानी आमेर, अपने किले और स्थापत्य के लिए, पर्यटकों का मुख्य आकर्षण है। यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर’ सूची में शामिल, पूर्व में कच्छवाहा राजपूतों की राजधानी आमेर महल, ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यह हिन्दू व मुगल शैली का सुन्दर मिश्रण है। आमेर का महल सन् 1592 में राजा मानसिंह प्रथम ने दुश्मनों से मुकाबला और बचाव करने के लिए बनवाया था। आमेर महल का आंतरिक भाग, लाल बलुआ पत्थर तथा संगमरमर से बनाया गया तथा इसमें नक्काशी का कार्य बहुमूल्य पत्थरों की जड़ाई, मीनाकारी का काम, पच्चीकारी काम, जगह-जगह लगे बड़े बड़े दर्पण, इसकी भव्यता को चार चाँद लगाते हैं। मावठा झील में आमेर किले व महल का प्रतिबिम्ब और इसके नीचे की तरफ बनी ’केसर क्यारी’ को देखकर पर्यटक आनन्दित होते हैं। महल का अतीत सात सदी पुराना है।

  • सिटी पैलेस

    सिटी पैलेस

    महाराजा जयसिंह द्वितीय ने सिटी पैलेस की संचरनाओं के निर्माण के साथ साथ, इसकी भव्यता को भी बढ़ाया। परकोटे वाले शहर के बीच स्थित, सिटी पैलेस कॉम्प्लैक्स की कल्पना और निर्माण करवाने का श्रेय, जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय को जाता है। मुगल व राजपूत शैली का सम्मिश्रण इस महल को अद्वितीय बनाता है। इसमें मुबारक महल, महारानी का महल तथा कई अन्य छोटे महल, चौक और चौबारे हैं। मुबारक महल में अब महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय बना दिया गया है, जिसमें शाही पोशाकें, अद्भुत पश्मीना शॉल, बनारसी साड़ियाँ, रेशमी वस्त्र, जयपुर के सांगानेर प्रिंटेड कपड़े और अन्य बहुमूल्य रत्न जड़ित कपड़े रखे हुए हैं। महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम तथा महारानियों के वस्त्रों का संग्रह भी यहाँ देख सकते हैं। महारानी पैलेस में सुसज्जित अस्त्र शस्त्र, कवच, ज़िरह-बख्तर आदि रखे हैं। महल की छत सुन्दर पेन्टिंग से सजाई गई है।

  • जंतर - मंतर

    जंतर - मंतर

    जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा बनवाई गई पाँच खगोलीय वेधशालाओं में सबसे विशाल है, जयपुर की यह वेधशाला। इसे जंतर मंतर कहते हैं। यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इसमें बनाए गए जटिल यंत्र, समय को मापने, सूर्य की गति व कक्षाओं का निरीक्षण तथा आकाशीय पिंडों के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक जानकारी देते हैं। पर्यटकों को वेधशाला के सम्बन्ध में बताने के लिए यहाँ विशेषज्ञ मौजूद हैं।

  • हवा महल

    हवा महल

    बाहर की तरफ से भगवान कृष्ण के मुकुट जैसा दिखाई देने वाला यह महल अनूठा है। सन् 1799 ई. में महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा बनवाया गया यह महल पाँच मंजिला है तथा इसका डिज़ाइन वास्तुकार लालचंद उस्ता द्वारा तैयार किया गया था। गुलाबी शहर का द्योतक हवा महल, बलुआ पत्थर से राजस्थानी वास्तुकला और मुगल शैली का मिश्रण है। इसकी दीवारें सिर्फ डेढ़ फुट चौड़ी हैं तथा 953 बेहद सुन्दर आकर्षक छोटे छोटे कई आकार के झरोखे हैं। इसे बनाने का मूल उद्देश्य था कि शहर में होने वाले मेले-त्यौहार तथा जुलूस को महारानियाँ इस महल के अन्दर बैठकर देख सकें। हवा महल गर्मी के मौसम में भी इन झरोखों के कारण वातानुकूलित रहता है। इसके आंगन में पीछे की तरफ एक संग्रहालय भी है।

  • अल्बर्ट हॉल  (सेंट्रल म्यूजियम)

    अल्बर्ट हॉल (सेंट्रल म्यूजियम)

    सन् 1876 ई. में प्रिंस ऑफ वेल्स ने इसकी आधारशिला रखी थी। इसका नाम लंदन के अल्बर्ट संग्रहालय के नाम पर रखा गया था। सर स्विन्टन जैकब द्वारा इसका डिज़ाइन बनवाया था तथा इंडो-सार्सेनिक स्थापत्य शैली के आधार पर इसका निर्माण करवाया गया। रामनिवास बाग के बीच में यह अल्बर्ट हॉल की अभूतपूर्व और मनमोहक इमारत, हर मौसम में पर्यटकों को आकर्षित करती है। इसमें जयपुर कला विद्यालय, कोटा, बूंदी, किशनगढ़ और उदयपुर शैली के लघु चित्रों का बड़ा संग्रह है। धातु की वस्तुएं, लकड़ी के शिल्प, कालीन, मूर्तियाँ, हथियार, बहुमूल्य पत्थर, हाथी दांत का सामान - सभी कुछ दर्शनीय हैं।

  • नाहरगढ़ क़िला

    नाहरगढ़ क़िला

    अंधेरी रात में, तारों की छाँव में, नाहरगढ़ किले से जयपुर शहर का विहंगम, अभूतपूर्व, अद्भुत और मदमस्त नजारा, सारी दुनियां में और कहीं नहीं मिलेगा। शहर की रौशनी को देखकर लगता है, तारे जमीन पर उतर आए हैं। सन् 1734 ई. में महाराजा जयसिंह के शासनकाल के दौरान इस किले का निर्माण किया गया, जो कि शहर का पहरेदार मालूम होता है। नाहरगढ़ यानि शेर का किला। इस किले में बनाए गए माधवेन्द्र भवन को ग्रीष्म काल में महाराजा के निवास के रूप में काम में लिया जाता था। रानियों के लिए आरामदेय बैठक तथा राजा के कक्षों का समूह, आलीशान दरवाजों, खिड़कियों और भित्तिचित्रों से सजाया गया, नाहरगढ़ अतीत की यादों को समेटे शान से खड़ा है। अभी हाल ही में महल में एक स्कल्पचर आर्ट गैलरी भी बनवाई गई है। नाहरगढ़ यानि षेर का किला। इस किले में बनाए गए माधवेन्द्र भवन को ग्रीष्म काल में महाराजा के निवास के रूप में काम में लिया जाता था। रानियों के लिए आरामदेय बैठक तथा राजा के कक्षों का समूह, आलीषान दरवाजों, खिड़कियों और भित्तिचित्रों से सजाया गया, नाहरगढ़ अतीत की यादों को समेटे षान से खड़ा है। अभी हाल ही में महल में एक स्कल्पचर आर्ट गैलरी भी बनवाई गई है।

  • जयगढ़ फोर्ट

    जयगढ़ फोर्ट

    सन् 1726 में, महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा यह किला आमेर की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। इसमें बने शस्त्रागार, अनूठा शस्त्र संग्रहालय, तोपें बनाने का कारखाना तथा विश्व की सबसे बड़ी तोप ‘जयवाण’ के कारण, राजस्थान में आने वाला प्रत्येक पर्यटक, जयपुर आकर इस तोप को जरूर देखना चाहता है। इस तोप को एक बार चलाया गया था जिससे शहर से 35 कि.मी. दूर एक तालाब का गड्ढा बन गया था। इसकी लम्बाई 31 फीट 3 इंच है तथा वजन 50 टन है। इसके 8 मीटर लंबे बैरल में 100 किलो गन पाउडर भरा जाता था।

  • बिड़ला मंदिर

    बिड़ला मंदिर

    लक्ष्मी नारायण मंदिर, जो कि बिड़ला मंदिर नाम से अधिक लोकप्रिय है, मोती डूंगरी की तलहटी में स्थित है। ऊँचे भूभाग पर अपेक्षाकृत आधुनिक रूप से निर्मित यह मंदिर पूरी तरह से श्वेत संगमरमर का बना है। मंदिर को 1988 में प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति बिड़ला द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर भगवान विष्णु, जिन्हें नारायण भी कहते हैं, को समर्पित है। उनके साथ ही धन और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी है। यह मंदिर कला की एक नायाब रचना है। कई पौराणिक विषयों को शामिल करती अति सुंदर नक्काशी और मूर्तियां भी यहाँ शामिल हैं। रात में इस पर की गई रौशनी बेहद आकर्षक लगती है। मुख्य मंदिर के अतिरिक्त एक संग्रहालय है जो बिड़ला परिवार के पूर्वजों की यादगार को दर्शाता है।

  • सिसोदिया रानी महल और बाग़

    सिसोदिया रानी महल और बाग़

    जयपुर से ८ किलोमीटर की दूरी पर आगरा रोड पर स्थित सिसोदिया रानी महल और बाग़ मुगल शैली से सजा – संवरा है।राधा और कृष्ण की लीलाओं के साथ चित्रित इस बहु-स्तरीय उद्यान में फव्वारे, पानी के झरने और चित्रित मंडप हैं। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने इसे अपनी सिसोदिया रानी के लिए बनाया था।

  • जल महल

    जल महल

    मानसागर झील के बीच में बना अद्भुत जलमहल, पानी पर तैरता प्रतीत होता है। इसकी पाल (किनारे) पर रोजाना स्थानीय तथा विदेशी पर्यटक मनमोहक नजारा देखने आते हैं। रात के समय जलमहल रंग बिरंगी रौशनी में परी लोक सा लगता है। महाराजा जयसिंह द्वितीय द्वारा 18वीं सदी में बनवाया गया, ’रोमांटिक महल’ के नाम से भी जाना जाता है। राजा अपनी रानी के साथ इस महल में खास वक्त बिताने आते थे तथा राजसी उत्सव भी यहाँ मनाए जाते थे। इसके चारों कोनों पर बुर्जियां व छतरियां बनी हैं। बीच में बारादरी, संगमरमर के स्तम्भों पर आधारित है।

  • सैन्ट्रल पार्क

    सैन्ट्रल पार्क

    सैन्ट्रल पार्क जयपुर के केन्द्र में स्थित बड़ा हरा-भरा क्षेत्र है, जो शहर के निवासियों को राहत के पलों के लिए एक स्थान प्रदान करता है। जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा निर्मित यह जयुपर का सबसे बड़ा पार्क है। यहाँ सुकून देते उद्यान, पोलो ग्राउण्ड और एक गोल्फ क्लब भी है। पार्क का मुख्य आकर्षण भारत का पहला सबसे ऊँचा राष्ट्रीय ध्वज है।

  • हैंड प्रिंटिंग का संग्रहालय “अनोखी”

    हैंड प्रिंटिंग का संग्रहालय “अनोखी”

    आमेर की ओर जाती सीढ़ी वाली सड़क से केवल दस मिनट की पैदल दूरी पर ही हैंड प्रिंटिंग के लिए विख्यात अनोखी संग्रहालय है। एक भव्य पुनर्स्थापित हवेली में स्थित ये संग्रहालय चित्र, उपकरण और संबंधित वस्तुओं के साथ विभिन्न चयनित ब्लॉक-मुद्रित वस्त्रों को प्रदर्शित करता है। जटिल प्राचीन परंपरा का गहराई से अवलोकन करने के लिए सभी इस स्थान को चुनते हैं।

  • गोविन्द देव जी मंदिर

    गोविन्द देव जी मंदिर

    श्री गोविन्द देव जी की आकर्षक प्रतिमा सवाई जयसिंह वृन्दावन से जयपुर लाए थे। जो यहाँ पूरे सम्मान से शहर के परकोटे में स्थित श्री गोविन्द देव जी मंदिर में स्थापित की गई। शाही परिवार और स्थानीय लोगों द्वारा पूजनीय गोविन्द देवजी में सात झांकियों के माध्यम से दर्शन की समुचित व्यवस्था है।

  • मोतीडूंगरी गणेश मंदिर

    मोतीडूंगरी गणेश मंदिर

    जयपुर वासियों के लिए बुधवार को गणेश मंदिर जाना एक आदत बन गई है। जब तक यहाँ पूजा न की जाए उनका दिन सफल नहीं होता। 18वीं सदी में सेठ जयराम पालीवाल द्वारा इसका निर्माण शुरू किया गया था। हिन्दू धर्म के प्रथम पूज्य गणेश जी के मंदिर में लोग, कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले आशीर्वाद लेने आते हैं। इस मंदिर के पास ही पहाड़ी पर मोती डूंगरी महल स्थित है, जो कि एक स्कॉटिश महल का प्रतिरूप है। यहाँ महाराजा सवाई मानसिंह अपने परिवार के साथ रहा करते थे।

  • दिगम्बर जैन मंदिर

    दिगम्बर जैन मंदिर

    जयपुर का प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर शहर से 14 किमी दूर सांगानेर में स्थित है। संघीजी मंदिर में प्रमुख विग्रह भगवान आदिनाथ पद्मासन (कमल स्थिति) मुद्रा में है। यह आकर्षक नक्काशियों से बना लाल पत्थर का मंदिर है। सात मंजिला मंदिर में आसमान छूते शिखर हैं।

  • गलता जी

    गलता जी

    गलता जी जयपुर का एक प्राचीन तीर्थ स्थान है। यह गालव ऋषि की तपोस्थली है। गलता जी स्थित कुंड में स्नान का धार्मिक महत्व है। तीर्थ यात्री यहाँ पवित्र स्नान हेतु आते हैं। इस आकर्षक जगह में मंदिर, मंडप और पवित्र कुंड (प्राकृतिक झरने और पानी के कुण्ड) हैं। गलता जी आने के लिए आगंतुक पहले रामगोपाल जी मंदिर परिसर में आते हैं, जिसे स्थानीय रूप में ’बंदर मंदिर’ (गलवार बाग) कहा जाता है। इसे ये नाम यहां के निवासी ’बंदरों के एक बड़े समूह’ की वजह से मिला। हरियाली का खूबसूरत नजारा और उछलते कूदते बंदर क्षेत्र के खुशनुमा माहौल में इजाफा करते हैं। पहाड़ी की चोटी पर सूर्य देव को समर्पित एक छोटा मंदिर है, जिसे ’सूर्य मंदिर’ कहा जाता है। दीवान कृपाराम द्वारा निर्मित ये मंदिर शहर के लोगों के लिए पूजनीय है।

  • स्टेच्यु सर्किल

    स्टेच्यु सर्किल

    जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय की एक विशाल आकार की श्वेत संगमरमर की मूर्ति सी-स्कीम क्षेत्र में एक सर्कल के बीच में स्थित है। उनके सम्मान में खड़ी हुई ये प्रतिमा जयपुर के संस्थापक को विनम्र श्रृद्धांजलि देती है। इसके चारों तरफ सुन्दर पार्क विकसित किया गया है।

  • रामनिवास बाग

    रामनिवास बाग

    यह ऐतिहासिक उद्यान महाराजा सवाई रामसिंह द्वारा 1868 में बनवाया गया था। शहर के केन्द्र में स्थित इस बगीचे में अल्बर्ट हॉल संग्रहालय (अब केन्द्रीय संग्रहालय के रूप में जाना जाता है), जन्तुआलय, चिड़ियाघर, रवीन्द्र रंगमंच (थियेटर) एक आर्ट गैलेरी और एक प्रदर्शनी मैदान है।

  • जूलॉजिकल पार्क

    जूलॉजिकल पार्क

    जूलॉजिकल पार्क या जयपुर चिड़ियाघर की स्थापना सन् 1868 में सवाई राजा प्रतापसिंह ने की थी। यह पार्क राम निवास बाग में स्थित है और प्रसिद्ध अल्बर्ट हॉल से पैदल तय की जाने वाली दूरी है।

  • कनक वृन्दावन

    कनक वृन्दावन

    नाहरगढ़ पहाड़ियों की तलहटी में आमेर के रास्ते पर स्थित कनक वृंदावन पिकनिक स्थल के रूप में स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है। सुंदर परिदृश्य वाले बगीचे में एक बेहद आकर्षक नक्काशीदार मंदिर है, जिसे फिल्म शूट के लिए एक ड्रीम लोकेशन भी जाना जाता है।

  • ईसरलाट  (सरगासूली)

    ईसरलाट (सरगासूली)

    शहर के बीचों बीच 60 फीट ऊँची भव्य मीनार ’ईसरलाट’ को स्वर्ग भेदी मीनार या ‘सरगासूली’ भी कहते हैं। राजा ईश्वरी सिंह ने 1749 ई. में इस मीनार को एक शानदार जीत की स्मृति में बनवाया था। त्रिपोलिया गेट के निकट स्थित इस मीनार में अन्दर की तरफ ऊपर तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं, जिनसे चढ़कर ऊपर से जयपुर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

  • अमर जवान ज्योति

    अमर जवान ज्योति

    अमर जवान ज्योति या ’अमर सैनिकों की लौ’, राजस्थान के शहीदों को समर्पित एक स्मारक है। अमर जवान ज्योति जयपुर में नए विधानसभा भवन के पास स्थित है। अमर जवान ज्योति राजस्थान के सैनिकों के गर्व और गौरव का प्रतीक है। इसके चारों कोनों में ज्योति प्रज्जवलित हैं। शाम के समय अमर जवान ज्येाति रंगों की आकर्षक छटा बिखेरती है। शाम की रौशनी से बढ़ी इसकी सुरम्यता, इसे पर्यटकों की एक पंसदीदा जगह बनाती है।

  • महारानी की छतरी

    महारानी की छतरी

    शहर से आमेर के रास्ते में महारानी की छतरी, शाही परिवार की महिलाओं का अंतिम संस्कार का स्थल है। नक़्काशीदार छतरियों की संरचना, संगमरमर पत्थर से की गई है। तथा राजपूत शैली की वास्तुकला के गुम्बद बनाए गए हैं। एक धारणा के अनुसार यह माना जाता था कि अगर रानी की मृत्यु अपने राजा के जीवित रहते तक हो गई तो इस छतरी की छत को पूरा बनाया जाएगा वरना यह छत अधूरी बनाई जाती थी।

  • नाहरगढ़ जैविक उद्यान

    नाहरगढ़ जैविक उद्यान

    जयपुर दिल्ली राजमार्ग पर जयपुर से लगभग 12 कि.मी. दूर स्थित नाहरगढ़ जैविक उद्यान, नाहरगढ़ अभ्यारण्य का एक हिस्सा है। यह अरावली रेंज के अन्तर्गत 720 हैक्टेयर का एक बड़ा क्षेत्र है। उद्यान अपने विशाल वनस्पतियों और जीवों के लिए प्रसिद्ध है और उसका मुख्य उद्देश्य इनका संरक्षण करना है। यह लोगों को उपयोगी जानकारी देने और मौजूदा वनस्पतियों और जीवों पर शोध करने के लिए एक उपयुक्त जगह है। नाहरगढ़ जैविक उद्यान में पक्षी विज्ञानी 285 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों को देखने की उम्मीद कर सकते हैं, जिनमें से सबसे लोकप्रिय श्वेत गर्दन वाली फुदकी है। उद्यान की सैर करते हुए रामसागर के समीप जाएं, विभिन्न प्रकार के पक्षियों को देखने के लिए एक शानदार जगह है। नाहरगढ़ जंतु उद्यान बेहद शानदार स्थल है और एशियाई मोर, बंगाल टाइगर, लॉयन एवम् पैंथर, लक्कड़बग्घे, भेड़िये, हिरण, मगरमच्छ, भालू, हिमालयी काले भालू, जंगली सूअर आदि जानवरों का घर है।

  • जयपुर वैक्स म्यूजियम

    जयपुर वैक्स म्यूजियम

    नाहरगढ़ किले के दायरे में अरावली की तलहटी में, जयपुर वैक्स संग्रहालय है, जिसकी यात्रा आपको विस्मय से भर देगी। यह संग्रहालय एंटरटेनमेंट 7 वेन्चर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया है। 30 प्रसिद्ध व्यक्तियों की मोम प्रतिमाओं को संग्रहालय में रखा गया है। मोम संग्रहालय में अमिताभ बच्चन, महात्मा गांधी, भगत सिंह, रवीन्द्र नाथ टैगोर, अल्बर्ट आइंस्टीन, माइकल जैक्सन, सवाई जयसिंह द्वितीय, महारानी गायत्री देवी और भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व के कई प्रमुख व्यक्तियों की मोम प्रतिमाओं का संग्रह है। सरल सजावट वाली जीवंत प्रतिकृतियां दिलकश अनुभव प्रदान करती हैं। संग्रहालय में 10 फुट लंबी बुलेट, गति-गामिनी, प्रसिद्ध पर्यटन मोटर बाइक भी प्रदर्शित है। संग्रहालय के लिए, समय 10.00 पूर्वाह्न से 6.30 बजे तक होता है। भारतीयों के लिए कॉम्बो टिकिट की कीमत 400 (सोमवार से शुक्रवार) और 500 रूपये (शनिवार - रविवार) है। विदेशियों के लिए कॉम्बो टिकिट की लागत 700 रूपये है।

  • जवाहर कला केन्द्र

    जवाहर कला केन्द्र

    जवाहर कला केन्द्र जो कि जेकेके के नाम से लोकप्रिय है, एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है। जो भारतीय संस्कृति और कला की विभिन्न शैलियों के संरक्षण और प्रचार का काम करती है। 1993 में जयपुर में स्थापित जवाहर कला केन्द्र, शहर में एक बहुत लोकप्रिय सांस्कृतिक गंतव्य है। जेकेके कलाकारों, कारीगरों ,विद्वानों, कला प्रेमियों और आगन्तुकों को आपसी चर्चा का वातावरण प्रदान करता है। केन्द्र कला प्रदर्शनियों, थिएटर शो,नृत्य और संगीत से सम्बन्धित पठन और कार्यशालाओं जैसी कई गतिविधियों के माध्यम से लोगों को राजस्थानी और भारतीय संस्कृति के आंतरिक पहलुओं को देखने में मदद करता है। जेकेके भारतीय खगोल विज्ञान की नवग्रह संकल्पना पर बनाया गया है। छह प्रदर्शनी दीर्घाओं, छात्रावासों, सभागारों और एक खुले हुए थिएटर के साथ जेकेके के पास अपना शिल्पग्राम कॉम्पलेक्स भी है। जिसमें राज्य के ग्रामीण पहलू का प्रतिनिधित्व करती छः झोपड़ियाँ और हाट बाजारों, त्यौहारों और मेलों के लिए स्थल है। यहाँ इंडियन कॉफी हाउस भी है जो स्थानीय लोगों और दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय है।

  • राजमंदिर

    राजमंदिर

    जयपुर के प्रसिद्ध स्थलों में से एक राज मंदिर एक सिनेमा थियेटर है। इस सिनेमा हॉल का गुलाबी शहर में एक विशेष स्थान है। इस सिनेमा हॉल में हिन्दी फिल्म देखना अद्भुत अनुभव है और अपनी सीट अग्रिम में बुकिंग करवाना एक अच्छा विचार है। 1976 में स्थापित इस थिएटर का खास बाहरी डिजाइन थियेटर को अलग सा दिखने में मदद करता है। थिएटर के अन्दर की अतिरंजित छत भव्य मंडल और लॉबी के बगल में बढ़ती घुमावदार विषाल सीढ़ियां, अनुपम आकर्षण प्रदान करते हैं। एमआई रोड पर स्थित राज मंदिर को देखे बिना जयपुर यात्रा पूरी नहीं मानी जा सकती।

  • सांभर झील

    सांभर झील

    जयपुर से सिर्फ 70 किलोमीटर दूर यह देश की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यन्त आकर्षक स्थल है। शाकम्भरी माता मंदिर, देवयानी कुंड, शर्मिष्ठा सरोवर, नमक संग्रहालय, सर्किट हाउस, आदि भी महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं। रास्ते में धार्मिक स्थल नरैणा और भैराणा भी जा सकते हैं। हज़ारों की संख्या में प्रवासी पक्षियों को देखने हेतु भी यह एक उपयुक्त स्थान है।

  • स्कल्पचर पार्क ( प्रस्तर प्रतिमा / मूर्तियों का संग्रह ) नाहरगढ़

    स्कल्पचर पार्क ( प्रस्तर प्रतिमा / मूर्तियों का संग्रह ) नाहरगढ़

    अरावली की पहाड़ियों के किनारे पर, ऊँचाई पर बसा नाहरगढ का क़िला, जयपुर शहर को ऊँचाई से देखता हुआ, हमेशा से ही एक प्रसिद्ध पर्यटक गन्तव्य रहा है। इस रंगीन ऐतिहासिक क़िले में अब एक और दिलचस्पी का अध्याय जुड़ गया है, जिसे राजस्थान सरकार की पहल पर एक स्कल्पचर पार्क इस क़ि़ले में बनाया गया है। यह अपनी तरह का एक इकलौता स्थल है जो कि समकालीन कला को प्रदर्शित करता है। यह परियोजना राजस्थान राज्य की सरकार और एक लाभ निरपेक्ष / लाभ रहित एन. जी. ओ. ( नॉन गवर्नमेन्टल ऑरगेनाइजे़शन ) गैर सरकारी संगठन ’’साथ साथ’’ द्वारा किया गया मिला जुला प्रयास है। इस क़िले के इस महल के हिस्से को एक गैलरी / दीर्घा में परिवर्तित कर के समकालीन कला को प्रस्तर प्रतिमाओं द्वारा दर्शाया गया है जिस में उच्च श्रेणी के भारतीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय कलाकारों की मूर्तियां अन्दर तथा बाहर की तरफ लगाई गई हैं। नाहरगढ़ क़िले में इस स्कल्पचर पार्क की स्थापना की पहल, देश में समकालीन कला के प्रति बढ़ती हुई दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए की गई है, साथ साथ ही भारत की विरासत को शामिल करके दर्शाने के लिए यह गैलरी बनाई गई है। यह गैलरी जनता के लिए खुली हुई है तथा भारत देश के विशेष विशिष्ट अतीत तथा वर्तमान को उत्कृष्ट रूप में एक साथ दर्शाती है।

  • अक्षरधाम मंदिर

    अक्षरधाम मंदिर

    जयपुर आने वाले पर्यटकों के लिए चित्रकूट (वैशाली नगर) का अक्षर धाम मंदिर आकर्षण का केन्द्र है। भगवान नारायण को समर्पित यह मंदिर सुन्दर वास्तुकला के कारण प्रसिद्ध है।

  • झालाना सफारी पार्क

    झालाना सफारी पार्क

    लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैला, झालाना सफारी पार्क जयपुर का एक सुन्दर पार्क है जो कि विशेषकर तेंदुआ देखने के लिए प्रसिद्ध है। लगभग 1978 हैक्टेयर में फैला यह जंगल, जयपुर शहर के दक्षिण पूर्व में है। सन् 1860 तक यह क्षेत्र सामंतवादी शासन के अधीन था। यह सम्पत्ति जयपुर के पूर्व महाराजा की थी तथा शाही परिवार के लिए क्रीड़ा स्थल था। यह क्षेत्र आस पास के गाँवों के लिए जलाने के ईंधन की भरपाई करता था। सन् 1862 में एक जर्मन ब्रिटिश जीव विज्ञानी डॉक्टर ब्रान्डीस को वन विभाग का महानिरीक्षक नियुक्त किया गया ताकि वे वन विभाग का भली भांति निरीक्षण तथा देख-भाल करें तथा प्रबन्धन संभालें। इस पार्क में जंगली पेड़, पौधे, फल व फूलों के वृक्ष हैं तथा इसे उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन माना जाता है। यहाँ की सैर करने में नम स्थान, जंगली आगामी वन दिखाई देता है तथा यहाँ वन्यजीवों को दर्शक अपने प्राकृतिक रूप में विचरण करते हुए देख सकते हैं। तेंदुए के साथ ही इस वन क्षेत्र में 15-20 चीते भी घूमते दिखाई पड़ते हैं। झालाना सफारी पार्क में इसके अलावा और भी बहुत से वन्य जीव देखे जा सकते हैं जैसे - धारीदार लकड़बग्घा, जंगली लोमड़ी, सुनहरी गीदड़, चीतल, भारतीय कस्तूरी बिलाव, नील गाय, जंगली बिल्ली आदि। इसके साथ ही यह पार्क पक्षी प्रेमियों के लिए भी स्वर्णिम अवसर प्रदान करता है, क्योंकि यहाँ पर विविध प्रजाति के पक्षी जिनमें भारतीय पित्रा, काला गिद्ध, उल्लू, छींटेदार छोटे उल्लू, शिकरा (छोटा बाज) और बड़े गिद्ध भी शामिल हैं। दूर तक फैले इस वन्यजीव क्षेत्र में कुछ रोचक स्थल भी देखने लायक हैं - जैसे सन् 1835 में महाराजा सवाई रामसिंह द्वारा बनवाई गई शिकार हौदी (जहाँ छिपकर बैठकर शिकार किया जाता था) तथा एक बड़ा काली माता का मंदिर और जैन चूलगिरी मंदिर भी हैं।

  • मसाला चौक

    मसाला चौक

    जयपुर के रामनिवास बाग में आने पर किरण कैफे की पुराने यादें भुला पाना बहुत मुश्किल था। परन्तु अब, वह कौतूहलपूर्ण दृश्य वापस आ गया है, जिसका नाम ’मसाला चौक’ है, वो जगह जहाँ आप प्रफुल्लित होकर, जयपुर के मसालेदार मज़ेदार खाने का मज़ा ले सकते हैं। जयपुर शहर घूमने आने वाले लोगों के लिए मौज-मस्ती के लिए यह बड़ी मश्हूर जगह बन गई है। आप मसाला चौक में बैठ कर जयपुर की पुरानी गलियों में मिलने वाला ज़ायकेदार खाने का स्वाद चखने के साथ ही, जयपुर में मिलने वाले अन्य प्रसिद्ध स्थानीय विशिष्ट स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद भी ले सकते हैं। मसाला चौक में आने के लिए रूपये 10/- का प्रवेश शुल्क देना होता है और यहां पर कुल 21 फूड स्टॉल्स यानी खाने पीने की छोटी दुकानंे लगाई गई हैं। यहाँ आने के लिए शाम का समय सबसे उचित है, क्योंकि इस समय आप यहाँ के स्थानीय लोगों के साथ मिलने जुलने व बातचीत करने का मौक़ा भी पाएंगे।

  • आम्रपाली संग्रहालय

    आम्रपाली संग्रहालय

    आम्रपाली ज्वेल्स प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापकों द्वारा आम्रपाली संग्रहालय एक पहल है। यह संग्रहालय जयपुर शहर में स्थित भारतीय आभूषण और कलात्मक वस्तुओं को समर्पित है। संस्थापकों (राजीव अरोड़ा और राजेश अजमेरा) के लिए संग्रह प्रेम का एक श्रम रहा है जो लगभग चालीस साल पहले शुरू हुआ था जब वे कॉलेज में दोस्त बन गए थे, और यह आज भी जारी है। संग्रहालय में दो मंजिलों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कई क्षेत्र हैं। भूतल में शरीर के हर हिस्से के लिए सौंदर्य और अलंकरण, चांदी और सोने के आभूषणों की वस्तुओं को प्रदर्शित करता है, वस्तुतः भारत के हर क्षेत्र से; आभूषणों पर विशेष ध्यान देने के साथ, जो जन्म से मृत्यु तक पारित होने के संस्कार से जुड़े होते हैं। तलघर में डिज़ाइन के लिए कई प्रेरणाएँ हैं जो भारतीय डिजाइनर को समय के साथ परिवर्तनों को बताती हैं, संग्रह में दोनों गहने और चांदी की वस्तुओं के माध्यम से देखा गया है। एक अलग खंड विरासत वस्त्रों के लिए समर्पित है जो सोने और चांदी से अलंकृत हैं। पूरा संग्रह 4000 से अधिक वस्तुओं से बना है, जिनमें से लगभग 800 प्रदर्शन पर हैं। बाकी को विजुअल स्टोरेज में देखा जा सकता है। अन्य संग्रहालयों के विपरीत, जहां जगह की कमी के कारण हजारों प्रदर्शन दृष्टि से बाहर रहते हैं, आम्रपाली संग्रहालय आपको विज़ुअल स्टोर लाता है, रिजर्व संग्रह को जगह देता है। संग्रहालय में विज़ुअल स्टोर के विषय में जानकारी चाहने वालों का स्वागत किया जाता है। संस्थापक अपने पूरे संग्रह को दुनिया के साथ साझा करने के इच्छुक हैं, इस विश्वास के साथ कि प्रत्येक कृति के अज्ञात रचनाकार चाहते थे कि उनका काम देखा जाए और प्रशंसा की जाए। क्योंकि ये रचनाएँ चपल, कालातीत और अमूल्य हैं। भारत के शिल्प कौशल की इस आकर्षक गवाही से विदेशी पर्यटक रोमांचित होंगे । मानव रूप के हर हिस्से के लिए आभूषण, भारत के हर कोने से आभूषणों से सजे गहने, सोने और चांदी से सुशोभित वस्त्र, और भी बहुत कुछ। आगंतुक संग्रहालय के समान हस्तनिर्मित चांदी के आभूषण और वस्तुएं भी खरीद सकते हैं और संग्रहालय की दुकान से सोने और चांदी के आभूषणों की पूरी श्रृंखला भी खरीद सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें- www.amrapalimuseum.com खुलने का समय सोमवार से शनिवार तक सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक है, प्रति व्यक्ति टिकट की कीमत 600 / - रुपये है (ऑडियो गाइड सहित)

  • राजस्थान विधानसभा डिजिटल म्यूज़ियम

    राजस्थान विधानसभा डिजिटल म्यूज़ियम

    राजस्थान विधान सभा परिसर में डिजिटल म्यूजियम का उद्घाटन दिनांक 16 जुलाई, 2022 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधिपति माननीय श्री एन.वी. रमणा के कर कमलों से किया गया। विधान सभा में तैयार किया गया यह डिजिटल म्यूजियम विशिष्ट प्रकृति का है इसमें नवीनतम तकनीक के माध्यम से राजस्थान से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारियों को हिन्दी एवं अंग्रेजी में उपलब्ध कराया गया है। इस म्यूजियम में राजस्थान की गौरवमय गाथा एवं राजनैतिक आख्यान, वर्तमान राजस्थान व उसकी संरचना, राज्य के निर्माण में सहभागी रहे जन-नेताओं और निर्माताओं के योगदान, विधान सभा की कार्यप्रणाली एवं प्रक्रियाएं, राजस्थान में मुख्य मंत्री एवं अध्यक्षगण, निर्वाचन क्षेत्र एवं विधायकों के बारे में जानकारी तथा मंत्रिमण्डल, विपक्ष के नेता एवं अन्य नेताओं की भूमिका को शामिल किया गया है। आगन्तुकों को लोकतंत्र से अवगत करवाने की दृष्टि से यह म्यूजियम बहुत उपयोगी है।

आइए, जयपुर के उत्सव और परम्पराओं का एक हिस्सा बनें। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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  • पतंग उत्सव

    पतंग उत्सव

    प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को जयपुर में पतंग उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो बच्चे पूरे एक महीने तक पतंग बाजी करते हैं, लेकिन मकर सक्रांति पर यह उत्सव धार्मिक रूप से मनाया जाता है। दान दक्षिणा, गायों को चारा खिलाना, तिल के व्यंजन बनाना तथा गलता जी कुंड में स्नान करना, मकर सक्रांति पर यह धार्मिक रीति रिवाज हैं। शाम को पतंगबाजी के बाद आतिशबाजी से पूरा आसमान चमक उठता है।

  • गणगौर उत्सव

    गणगौर उत्सव

    यह महिलाओं और कन्याओं के लिए विशेष धार्मिक त्यौहार है। ’गण’ शिव और ’गौर’ पार्वती जी के रूप में पूजे जाते हैं। होली के 16वें दिन से शुरू होकर, पन्द्रह दिन तक गणगौर की पारंपरिक पूजा चलती है। विवाहित महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए तथा पति की लम्बी उम्र के लिए तथा कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए पूजा करती हैं। पूर्व संध्या पर महिलाएं मेहंदी लगाती हैं, सजती संवरती है तथा बागों से घास लाकर गीत गाते हुए घर आकर, मिट्टी से बनाए शिव पार्वती की पूजा करती हैं। गणगौर के अन्तिम दिन पारंपरिक जुलूस, सिटी पैलेस की जनानी ड्योढ़ी से शुरू होकर, त्रिपोलिया बाजार, छोटी चौपड़, गणगौरी बाजार होते हुए तालकटोरा तक जाता है। जहां गण और गौरी की मूर्तियों को पानी में विसर्जित किया जाता है। इस जुलूस को पर्यटन विभाग आयोजित करता है, जिसमें पुराने रथ, पालकियां हाथी, घोड़े और नाचते गाते लोक कलाकार साथ चलते हैं।

  • तीज उत्सव

    तीज उत्सव

    विशेष रूप से मानसून में मनाया जाने वाला तीज का त्यौहार, भारत के पश्चिमी और उत्तरी राज्यों में मनाया जाता है। तीज का त्यौहार, वास्तव में मानसून के कारण उत्पन्न हरियाली, सामाजिक गतिविधियों, अनुष्ठानों और रिवाजों के साथ पक्षियों के आगमन का उल्लास मनाने का त्यौहार है। मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाये जाने वाले इस त्यौहार में नृत्य गायन, हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाना, लहरिया साड़ियाँ पहनना और हरियाली तीज पर झूले झूलना शामिल हैं। त्यौहार भारत के कई हिस्सों में देवी पार्वती को समर्पित है, जिन्हें तीज माता के नाम से जाना जाता है। महिलाएं देवी से अपने पति के कल्याण की मांग करने वाली प्रार्थना करती हैं। इस अवसर पर तीज माता का जुलूस सिटी पैलेस से शुरु होकर तालकटोरा तक, पर्यटन विभाग एवम् सिटी पैलेस प्रशासन द्वारा निकाला जाता है जिसमें रथ, पालकियां, बैलगाड़ी एवम् लोक कलाकार नाचते गाते हुए जुलूस के साथ में चलते हैं। तीज के उत्सव पर पारम्परिक मिठाई, घेवर का आनंद उठाया जाता है। इस अवसर पर तीज माता का जुलूस सिटी पैलेस से षुरु होकर तालकटोरा तक, पर्यटन विभाग एवम् सिटी पैलेस प्रषासन द्वारा निकाला जाता है जिसमें रथ, पालकियां, बैलगाड़ी एवम् लोक कलाकार नाचते गाते हुए जुलूस के साथ में चलते हैं। तीज के उत्सव पर पारम्परिक मिठाई, घेवर का आनंद उठाया जाता है।

  • धुलण्डी उत्सव

    धुलण्डी उत्सव

    सम्पूर्ण भारत में होलिका दहन के बाद अगले पूरे दिन धुलण्डी उत्सव (रंगों का त्यौहार) मनाया जाता है। यह बसंत की शुरूआत का प्रतीक है। इस दिन बच्चे, युवा, बुजुर्ग सभी दिन में समारोह के तौर पर सूखे गुलाल, पक्के रंग और पानी से होली खेलते हैं। जयपुर में ये त्यौहार एक विशेष तरीके से मनाया जाता है, जहां विशेषकर विदेशी पर्यटकों के लिए पर्यटन विभाग खासा कोठी होटल के लॉन पर एक शानदार आयोजन करता है। जिसमें पर्यटक सूखे रंगों से होली खेलते हैं। इस अवसर पर स्थानीय कलाकार राजस्थानी लोक धुन पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुति देते हैं। जयपुर की गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच को आपका इंतजार है। आइए, शामिल हो जाइए। जयपुर की गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच को आपका इंतजार है। आइए, षामिल हो जाइए।

जयपुर की गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच को आपका इंतजार है। आइए, शामिल हो जाइए।

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  • शॉपिंग

    शॉपिंग

    जयपुर के हस्तशिल्प पूरी दुनियां में मशहूर हैं। सांगानेरी छपाई के कपड़े, चादरें, साड़ियाँ, बगरू प्रिन्ट के कपड़े, रजाईयां, लाख की चूड़ियाँ, चमड़े की जूतियाँ, बहुमूल्य रत्न और सोने चांदी व आर्टिफिश्यल ज्वैलरी के लिए, देशी व विदेशी पर्यटक लालायित रहते हैं। जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़ तथा जयपुर की गलियों में एक से एक सुन्दर कलाकृति खरीदी जा सकती है।

  • शहर की यात्रा

    शहर की यात्रा

    पर्यटन के माध्यम से गुलाबी नगरी जयपुर के रूहानी/आत्मिक अनुभव की अंतरंग यात्रा पर चलने के लिए तैयार रहें। इस खूबसूरत शहर में छिपी उस कला के ख़जाने की खोज करें जो इस शहर को पर्यटकों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय बनाता है।

  • हॉट एयर बैलून सवारी

    हॉट एयर बैलून सवारी

    जब राजस्थान के खूबसूरत दृश्य की बात आती है, तो हॉट एयर बैलून सवारी से जयपुर को देखने का मज़ा कुछ और है। ये बैलून हवा में ऊपर उठते है और आपको खुशनुमा अहसासों से भर देते हैं। शानदार किलों महलों और मोहक वास्तुकला का, ऊपर से नज़ारा देखें। हॉट एयर बैलून सवारी के माध्यम से भारत के गुलाबी शहर की सुन्दरता और भव्यता का आनंद लें।

  • आमेर महल में हाथी सवारी

    आमेर महल में हाथी सवारी

    आमेर के शाही महल को देखने और राजसी अन्दाज में ऊपर तक महल के चौक में पहुँचने के लिए शाही सवारी करना चाहते हैं तो महाराजा/महारानी की तरह हाथी की पीठ पर बैठ कर जाइए, देखिए इस सवारी की बात ही कुछ और है। लगभग 80 से 100 के बीच हाथियों की संख्या, आमेर महल दिखाने के लिए तैयार रहती है, जो कि प्रतिदिन सीमित संख्या में दर्शकों को महल तक ले जाते हैं। इस शाही सवारी का मजा लेने और महाराजा-महारानी की तरह हाथी की पीठ पर, सजीले हौदे में बैठ कर, घूमने के लिए, यदि आप चाहते हैं कि आप की बारी आ जाए तो आपको सुबह जल्दी आमेर पहुंचना होगा। गर्मी के मौसम में सुबह 8 बजे से हाथी सवारी शुरू होती है और अधिकतर हाथी सवारी का समय और पर्यटकों को आमेर महल तक ले जाने की निर्धारित लिमिट लगभग सुबह ग्यारह बजे तक पूरी हो जाती है। ऊँची पहाड़ी पर बने आमेर महल की विरासतीय धरोहर ‘‘वर्ल्ड हैरिटेज साइट’’ तक पहुँचने के लिए, पहाड़ी की तलहटी से ऊपर महल के प्रांगण तक ले जाने के लिए हाथी सवारी का टिकिट दो लोगों के लिए रूपये 1100/- निर्धारित किया गया है। आमेर महल देखने का समय - सुबह 8 बजे से सुबह 11 बजे तक।

  • आमेर किले पर ध्वनि और प्रकाश प्रदर्शन (साउंड एंड लाइट शो )

    आमेर किले पर ध्वनि और प्रकाश प्रदर्शन (साउंड एंड लाइट शो )

    जयपुर के आमेर किले और महल परिसर में भव्य दृश्य प्रदर्शन (सोनेट –लुमियर शो) सम्पन्न किया जाता है । यह आमेर किला तब तक कच्छवाहा राजवंश के 28 राजाओं की भूमि रहा जब तक जयपुर उनकी राजधानी नहीं बनी । ध्वनि और प्रकाश शो के माध्यम से आमेर के गर्व, इतिहास और परंपराओं को पुनर्जीवित करने का एक शानदार प्रयास किया गया है। शो में लोक संगीत के माध्यम से किंवदंतियों से बुने लोकगीतों का मधुर गायन और उन संगीत रचनाओं और उस्तादों का उत्सव मनाया जाता है, जो आज भी राजस्थान की विशिष्ट पहचान बनाते हैं। सामने आमेर किला और महल परिसर का अनूठा दृश्य, बाईं तरफ भव्य जयगढ़ और इसके पीछे बढ़ती मनोरम पहाड़ियां इस शो को अविस्मरणीय बना देती हैं। समय : अक्टूबर से फरवरी -6: 30 बजे (अंग्रेजी) / 7:30 बजे (हिंदी) मार्च से अप्रैल - 7:00 बजे (अंग्रेजी) / 8:00 बजे (हिंदी) मई से सितंबर - 7:30 बजे (अंग्रेजी) / 8:30 बजे (हिंदी) * कृपया ध्यान दें: 1 से 10 अक्टूबर तक 8.30 बजे केवल एक अंग्रेजी शो होगा।

  • अमर जवान ज्योति पर प्रकाश और ध्वनि प्रस्तुति

    अमर जवान ज्योति पर प्रकाश और ध्वनि प्रस्तुति

    जयपुर आने वाले प्रत्येक दर्शक और पर्यटक के लिएए अम्बेडकर सर्किल से विधानसभा के रास्ते पर एक विरासती प्रकाश दिखाई देता है जो कि अति सुन्दर ,आकर्षक और प्रभावित करने वाली रौशनी है - यह है अमर जवान ज्योति-जिसे देखने के बाद भुलाया नहीं जा सकता। जयपुर में विजय -पथ पर स्थित यह स्मारक राजस्थान के बहादुर योद्धाओं द्वारा किए गए शूरवीरता के कारनामों की याद दिलाता है। यहाँ पर एक छोटा युद्ध -संग्रहालय भी है, जिसमें शूरवीरों और योद्धाओं की चिर -स्मरणीय (यादगार )वस्तुएं भी यहाँ दर्शक देख सकते हैं। सबसे अच्छा और देखने सुनने योग्य यहाँ पर रोजाना शाम को होने वाली 'प्रकाश और ध्वनि 'की प्रस्तुति है जो कि हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उद्घोषित की जाती है। राजस्थान में आजादी से पहले और आजादी के बाद लड़े गए युद्धों का गौरवपूर्ण इतिहास इस शो के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। जिसे देखकर हमारे देश के सैनिकों द्वारा देश की सेवा में दिए गए बलिदान ,उनके शौर्य और पराक्रम ,दुश्मन के हमलों से मुक़ाबला तथा उनकी देश- भक्ति के जज़्बे का एहसास होता है। इस स्मारक के सामने ,सड़क के दूसरी तरफ लोगों के बैठने की व्यवस्था है जहाँ से यह आश्चर्य चकित कर देने वाला शो देखा जा सकता है। जिसे देखकर दर्शक तल्लीन तथा अभिभूत हो जाते हैं और राजस्थान के भव्य अतीत में खो जाते हैं।

यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon जयपुर अर्न्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे को सांगानेर हवाई अड्डा कहा जाता है। दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, अहमदाबाद, जोधपुर, उदयपुर और कई अन्य स्थानों से घरेलू उड़ान संभव है। जयपुर से दुबई, मस्कट, सिंगापुर और बैंकॉक के लिए अर्न्तराष्ट्रीय उड़ानें भी हैं।
  • Car Icon जयपुर जाने का एक सुविधाजनक तरीका सड़क मार्ग है। राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से ए.सी. और डीलक्स बसों की नियमित सेवा उपलब्ध है।
  • Train Icon जयपुर दिल्ली, आगरा, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, अहमदाबाद, बैंगलोर सहित सभी प्रमुख शहरों से रेल के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

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