धौलपुर
लाल पत्थर की भूमि
धौलपुर स्वतंत्रता से पहले धौलपुर रियासत की जागीर था। 1982 में यह एक अलग ज़िला बना, जिसमें भरतपुर की चार तहसील - धौलपुर, राजाखेड़ा, बाड़ी और बसेड़ी शामिल हुए। धौलपुर के उत्तर में आगरा, दक्षिण में मध्य प्रदेश का मुरैना ज़िला और पश्चिम में करौली है। धौलपुर पुरानी सभ्यता का साक्षी और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का धनी है। यहाँ का लाल बलुआ पत्थर, पूरे भारत में सप्लाई किया जाता है तथा दिल्ली के लाल क़िले के निर्माण में भी इसी का प्रयोग किया जाता था। धौलपुर का इतिहास प्राचीन बुद्ध काल से माना जाता है। राजा धवल देव, जिसे ’धोलन देव तोमर’ के नाम से भी जाना जाता था, इनके नाम पर इस राज्य का नाम धवलपुरी रखा गया। इन्होंने 700 ई.पू. में इस शहर की स्थापना की। हालांकि कुछ इतिहासकारों ने इसे 1005 ई. का माना है। बाद में इसका नाम ’धौलपुर’ रखा गया। सदियों तक धौलपुर मौर्य साम्राज्य का हिस्सा बना रहा तथा मुगलकाल में मुगलों के अधीन रहा। 9वीं से 10वीं सदी तक, धौलपुर में चौहान राजपूत राजाओं का शासन रहा। सन् 1194 तक यह फिर मुगल शासक मोहम्मद ग़ौरी के अधीन रहा।