यह बोहरा मुस्लिम संत अब्दुल रसूल की लोकप्रिय मज़ार है। शहर के दक्षिणी भाग में स्थित इस दरगाह को अब्दुल्ला पीर के नाम से जाना जाता है। हर वर्ष बड़ी संख्या में विशेषतः बोहरा समुदाय के लोग दरगाह के उर्स में शामिल होने आते हैं।...
अभेड़ा महल का निर्माण 18 वीं शताब्दी में कराया गया था। यहां महल शाही आरामगाह की दृष्टि से कोटा से 8 किमी की दूरी पर निर्मित करवाया गया था, जिसमें राजकुमारी धीरदेह द्वारा पानी का कृत्रिम जलाशय निर्मित करवाया गया था...
जयपुर में आने वाले पर्यटकों के लिए वैशाली नगर का अक्षरधाम मंदिर एक प्रमुख आकर्षण है। भगवान
नारायण को समर्पित मंदिर अपने सुंदर स्थापत्य के कारण प्रसिद्ध है, जिसमें शानदार अर्च विग्रह , प्रतिमाएं
और कलात्मक नक्काशी शामिल हैं।...
ऊँची पहाड़ियों के बीच बसा पवित्र अमरेष्वर महादेव मंदिर का स्थान रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान के मार्ग में आता है। यहाँ शिवलिंग स्थापित है। कई भक्त यहाँ आकर, भगवान महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ...
बांसवाड़ा से 40 कि.मी. की दूरी पर दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ अंदेश्वर पार्श्वनाथ सभी धर्मों के आस्था का केन्द्र है। मुख्य मंदिर में जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की पद्मासनस्थ कृष्णवर्णा पाषाण प्रतिमा है। गर्भगृह और दीवारों पर भगवान पार्श्वनाथ के दस भव और जैन तीर्थांकरों को अत्यंत सुंदर कांच में चित्रित किया गया है। ...
12वीं शताब्दी में निर्मित यह भूमिगत सुंदर मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। ’हेमाड़पंथी’ वास्तुकला शैली की कलात्मक नक़्काशी इस मंदिर को गौरवमयी आभा से भर देती है। ...
बागोर साहिब एक ऐतिहासिक गुरूद्वारा है जहां श्री गुरू गोविन्द सिंह जी पंजाब की यात्रा पर जाते समय ठहरे। यह गुरूद्वारा तहसील मंडल के गांव बागोर में मंडल शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है।...
बंदे के बालाजी एकमंजिला, आधुनिक मंदिर है जिसके आसपास शिखर और पर्वत शिखायें हैं। यह भारत के लोकप्रिय हनुमान मंदिरों में से एक है। बालाजी की प्रतिमा हनुमान की अन्य प्रतिमाओं से अलग है। ...
सोम व माही नदियों में डुबकी लगाने के बाद, बेणेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने के लिए भक्तगण समर्पण के भाव से आते हैं। इस अंचल के सर्वाधिक पूजनीय शिवलिंग बेणेश्वर मंदिर में स्थित है। सोम और माही नदियों के तट पर स्थित पांच फीट ऊँचा ये स्वयंभू शिवलिंग शीर्ष से पांच हिस्सों में बंटा हुआ है।...
अलवर के लोक देवता भर्तृहरी जी एक राजा थे। उनके जीवन के अन्तिम वर्ष यहीं बीते थे। महाराजा जयसिंह ने 1924 में भर्तृहरी जी के मंदिर को नया स्वरूप दिया। ...
डूंगरपुर से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भुवनेश्वर पर्वत के ऊपर स्थित है और एक शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के समीप ही बनाया गया है। ...
लक्ष्मी नारायण मंदिर, जो कि बिड़ला मंदिर नाम से अधिक लोकप्रिय है, मोती डूंगरी की तलहटी में स्थित है। ऊँचे भूभाग पर अपेक्षाकृत आधुनिक रूप से निर्मित यह मंदिर पूरी तरह से ष्वेत संगमरमर का बना है। मंदिर को 1988 में प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति बिड़ला द्वारा बनवाया गया था। ...
बीसलपुर - टोंक से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बीसलपुर की स्थापना 12वीं शताब्दी में चव्हाण शासक विग्रहराजा चतुर्थ द्वारा की गयी थी। बीसलपुर को ’गोकर्णेश्वर’ के मंदिर की वजह से महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे बीसलदेव जी के मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह विग्रहराजा चतुर्थ द्वारा बनाया गया था, जो गोकर्ण का परम भक्त था। ...
पूरे विश्व का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर में स्थित है। संगमरमर से निर्मित, चाँदी के सिक्कों से जड़ा हुआ, लाल शिखर और हंस (ब्रह्मा जी का वाहन) की छवि, वाले मंदिर में ब्रह्मा जी की चतुर्मुखी प्रतिभा, गर्भगृह में स्थापित है। ...
इस ऐतिहासिक गुरूद्वारे का निर्माण, 1740 में घटी एक महत्वपूर्ण घटना के कारण किया गया जिसमें मस्सा रंगहर के अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अपवित्रीकरण का दोषी पाए जाने पर सुक्खा सिंह और मेहताब सिंह द्वारा न्याय किया गया था। ...
चामुंडा माता मंदिर हरनी महादेव की पहाड़ियों पर स्थित है। शिखर पर पहुँचने के बाद, पूरे शहर का विहंगम दृष्य देखने को मिलता है। यह स्थान, भीलवाड़ा से सिर्फ 5 किलोमीटर दूर है, ...
देवी चामुंडा माताजी राव जोधा की आराध्य देवी थीं और इसलिए उनकी प्रतिमा मेहरानगढ़ किले में प्रतिष्ठित की गई। अतः किले में पूजा का स्थान बन गया और वहां एक मंदिर बन गया।...
17वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प, वैभव और धार्मिक पवित्रता का साक्षी, प्रथम जैन तीर्थंकर (प्रवर्तक) आदिनाथ को समर्पित यह मंदिर खानपुर के पास चाँदखेड़ी में स्थित है।...
चन्द्रभागा नदी के किनारे पर बना यह मंदिर, झालावाड़ से 7 कि.मी. दूर है। शानदार चंद्रभागा मंदिर समूह, चंद्रभागा नदी के किनारे पर नक़्काशीदार स्तंभों और मेहराबदार द्वारों के साथ स्थित है।
कोटा से करीब 15 कि.मी. की दूरी पर दाढ़ देवी मंदिर मार्ग पर ही चरण चौकी स्थित है। प्राचीन किवंदंती के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा से द्वारका की यात्रा के समय इसी स्थान पर विश्राम किया था। ...
बागीदौरा मार्ग पर छींछ गांव में तालाब के किनारे 12वीं शताब्दी का प्राची ब्रह्मा मंदिर है। यहाँ कृष्ण पाषाण पर हंस की आकृतिनुमा चतुर्भुज ब्रह्माजी की आदमक़द प्रतिमा, शिल्प की दृष्टि से अद्भुत और विलक्षण है। ब्रह्माजी के बांयी तरफ भगवान विष्णु की दुर्लभ प्रतिमा श्रृद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। ...
बाड़मेर शहर के पश्चिमी भाग में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित, यह जैन मन्दिर 16वीं शताब्दी में ’श्री निमाजी जीवाजी बोहरा’ द्वारा बनवाया गया था। इस मन्दिर में बहुत ही शानदार मूर्तियाँ हैं तथा इसे सुन्दर चित्रों से सजाया गया है।...
कोटा से करीब 15 कि.मी. की दूरी पर कोटा के शाही परिवार की कुलदेवी का प्राचीन मंदिर है। यह स्थान सघन वन क्षेत्र में स्थित है। यहां पर चैत्र नवरात्रा मे 9 दिवसीय मेला लगता है। ...
देवगाँव में स्थित यह मंदिर, अपनी बनावट के लिए प्रसिद्ध है। तीन मंज़िलों में बना यह मंदिर, 150 स्तम्भों पर खड़ा है। देव सोमनाथ के नाम पर 12वीं सदी में बना सोम नदी के किनारे पर एक पुराना और सुंदर शिव मंदिर है। सफेद पत्थर से बने, मंदिर में ऊँचे बुर्ज़ बनाये गये हैं। ...
दुनियां भर में चूहों के लिए अपनी पहचान बनाने वाला मंदिर, बीकानेर से 30 कि.मी. की दूरी पर, देशनोक गाँव में है। यह पर्यटकों में ’टैम्पल ऑफ़ रैट्स’ के नाम से मष्हूर है। यहाँ लगभग 25,000 काले चूहे हैं, जिन्हें ’कबा’ कहते हैं। इनकी पवित्रता इस बात से उजागर होती है कि ...
शाही घराने का शमशान है यह देवीकुण्ड। इसमें उत्कृष्ट छतरियाँ हैं। प्रत्येक छतरी को बीकाजी वंश के एक शासक को समर्पित किया गया है। यह मण्डप उस स्थान पर स्थित है जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया था। महाराजा सूरत सिंह की छतरी उस युग की वास्तुकला का एक उत्तम नमूना है। ...
बाड़मेर जैसलमेर रोड पर करीब 62 कि.मी. की दूरी पर एक छोटे से गाँव देवका में यह मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसकी वास्तुकला अविश्वसनीय तथा अदभुत है। ...
संगरिया से 3 किलोमीटर दूर धनोप, एक छोटा गांव है जहां आप शीतला माता मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यह मंदिर, चमकीली लाल दीवारों और स्तंभों, चौकोर खानों वाले संगमरमर के फर्श की रचना, ...
इस मंदिर की आंतरिक सजावट एक शाही दरबार जैसी है। दीवारों पर कांच के अलंकरण, राजपूत युग की भव्यता दर्शाते हैं। 150 वर्ष पुराने इस जैन मंदिर में कुछ उत्कृष्ट चित्र स्वर्ण रंगों में चित्रित किए गए हैं ...
जयपुर का प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर शहर से 14 किमी दूर सांगानेर में स्थित है। संघीजी मंदिर में प्रमुख विग्रह भगवान आदिनाथ पद्मासन (कमल स्थिति) मुद्रा में है। यह आकर्षक नक्काशियों से बना लाल पत्थर का मंदिर है। ...
डिग्गी - 5600 वर्षों पूर्व का सबसे पुराना पूजनीय हिंदू मंदिरों में से एक है श्री डिग्गी कल्याण जी मंदिर। भगवान विष्णु के अवतार श्री कल्याण जी यहां स्थित हैं। पूरे देश से लोग यहां अपने दुखों से मुक्ति और देवता के आशीर्वाद के लिए आते हैं। ...
झालावाड़ शहर के संस्थापक झाला जालिम सिंह ने 1796 ई. में गोमती सागर झील के किनारे यह मंदिर बनवाया था तथा सन् 1806 ई. में यहाँ भगवान कृष्ण की मूर्ति की स्थापना की गई थी।...
कोटा से रावतभाटा मार्ग पर 22 किमी की दूरी पर गेपरनाथ मंदिर चम्बल नदी के समीप दुर्गम पहाड़ियों में निर्मित है। यहां पर्यटक सीढ़ियां उतरकर तलहटी में बने प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन करते हैं। ...
दसवीं शताब्दी में बाब जी मौला सैयदी फख़रूद्दीन साहब का निवास था यहाँ। दाऊदी बोहरा समाज का पवित्र स्थान है ’गलियाकोट दरगाह’। डूंगरपुर से 58 किलोमीटर की दूरी पर माही नदी के किनारे स्थित, गलियाकोट नामक एक गांव है। यह स्थान सैयद फख़रूद्दीन की मज़ार के लिए जाना जाता है। ...
गलता जी जयपुर का एक प्राचीन तीर्थ स्थान है। यह गालव ऋषि की तपोस्थली है। गलता जी स्थित कुंड में स्नान का धार्मिक महत्व है। तीर्थ यात्री यहाँ पवित्र स्नान हेतु आते हैं। इस आकर्षक जगह में मंदिर, मंडप और पवित्र कुंड (प्राकृतिक झरने और पानी के कुण्ड) हैं। ...
गणेश मंदिर को समर्पित एक अत्यंत श्रद्धेय मंदिर है। विनायक चतुर्थी को यहाँ बड़ी धूमधाम रहती है जो पूरे राजस्थान के आकर्षण का केन्द्र बनता है। यहाँ गणेश मेला भी आयोजित किया जाता है। ...
भरतपुर का लोकप्रिय मंदिर, राजपूत, मुगल तथा द्रविड़ स्थापत्य शैली का सुन्दर मिश्रण है। यह मंदिर महाराजा बलवंत सिंह द्वारा 1845 में बनाना शुरू किया गया था, जिसका निर्माण कार्य 90 वर्षों तक चला। उनके उत्तराधिकारी राजा बृजेन्द्र सिंह ने इस मंदिर में देवी गंगा नदी की मूर्ति की स्थापना की थी। ...
कोटा से डाबी उदयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर कोटा से 24 किमी की दूरी पर मोड़ से 5 कि.मी. अंदर दुर्गम वन क्षेत्र मे यह नैसर्गिक सौंदर्य का स्थल तथा चम्बल की तराईयों में प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। यहां से चम्बल के ख़ूबसूरत व्यू को देखा जा सकता है। ...
पुराणों के अनुसार भगवान शिव का 12वां या अन्तिम ज्योतिर्लिंग, ’घुष्मष्वेर मंदिर’ माना जाता है। सवाई माधोपुर में शिवाड़ गांव में स्थित इस मंदिर के विषय में कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। ...
चम्बल गार्डन से रावतभाटा की ओर प्रमुख मार्ग पर यह मंदिर चम्बल नदी के तट पर निर्मित है। यहां भगवान हनुमान जी की पूजा अर्चना की जाती है। यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रतीक है। ...
गोध मंडप एक तीन मंजिला विशाल सभा मंडप है जो पास स्थित तीनों मंदिरों द्वारा आपसी उपयोग के लिए है। 64 पैरों और 12 खम्भों पर अवस्थित, यह विशाल सभा मंडप देखने योग्य है। ...
श्री गोविन्द देव जी की आकर्षक प्रतिमा सवाई जयसिंह वृन्दावन से जयपुर लाए थे। जो यहाँ पूरे सम्मान से शहर के परकोटे में स्थित श्री गोविन्द देव जी मंदिर में स्थापित की गई। ...
यह मंदिर वास्तविक रूप से कैलादेवी का असली मंदिर माना जाता है तथा करौली के बॉर्डर के पास रणथम्भौर के घने जंगलों के बीच स्थित, इस मंदिर के आस पास सभी तरह के जंगली जानवर दिखाई देते हैं। पर्यटकों को यहाँ जाने के लिए सावधानी बरतना अत्यावश्यक है।...
गुरूद्वारा सिंह सभा पुष्कर के पूर्वी भाग में स्थित है यह 19वीं सदी की शुरूआत में पहले और दसवें गुरू - श्री गुरू नानक देव जी और श्री गुरू गोविन्द सिंह जी की यात्रा की समृति में बनाया गया था। ...
दराक परिवार के पूर्वजों द्वारा स्थापित और पास के गांव के नाम पर, हरनी महादेव एक शिव मंदिर है, जो शहर से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है। सुरम्य पहाड़ियों से घिरा यह मंदिर पर्यटकों के लिए एक रमणीय स्थल है।...
आभानेरी - दौसा से 33 कि.मी. दूर, चाँद बावड़ी परिसर में ही स्थित, यह मंदिर हर्षद माता को समर्पित है। हर्षद माता अर्थात उल्लास की देवी। ऐसी मान्यता है कि देवी हमेशा हँसमुख प्रतीत होती है ...
नेहरा पहाड़ की तलहटी में खेतड़ी महल के पश्चिम में स्थित कमरूद्दीन शाह की दरगाह एक खुला व्यवस्थित परिसर है। जिसमें मस्जिद और मदरसा है, (यहाँ प्राचीन भित्ति चित्र अभी भी देखे जा सकते हैं), इसके मध्य में सूफी संत कमरूद्दीन शाह की अलंकृत दरगाह है। ...
उदयपुर और उसके आस पास के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक जगदीश मंदिर। 1651 में इंडो-आर्यन् शैली में बना हुआ स्थापत्य कला का एक अच्छा उदाहरण है। यह मंदिर मारू गुजराना स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।...
कलात्मक जैन मंदिरों के लिए सुविख्यात पाली के इस सुंदर तीर्थ में अद्भुत स्थापत्य और महावीर की विशाल प्रतिमा के संग असीम शांति है। माना जाता है कि यहां पूजा के अर्चविग्रह लगभग 2600 साल पुराने हैं, जिनकी ऊँचाई 120 से.मी. है। ...
जैन धर्म के 5वें तीर्थंकर सुमतिनाथ जी को समर्पित यह मन्दिर 15वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसमें काँच का सुन्दर जड़ाऊ काम, भित्ति चित्र तथा सोने के पत्रों से बने चित्र दर्शनीय है।...
जैसलमेर में बने जैन मंदिरों में कला की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ’लौद्रवा जैन मन्दिर’। दूर से इसका भव्य शिख़र नजर आता है। इसमें लगे कल्प वृक्ष के बारे में मान्यता है कि इसे छूकर जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी हो जाती है। मंदिर के गर्भगृह में ’सहसफण पार्श्वनाथ’ की श्याम मूर्ति है, ...
इस चहल-पहल वाले शहर के मध्य में स्थित जामा मस्जिद राजस्थान की बेहतरीन मस्जिदों में से एक है। अंदर और बाहर दोनों जगह आपस में भली प्रकार गुथे हुए अलंरणों वाले भित्तिचित्रों के साथ मस्जिद में अभी तक प्राचीन वैभव विद्यमान है। ...
करौली के बाहरी इलाके में लगभग 25 किमी दूरी पर कैला देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जो कि त्रिकुट की पहाड़ियों के बीच कालीसिल नदी के किनारे पर बना हुआ है। यह मन्दिर देवी के नौ शक्ति पीठों में से एक माना जाता है तथा इसकी स्थापना 1100 ईस्वी में की गई थी, ऐसी मान्यता है। ...
करौली शहर से लगभग 23 किमी दूर कैला देवी का मंदिर स्थित है जो माँ शक्ति को समर्पित है। मार्च अप्रैल और सितम्बर अक्टूबर के महीने में कैला देवी मंदिर मेले का आयोजन होता है। ...
यहाँ 8वीं सदी के वैष्णव देवताओं और भगवान शिव के मन्दिरों का समूह है। बारां से 85 कि.मी. की दूरी पर स्थित काकूनी, परवन नदी के तट पर स्थित है तथा यहाँ राजा भीम देव द्वारा निर्मित ’भीमगढ़’ किले के अवशेष भी दर्शनीय हैं।...
सूर्य देवता की उपासना के लिए, 8वीं शताब्दी में इस प्राचीन संरचना की स्थापना की गई थी। बाद में 14वीं शताब्दी में यह मंदिर श्क्ति और वीरता की प्रतीक ’देवी काली’ को समर्पित किया गया। ...
एक तरफ उत्तर प्रदेश व दूसरी तरफ हरियाणा के बॉर्डर पर यह छोटा क़स्बा ’कामां’, बृज क्षेत्र का एक हिस्सा है। भगवान कृष्ण के दादाजी कामसेन ने इसका नाम ’कामावन’ रखा। भाद्रपद (जुलाई अगस्त) के माह में यहाँ वैष्णव सम्प्रदाय के लोग वनयात्रा हेतु आते हैं।...
कोटा एयरपोर्ट सर्किल से डी सी एम रोड पर कंसुआ क्षेत्र में यह प्राचीन मंदिर 738 ए.डी. में निर्मित है। यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला से पर्यटकों को आनंदित कर देता है। ...
यह एक प्राचीन तथा आस्था का प्रतीक मंदिर है। यहां भगवान गणेश की प्रतिमा खडे़ रूप में है। प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी पर तथा प्रत्येक सप्ताह के बुधवार के दिन यहां भक्तजन दर्शनार्थ आते हैं ...
’झुझंनू खेतड़ी महल’ कला और वास्तु संरचना के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है। इसे झुझंनू के हवा महल के रूप में भी जाना जाता है। 1770 में इस महल का निर्माण हुआ था। आश्चर्यजनक तथ्य है कि खेतड़ी महल में कोई झरोखे या द्वार नहीं है फिर भी इसे हवा महल के नाम से जाना जाता है। ...
थार के रेगिस्तान में चमकते लाल माणक जैसे मन्दिर। शहर से यह मन्दिर लगभग 35 कि.मी. दूर है, जिन्हें आप जाकर देखें तो देखते ही रह जाएँ। सोलंकी वास्तुकला शैली में उभरे, कंगूरे, स्तम्भ और पत्थर पर की गई बारीक नक़्काशी का काम-इन मन्दिरों को भगवान शिव को समर्पित किया गया है।
राव बीकाजी द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी। जोधपुर से आने के तीन वर्ष बाद ही राव बीकाजी ने, कोडमदेसर भैंरू जी की स्थापना यहाँ पर की तथा पूजा अर्चना की। ...
हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान, जहाँ हर साल दूर दूर से श्रृद्धालु, मंदिर में दर्शन को आते हैं। कोलायत एक पवित्र झील है, जो बीकानेर से करीब 50 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ का इतिहास सांख्य योग के प्रणेता कपिल मुनि की कहानी सुनाता है, जो इस जगह के शांतिपूर्ण वातावरण से इतने अभिभूत हो गए थे ...
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला 200 वर्ष पुराना यह मंदिर ’खाडगढ़’ में स्थित है। इस मंदिर की लोकप्रियता भैरव देवी के मंदिर होने के कारण है। इस मंदिर के चारों ओर अन्य छोटे मंदिर हैं, ...
राणा कुंभा के शासन के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया गया था। उस समय की लोकप्रिय इंडो - आर्यन शैली में बने इस मंदिर का अटूट सम्बन्ध, राजकुमार भोजराज की पत्नी कवियित्री ’मीरां बाई’ से रहा है। मीरां बाई को ...
खेरा के बालाजी में भगवान हनुमान की अप्रतिम छवि है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि बालाजी चट्टान पर स्वाभाविक रूप से दिखाई दिए थे। खेरा के बालाजी पर जाकर आप अन्य स्थानों जैसे पटोला महादेव, ...
लाडनूं में बनी साड़ियाँ, पूरे भारत में कॉटन की साड़ियों में बेहतरीन क़िस्म की मानी जाती हैं तथा इनके चटक रंग और मुलायम कपड़े के लिए पसन्द की जाती हैं। जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण केन्द्र और अहिंसा एवं करूणा का आध्यात्मिक केन्द्र माना जाने वाला लाडनूं, 10वीं सदी में बनाया गया था। इसका अपना एक समृद्ध इतिहास है। ...
बाहर से साधारण दिखने वाला मंदिर भीतर से भव्य है। इसका प्रवेश द्वार, कटावदार मेहराब व भित्ति चित्रों से सुसज्जित है। यहाँ का शांत वातावरण मन को शांति प्रदान करता है। ...
बांसवाड़ा शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित मदारेश्वर महादेव का मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र है। पर्वतमाला के भीतर गुफा में अवस्थित अनोखे प्राकृतिक स्वरूप के कारण शिवलिंग श्रृद्धालुओं की मनोकामना का स्थल है। यहाँ पहाड़ी के ऊपर से शहर एवं प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारा जा सकता है ...
महामंदिर, जिसका शाब्दिक अर्थ महान मंदिर है, एक पवित्र स्थान है जहाँ सर्वत्र शांति व्याप्त है। ये मंदिर मंडोर मार्ग पर स्थित है और अनूठे वास्तुशिल्प का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह 84 खंभों पर टिका है ...
अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर अपने शासन के दौरान, बगदाद के सुल्तान मालिक शाह के सम्मान में यह मस्जिद बनवाई थी। यह मस्जिद अपनी अनूठी स्थापत्यकला के लिए प्रसिद्ध है। ...
923 ई. में मंडलेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण श्री मंडलनाथ ने किया था। यह शहर में सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। मंदिर की दीवारों में भगवान शिव और देवी पार्वती के असीम सुंदर चित्र हैं। ...
राजस्थान के जलियांवाला बाग़ के नाम से प्रसिद्ध मानगढ़ धाम बांसवाड़ा से 85 किमी की दूरी पर आनंदपुरी के समीप राजस्थान - गुजरात सीमा की पहाड़ी पर स्थित है। यह स्थान आदिवासी अंचल में स्वाधीनता आन्दोलन के अग्रज माने जाने वाले महान संत गोविन्द गुरू की कर्मस्थली माना जाता है। ...
मनसा देवी को माता रानी और वैष्णवी देवी के नाम से भी पूजा जाता है। यह उत्तरी भारत के प्रतिष्ठित पूजा स्थलों में से एक है तथा सबसे पवित्र माना जाता है। ...
कोटा शहर के परकोटे के भीतर पाटनपोल में श्री प्रथम बल्लभपीठ श्री मथुरेश जी का मंदिर स्थित है। रियासतकाल से कोटा कृष्ण भक्ति का प्रधान केन्द्र रहा है। यहां प्रथम पीठ के अनुयायी पूरे विश्व मे रहते हैं तथा जन्माष्टमी जैसे उत्सव-त्यौहारो पर पूरे परिवार सहित दर्शनार्थ कोटा आते हैं। ...
इस मंदिर का स्वरूप उत्तर भारतीय शैली में मीरां बाई के पूजा स्थल के रूप में किया गया था। इसकी विविधता, इसकी कोणीय छत है, जिसे दूर से ही देखा जा सकता है। ...
करौली के एक गांव मेहंदीपुर में बालाजी, यानि हनुमान जी के मंदिर की काफी दूर दूर तक मान्यता है। मान्यता के अुनसार पागल और बीमार लोग यहाँ लाए जाते हैं और बालाजी के आशीर्वाद से अधिकतर ठीक होकर जाते हैं। ...
डूंगरपुर रेल्वे स्टेशन से यह दिगम्बर जैन समुदाय का मंदिर, 35 कि.मी. की दूरी पर है। नागफनजी अपने जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जो न केवल डूंगरपुर के भक्तों को आकर्षित करते हैं बल्कि दूर दूर से यात्रा पर आये पर्यटक भी इसे देखने के लिए लालायित रहते हैं। ...
यह एक पुराना शिव मंदिर है तथा अलवर से दक्षिण की ओर, 24 कि.मी. की दूरी पर यह मंदिर चट्टानी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों से बरसात के मौसम में प्राकृतिक झरनों से कलकल करता पानी, दो तालाबों में आता है। ...
अलवर से दक्षिण पश्चिम की ओर, 80 कि.मी. की दूरी पर नारायणी माता को समर्पित यह मंदिर, स्थानीय लोगों में बड़ी मान्यता रखता है। वैशाख माह में यहाँ प्रतिवर्ष एक मेले का आयोजन किया जाता है, ...
जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित, श्री ज्ञानोदय जैन तीर्थ के नाम से पहचान रखने वाला यह जैन मन्दिर, पारम्परिक एवं समकालीन वास्तुकला का उत्तम नमूना है। इसके आसपास 24 लघु देवालय हैं, जो ’जिनालय’ के नाम से जाने जाते हैं। ...
सरिस्का से, टहला गेट की ओर लगभग 30 कि.मी. की दूरी पर राजौरगढ में नीलकण्ठ मंदिर स्थित है। किसी समय यहाँ खजुराहो शैली एवं स्थापत्य से प्रभावित अनेक मंदिर थे। ...
फालना और सांडेराव मार्ग पर भगवान शिव को समर्पित निंबोका नाथ मंदिर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों की मां कुंती भगवान शिव की पूजा करती थी और अपने निर्वासनकाल में अधिकांश समय उन्होंने महादेव की पूजा करते हुए बिताया था। ...
शेखावाटी प्रांत में प्रसिद्ध श्री पंचदेव मंदिर स्थित है। इसके कोने कोने में बहादुरी और वीरता का अपना इतिहास बयाँ होता है। हवेली के सर्वोत्कृष्ट भित्तिचित्र पर्यटकों को वर्ष भर आकर्षित करते हैं। ...
यह भगवान हनुमान को समर्पित मंदिर है, जहाँ हनुमान जी की मूर्ति लेटी हुई अवस्था में है। सरिस्का अभ्यारण्य के गेट के माध्यम से इस मंदिर की ओर, एक पगडण्डी का रास्ता है। ...
देवी एकादशी को समर्पित, ’पाप मोचिनी माता मंदिर’ के बारे में माना जाता है कि यहाँ आने वाले लोग अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं। पुष्कर के उत्तरी भाग में स्थित ये मंदिर पुष्कर के मुकुट में मोती के समान है। ...
पाराहेड़ा एक प्रसिद्ध शिव मंदिर, गढी तहसील में स्थित है। यह 12वीं शताब्दी में राजा मंडलिक द्वारा निर्मित किया गया था और बांसवाडा से लगभग 22 किलोमीटर दूर है। ...
एक गुफा में स्थित भगवान शिव को समर्पित परशुराम महादेव मंदिर के बारे में एक रोचक कथा प्रचलित है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने कुल्हाड़ी से गुफा बनाकर यहां भगवान शिव की पूजा की।...
बड़ा मंदिर नाम से पहचान बनाने वाला यह मंदिर रतनगढ़ के पास है। 19वीं शताब्दी में बना मंदिर, भगवान विष्णु के अवतार, भगवान रघुनाथ या राम को समर्पित है। इसका प्रवेश द्वार काफी ऊँचा है ...
तलवाड़ा से 3 किमी की दूरी पर प्राचीन तीर्थस्थल रामकुण्ड है। चट्टानों से बनी बड़ी गुफाओं में शिवलिंग एवं अन्य प्रतिमाएं हैं। गुफा के तल में जलकुण्ड है जिसे ’रामकुण्ड’ कहा जाता है। ...
रूणीचा बाबा रामदेव और रामसा पीर का पुण्य स्थान है ’रामदेवरा मंदिर’। इन्हें सभी धर्मों के लोग पूजते हैं। रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं। इनकी छवि घोड़े पर सवार, एक राजा के समान दिखाई देती है। इन्हें हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। ...
शहर से 40 कि.मी. दूरी पर भगवान शिव को समर्पित यह मन्दिर 10वीं शताब्दी का प्राचीन मन्दिर माना जाता है। इसकी वास्तुकला की शैली खजुराहो शैली से मिलती जुलती है, इसी लिए इसे राजस्थान का ’मिनी खजुराहो’ भी कहा जाता है। एक छोटे तालाब के किनारे बसा यह मन्दिर अन्य मन्दिरों से अनूठा है। ...
प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच, घाटियों से घिरा यह भव्य मंदिर, जैन समुदाय के लिए बड़ा तीर्थस्थल है। हीरे जैसे चमकते और तरासे गए यह मंदिर अलौकिक, अद्भुत और अद्वितीय हैं। एक जैन व्यापारी के पास दिव्य दृष्टि होने की मान्यता के बाद 15वीं शताब्दी में निर्मित, रणकपुर जैन मंदिर आदिनाथ को समर्पित है, ...
मूल रूप से दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली का यह मंदिर, थोड़ा बहुत राजपूत व मुगल शैली का भी मिश्रण है। भगवान रंग जी को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है।...
’भुआ सा’ के नाम से प्रसिद्ध रानी भटियानी एक हिन्दू देवी हैं जो पश्चिमी राजस्थान आौर सिंध पाकिस्तान में पूजनीय है। बाड़मेर के जसोल गाँव में स्थित रानी भटियानी का मंदिर मुख्यतया ढोली जाति के लोगों द्वारा श्रृद्धा से माना जाता है। यह रानी जैसलमेर के जोगीदास गाँव की राजकुमारी थी ...
रानी सती मंदिर राजस्थान में झुझंनू जिले में स्थित विख्यात मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास 400 से अधिक वर्षों का है। स्त्री शक्ति का प्रतीक यह मंदिर अपनी गरिमा और असाधारण चित्रों के लिए जाना जाता है। ...
सांई बाबा के भक्तों के लिए यह मन्दिर वास्तुकला का नवीनतम नमूना है तथा बहुत लोकप्रिय है। अजय नगर में लगभग दो एकड़ में फैले, इस मंदिर को अनूठे पारदर्शी सफेद संगमरमर से बनाया गया है, ...
शहर से 3 कि.मी. की दूरी पर भण्डारिया हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर है जो देवस्थान विभाग द्वारा संचालित है। पहाड़ी की तलहटी में स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण शहर से दूर सुरम्य वातावरण में मन को शांति प्रदान करता है।...
ब्रह्मा मंदिर के पीछे, ऊँची पहाड़ी पर सावित्री मंदिर है जो कि ब्रह्मा जी की पहली पत्नि थीं। मंदिर तक पहुँचने के लिए सुविधाजनक सीढ़िया बनी हुई हैं। ऊपर चढ़कर मंदिर से नीचे की ओर झील, मंदिर और रेत के टीलों का विहंगम दृष्य बेहद सुन्दर दिखाई पड़ता है।...
बारां से करीब 80 कि.मी. की दूरी पर शाहबाद का क़िला अपनी मजबूती के लिए जाना जाता है। इसे 16वीं शताब्दी में चौहान राजपूत मुक्तमनी देव द्वारा निर्मित कराया गया था। घने जंगली इलाके में सीना ताने यह क़िला, कुंड कोह घाटी से घिरा है और इसकी दीवारे कुछ उल्लेखनीय संरचनाओं से सुसज्जित हैं।...
यह मस्ज़िद बारां से करीब 80 कि.मी. की दूरी पर है, जो अपने वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। इसका प्रारूप दिल्ली की जामा मस्ज़िद को देखकर बनाया गया तथा यह अपने सुन्दर मेहराबों व स्तम्भों के कारण, बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करती है। ...
मुचुकुंद के पास, यह गुरूद्वारा, सिख गुरू हरगोविन्द साहिब की धौलपुर यात्रा के कारण, स्थापित किया गया था। शेर शिखर गुरूद्वारा, सिखधर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है तथा ऐतिहासिक महत्व व श्रृद्धा का स्थान रखता है। ...
इस मंदिर में काले संगमरमर की बनी, चौमुखी शिव भगवान की प्रतिमा तथा शिवलिंगम के सामने कांस्य की नंदी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में पानी के दो बड़े जलाशय भी हैं, जिन्हें बावड़ी के रूप में जाना जाता है। ...
सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक, चोपरा शिव मंदिर, 19वीं सदी में बनाया गया था। प्रत्येक सोमवार को यहाँ भक्तों की भीड़ नजर आती है, क्योंकि सोमवार का दिन भगवान शिव का माना जाता है।...
सम्पूर्ण भारत में, बालाजी का नाम एक पंसदीदा नाम है जो वानर देवता श्री हनुमान के लिए प्रयुक्त किया जाता है। श्री बीड़ के बालाजी मंदिर शाहपुरा तहसील के कंचन गांव से 3 किलोमीटर दूर स्थित है और प्रकृति से घिरा हुआ है। ...
भीलवाड़ा आने वाले कई पर्यटक राजसमंद जाते हैं जहां श्री चारभुजानाथ मंदिर स्थित है। भीलवाड़ा से एक सुविधाजनक दूरी पर कोटड़ी तहसील में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। ...
भगवान लक्ष्मीनाथ यानी विष्णु भगवान को, बीकानेर के शासकों ने अपना कुल देवता माना तथा स्वयं को उनके दीवान या मंत्रियों के रूप में माना। संगमरमर और लाल पत्थर से बने इस मंदिर का निर्माण, भगवान लक्ष्मीनाथ के देवालय के रूप में किया गया। ...
उन्नीसवीं सदी में बना, बेजोड़ वास्तुशिल्प की संरचना है, श्री महावीर जी का मंदिर, जो कि एक जैन तीर्थस्थल है। इस मंदिर की इमारत में जैन कला से प्रेरित संरचना तथा आलेखन है। ...
जैन समुदाय के चमत्कारिक तीर्थों में से एक है, यह मंदिर। गंभीरी नदी के तट पर बना यह मंदिर 24वें जैन तीर्थंकर श्री महावीर जी को समर्पित तीर्थस्थल है। ...
यह भव्य जैन मन्दिर, बहुत सारे हमले सह चुका है। मुगलों के समय में आलमशाह ने 13वीं शताब्दी में इस मन्दिर पर हमला किया और इसे लूट कर ले गया था। लेकिन भाग्यवश भगवान की प्रतिमा को नहीं ले जा सका था। ...
भगवान कृष्ण का यह मंदिर तीन मंजिला कक्ष में है, जो यहाँ स्थित तीनों मंदिरों के लिए गोध मंडप, एक सार्वजनिक कक्ष है। 1623 में महाराज पुंजराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसका प्रमुख आकर्षण श्री राधिकाजी और गोवर्धननाथ जी की मूर्तियां है।...
रावल रतन सिंह द्वारा, महर्षि जाबली के सम्मान में, यह मंदिर कलशचल पहाड़ी पर 646 मीटर ऊँचाई पर बनवाया गया था। एक किंवदंती के अनुसार इस मंदिर में एक बार पांडवों ने शरण ली थी। ...
सीता माता और लक्ष्मण को समर्पित यह मन्दिर, बारां से 45 कि.मी. दूर है तथा ऐसी मान्यता है कि भगवान राम और सीता के दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म यहीं पर हुआ था। इसमें कई कुण्ड भी हैं जैसे-वाल्मीकि कुण्ड, सीता कुण्ड, लक्ष्मण कुण्ड, सूर्य कुण्ड आदि।...
पाली शहर के मध्य में स्थित सोमनाथ मंदिर अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और प्रतिमाओं के लिए विख्यात है। यह 1920 में गुजरात के राजा कुमारपाल सोलंकी द्वारा बनाया गया था। ...
19वीं सदी में निर्मित यह जैन मन्दिर, भारत के समृद्ध मंदिरों में से एक है। इसके मुख्य कक्ष को स्वर्णनगरी का नाम दिया गया है। इसका प्रवेश द्वार लाल पत्थर से तथा अन्दर संगमरमर की दीवारें बनी हैं।...
ब्राह्मण समुदाय के लोग इसे माता का मन्दिर कहते हैं तथा बड़ी श्रृद्धा से शीश नवाते हैं। बारां से 20 कि.मी. दूर यह मन्दिर सोरसन गांव में है तथा यहाँ शिवरात्रि के अवसर पर प्रतिवर्ष एक मेला आयोजित किया जाता है। इसमें बड़ी तादाद में भक्त लोग आते हैं।...
पंचकुण्ड शिव मंदिर को पांच पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है। शहर के पूर्वी किनारे पर स्थित यह मंदिर सरोवर से 2-3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अटभटेष्वर महादेव मंदिर - 12वीं शताब्दी का यह सुन्दर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ एक भूमिगत तहखाना है। ...
झालावाड़ का दूसरा जुड़वां शहर है झालरापाटन, जिसे ‘सिटी ऑफ बैल्स’ यानि घंटियों का शहर भी कहा जाता है। यहीं पर बना है सूर्य मंदिर। यहाँ पर बहुत से मंदिर होने के कारण सुबह शाम मंदिरों की घंटियों की स्वर लहरी सुनाई देती है। 10वीं शताब्दी में बना 17 फीट ऊँचा भगवान शिव को समर्पित सूर्य मंदिर, झालरापाटन के सर्वाधिक मनोहारी मंदिरों में से एक है। ...
अरावली रेंज में सुंधा पर्वत के ऊपर स्थित, सुंधा माता मंदिर है। यह मंदिर समुद्र तल से ऊपर 1220 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया है और पूरे भारत के भक्तों द्वारा बहुत पवित्र माना जाता है।
डूंगरपुर से लगभग 3 किलोमीटर दूर ’सुरपुर’ नामक प्राचीन मंदिर गंगदी नदी के किनारे पर स्थित है। मंदिर के आस पास के क्षेत्र में भूलभुलैया, माधवराय मंदिर, हाथियों की आगद और महत्वपूर्ण शिलालेख जैसे अन्य आकर्षण भी हैं। ...
यह अलवर से 40 कि.मी. की दूरी पर बना वह स्थल है जहाँ मांडव ऋषि ने तपस्या की थी। महाभारत काल के अनुसार, अर्जुन ने अज्ञातवास के दौरान, अपने हथियार तालवृक्ष स्थित एक विशाल वृक्ष के तने में छिपाए थे। ...
शिल्प नगर तलवाड़ा में त्रिपुरा सुन्दरी मार्ग पर स्थित सिद्धि विनायक मंदिर आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इसे ’आमलीया गणेश’ के नाम से जाना जाता है। बुधवार एवं सकंट चतुर्थी को श्रृद्धालु आते हैं। यहाँ सूर्य मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, राम मंदिर प्रमुख है। ...
भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि.सं. 828 में तन्नोट माता का मंदिर बनवा कर, मूर्ति की स्थापना की थी। यहाँ आस पास के सभी गाँवों के लोग तथा विशेषकर, बीएसएफ के जवान यहां पूर्ण श्रृद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं। जैसलमेर से क़रीब 120 किलोमीटर दूर ’तन्नोट माता’ मंदिर है। ...
इस मंदिर को हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लोग मानते हैं। हिन्दू गोगाजी को गोगा जी देवता तथा मुस्लिम इन्हें गोगा पीर कहते हैं। हनुमानगढ़ से लगभग 120 किलोमीटर दूर, श्री गोगाजी का मंदिर स्थित है। किंवदंती प्रचलित है कि गोगाजी एक महान योद्धा थे ...
अजमेर में दरगाह के अलावा भी बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। अजमेर में सर्वाधिक देशी व विदेशी पर्यटक ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने तथा मन्नत पूरी होने पर चादर चढ़ाने आते हैं। सभी धर्मों के लोगों में ख़्वाजा साहब की बड़ी मान्यता है। ...
अलवर दिल्ली मार्ग से लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर यह जैन तीर्थ स्थल बना हुआ है। आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्र प्रभा भगवान की स्मृति में यह प्राचीन मन्दिर बनवाया गया था। राजा महासेन और रानी सुलक्षणा के पुत्र ने अपने इस राज्य पर शासन करने के बाद, यहीं पर दीक्षा प्राप्त की थी। ...
बिजोलिया से 15 कि.मी. दूर स्थित चार मंदिर हैं, जिनमें से प्रमुख सर्वेष्वर (शिव) को समर्पित है, जो कथित तौर पर 10वीं या 11वीं सदी से सम्बन्धित है। मंदिर परिसर में एक मठ, एक कुंड या जलाशय और एक तोरण अथवा विजय स्मारक भी है।...
बांसवाड़ा - डूंगरपुर मार्ग पर 19 किमी दूरी पर तलवाडा ग्राम के समीप उमराई गांव में स्थित माँ त्रिपुरा सुन्दरी का प्राचीन मन्दिर है। मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का एक शिवलिंग होने से कहा जाता है कि यह स्थान कनिष्क के पूर्वकाल से ही प्रतिष्ठित है। ...
यह मंदिर 16वीं सदी में बनवीर ने देवी दुर्गा के सम्मान में बनवाया था। किवंदती के अनुसार बनवीर ने मंदिर बनवाने के लिए, अपने वज़न के बराबर स्वर्ण आभूषण दान दिए थे। इसीलिए इस मंदिर का नाम ’तुलजा मंदिर’ रखा गया।...
यह जैन तीर्थ हैं जहाँ भगवान पार्श्वनाथ की हजार वर्ष पुरानी एक प्रतिमा है। जैन यात्रियों के लिए यह तीर्थ धार्मिक आस्था का केन्द्र है। यात्रियों हेतु लागत मूल्य पर व्यंजनों और समुचित आवास की व्यवस्था भी मंदिर क्षेत्र में है। ...
वराह मंदिर पुष्कर का सबसे बड़ा और सबसे प्राचीन मंदिर है। 12वीं शताब्दी के शासक राजा आनाजी चौहान द्वारा निर्मित यह मंदिर भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह को समर्पित हैं। ...
भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित ’विजय राजराजेश्वर मंदिर’ गैप सागर झील के तट पर स्थित है। यह अपने समय की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प को प्रदर्शित करता है। मंदिर का निर्माण महाराज विजय सिंह द्वारा प्रारम्भ किया गया था एवं जिसे महारावल लक्ष्मणसिंह द्वारा 1923 ई. में पूरा किया गया। ...
इस मन्दिर को पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनाने में इसकी वास्तुकला तथा आस पास के बाजार का सहयोग मिला। खेड़ गाँव में स्थित यह विष्णु मन्दिर, हालांकि कई जगह से खण्डित हो रहा है, लेकिन आज भी इसके चारों तरफ एक भव्य आभा दिखाई देती है। ...
एक अद्भुत और अविस्मरणीय नज़ारा देखना न भूलें, जब पुष्कर में वराह घाट पर संध्या के समय दीयों की झिलमिलाती रौशनी के बीच मधुर घंटियों के स्वर गुन्जायमान होतें हैं। हरे कृष्णा के मन्त्रोच्चारण से आप की आत्मा तृप्त हो जाएगी, ...
दिलवाड़ा या देलवाड़ा रोड पर, देलवाड़ा जैन मंदिर के समीप ही यह छोटा मंदिर है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर बहुत ही शांतिपूर्ण परिवेश प्रदान करता है और माउण्ड आबू में स्थित सभी पवित्र स्थलों में से सबसे ज्यादा पुराना माना जाता है।...
छठी शताब्दी के अंश को समाहित किए, नागदा उदयपुर से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा नागदा, जटिल नक्काशीदार ‘‘सहस्त्रबाहु मंदिर’’ के लिए प्रसिद्ध है जो कि आम लोगों में ‘सास बहू मंदिर’’ के नाम से पहचाना जाता है।...