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  • बांसवाड़ा

    बांसवाड़ा

    सुनहरे द्वीपों का शहर

    कागदी  पिकअप  वीयर

बांसवाड़ा

सुनहरे द्वीपों का शहर

राजस्थान के सुदूर दक्षिणांचल में अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच स्थित बांसवाड़ा की स्थापना महारावल जगमालसिंह ने की। वागड़ (बांसवाड़ा - डूंगरपुर) - मेवाड़, मालवा एवं गुजरात की संस्कृति का संगम स्थल है। बांसवाड़ा प्राकृतिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक, रमणीक, धार्मिक एवं कलात्मक दृष्टि से परिपूर्ण है। बांस, सागवान यहाँ बहुतायत में पाया जाता है। जंगल एवं पानी की प्रचुरता के कारण इसे राजस्थान का ‘चेरापूंजी’ कहा जाता है। वागड़ क्षेत्र को समृद्ध करने वाली ‘वाग्वर गंगा’ जिसे माही सागर कहा गया है, - माही बाँध के कारण बने टापुओं को ‘‘सिटी ऑफ हण्ड्रेड आईलैण्ड्स’’ के नाम से जाना जाता है।

बांसवाड़ा में आने और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

बांसवाड़ा की पेशकश करने वाली चमत्कार और साइटें तलाशें। राजस्थान में हमेशा कुछ देखने को मिलता है

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  • आनंद सागर झील

    आनंद सागर झील

    महारावल जगमल सिंह की रानी लंची बाई द्वारा इस झील का निर्माण किया गया था। बाई तालाब के नाम से लोकप्रिय यह मीठे पानी की कृत्रिम झील है। यह झील बांसवाड़ा के पूर्वी भाग में स्थित है तथा यहाँ कल्प वृक्ष भी हैं। कहते हैं, जो भी यहाँ आ कर अपनी इच्छा मांगता है वह पूरी हो जाती है। करीब ही राज्य के शासकों की छतरियाँ व स्मारक भी बने हुए हैं।

  • अब्दुल्ला पीर

    अब्दुल्ला पीर

    यह बोहरा मुस्लिम संत अब्दुल रसूल की लोकप्रिय मज़ार है। शहर के दक्षिणी भाग में स्थित इस दरगाह को अब्दुल्ला पीर के नाम से जाना जाता है। हर वर्ष बड़ी संख्या में विशेषतः बोहरा समुदाय के लोग दरगाह के उर्स में शामिल होने आते हैं।

  • अन्देश्वर पार्श्वनाथजी जी

    अन्देश्वर पार्श्वनाथजी जी

    बांसवाड़ा से 40 कि.मी. की दूरी पर दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ अंदेश्वर पार्श्वनाथजी सभी धर्मों के आस्था का केन्द्र है। मुख्य मंदिर में जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथजी की पद्मासनस्थ कृष्णवर्णा पाषाण प्रतिमा है। गर्भगृह और दीवारों पर भगवान पार्श्वनाथजी के दस भव और जैन तीर्थांकरों को अत्यंत सुंदर कांच में चित्रित किया गया है। पहाड़ी पर शिव मंदिर उत्तर में दक्षिणाभिमुख हनुमान मंदिर व पार्श्व में पीर दरगाह भी है जो सभी धर्मावलम्बियों का केन्द्र है।

  • रामकुण्ड

    रामकुण्ड

    तलवाड़ा से 3 किमी की दूरी पर प्राचीन तीर्थस्थल रामकुण्ड है। चट्टानों से बनी बड़ी गुफाओं में शिवलिंग एवं अन्य प्रतिमाएं हैं। गुफा के तल मंे जलकुण्ड है जिसे ’रामकुण्ड’ कहा जाता है। ऊपर से देखने पर एक पहाड़ी है जहां हरियाली एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से पूर्ण यह स्थल मनोहारी है। यहां एक बड़ी गुफा भी है मान्यता है कि वह गुफा ’घोटिया आम्बा’ तक जाती है।

  • विठ्ठल देव मंदिर

    विठ्ठल देव मंदिर

    बांसवाड़ा से कुछ किलोमीटर दूर विठ्ठल देव मंदिर स्थित हैं। एक सुंदर लाल रंग की संरचना वाला यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है।

  • डायलाब झील

    डायलाब झील

    बाँसवाड़ा शहर से जयपुर मार्ग पर स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य से पूर्ण डायलाब तालाब हनुमान मंदिर के कारण धार्मिक आस्था का केन्द्र है। यहाँ पर वर्ष पर्यन्त श्रृद्धालु आते हैं।

  • कागदी पिक अप वियर

    कागदी पिक अप वियर

    शहर का प्रमुख प्राकृतिक, रमणीक स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ बच्चों के मनोरंजन हेतु पार्क, झूले, तरणताल, नौकायान की सुविधा उपलब्ध है।

  • माहीबांध

    माहीबांध

    यह वागड़ विकास की भागीरथ अचंल की अविस्मरणीय सौग़ात है। बांसवाड़ा से 18 किमी की दूरी पर संभाग का यह सबसे बड़ा बाँध है, जिसमें 16 गेट हैं तथा बांध की कुल लम्बाई 3.10 किमी है। वर्षाकाल में जब यह पूर्ण भर जाता है तब सभी गेट खोलने पर जो दृश्य उत्पन्न होता है उसका नज़ारा अनुपम और मनोहारी होता है। इसे देखने को पूरे वर्ष सैलानी इंतेज़ार करते हैं। यहां वॉटर स्पोर्ट्स की असीम संभावना है।

  • पाराहेड़ा

    पाराहेड़ा

    पाराहेड़ा एक प्रसिद्ध शिव मंदिर, गढी तहसील में स्थित है। यह 12वीं शताब्दी में राजा मंडलिक द्वारा निर्मित किया गया था और बांसवाडा से लगभग 22 किलोमीटर दूर है।

  • राज मंदिर

    राज मंदिर

    राज मंदिर, जिसे सिटी पैलेस भी कहा जाता है, १६वीं शताब्दी का एक ढांचा है जो एक पहाड़ी के ऊपर ऐसे विराजमान है जैसे कि नीचे के शहर पर नज़र रखनी हो । यह पुराने राजपूत वास्तुकला की शैली में निर्मित है। यह महल अभी भी शाही परिवार के अंतर्गत आता है।

  • तलवाड़ा मंदिर

    तलवाड़ा मंदिर

    शिल्प नगर तलवाड़ा में त्रिपुरा सुन्दरी मार्ग पर स्थित सिद्धि विनायक मंदिर आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इसे ’आमलीया गणेश’ के नाम से जाना जाता है। बुधवार एवं सकंट चतुर्थी को श्रृद्धालु आते हैं। यहाँ सूर्य मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, राम मंदिर प्रमुख है। यहां सोमपुरा शिल्पकारों की पत्थरों पर उत्कीर्ण कला की देश विदेश में ख्याति है। पर्यटन विभाग द्वारा ग्रामीण पर्यटन के अन्तर्गत इस स्थान का चयन किया गया तथा इसमें विकास के कार्य किये गये।

  • त्रिपुरा सुन्दरी

    त्रिपुरा सुन्दरी

    बांसवाड़ा - डूंगरपुर मार्ग पर 19 किमी दूरी पर तलवाडा ग्राम के समीप उमराई गांव में स्थित माँ त्रिपुरा सुन्दरी का प्राचीन मन्दिर है। मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का एक शिवलिंग होने से कहा जाता है कि यह स्थान कनिष्क के पूर्वकाल से ही प्रतिष्ठित है। काले पाषाण की सिंह पर सवार 18 भुजाओं वाली दिव्य आयुष विशाल प्रतिमा है, जो शक्ति पीठ के रूप में जानी जाती है। स्थानीय लोग इसे ’तरतई माता, त्रिपुरा महालक्ष्मी’ के नाम से पुकारते हैं। मंदिर के समीप शिलालेख विक्रम संवत 1540 का लगा हुआ है। देश-विदेश में प्रसिद्ध शक्ति पीठ मां त्रिपुरा सुन्दरी आस्था का प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है। चैत्र एवं अश्विन नवरात्रि में हजारों की संख्या में श्रृद्धालु अपनी मनोकामना हेतु यहां आते हैं। माँ भगवती त्रिपुरा सुन्दरी की भव्यता का आधार चमत्कारित और अद्भुत मूर्ति एवं आधारशिला पर अंकित श्री यंत्र, बाह्य एवं अन्तः पूजा का प्रतीक है।

  • मदारेश्वर मंदिर

    मदारेश्वर मंदिर

    बांसवाड़ा शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित मदारेश्वर महादेव का मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र है। पर्वतमाला के भीतर गुफा में अवस्थित अनोखे प्राकृतिक स्वरूप के कारण शिवलिंग श्रृद्धालुओं की मनोकामना का स्थल है। यहाँ पहाड़ी के ऊपर से शहर एवं प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारा जा सकता है। श्रावण मास में बेणेश्वर से मदारेश्वर तक कावड यात्री बेणेश्वर से पवित्र जल कलश में भरकर पैदल ही यहाँ पहुँचते हैं, तत्पश्चात् मदारेश्वर का जलाभिषेक करते हैं साथ ही जिले का शिवरात्रि में सबसे बड़ा मेला भी लगता है।

  • कल्पवृक्ष

    कल्पवृक्ष

    रतलाम मार्ग पर स्थित पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन में उत्पन्न चौदह रत्नों में से एक कल्पवृक्ष माना गया है। मान्यतानुसार पीपल एवं वट वृक्ष तरह विशाल यह वृक्ष मनोकामनाएं साकार करता है। एक दुर्लभ वृक्ष है जिसका धार्मिक एवं सामाजिक महत्व है। श्रावण मास एवं अमावस के दिन विशेष अर्चना की जाती है। यहां कल्पवृक्ष जोडे़ अर्थात् नर-मादा के रूप में स्थित है, जिन्हें राजा-रानी के नाम से जाना जाता है। नर अर्थात् राजा का तना पतला एवं मादा अर्थात् रानी का तना मोटा होता है। लोक मान्यतानुसार इसकी पूजा रोग निवारण के रूप में की जाती है। अर्थात् कल्पवृक्ष की छाल एवं फल सुख समृद्धि का प्रतीक माना गया है।

  • सवाईमाता भण्डारिया

    सवाईमाता भण्डारिया

    शहर से 3 कि.मी. की दूरी पर भण्डारिया हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर है जो देवस्थान विभाग द्वारा संचालित है। पहाड़ी की तलहटी में स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण शहर से दूर सुरम्य वातावरण में मन को शांति प्रदान करता है। ऊपर पहाड़ी पर स्थित सवाईमाता का प्रसिद्ध मंदिर है जहां पर नवरात्रि में श्रृद्धालु आते हैं तथा पहाड़ से शहर का नज़ारा देखते हैं।

  • मानगढ़ धाम

    मानगढ़ धाम

    राजस्थान के जलियांवाला बाग़ के नाम से प्रसिद्ध मानगढ़ धाम बांसवाड़ा से 85 किमी की दूरी पर आनंदपुरी के समीप राजस्थान - गुजरात सीमा की पहाड़ी पर स्थित है। यह स्थान आदिवासी अंचल में स्वाधीनता आन्दोलन के अग्रज माने जाने वाले महान संत गोविन्द गुरू की कर्मस्थली माना जाता है। ऐतिहासिक मान्यतानुसार इसी स्थान पर 17 नवम्बर 1913 को गोविन्द गुरू के नेतृत्व में मानगढ़ की पहाड़ी पर सभा के आयोजन के दौरान अंग्रेजी हुकू़मत के खिलाफ स्वतंत्रता की मांग कर रहे, 1500 राष्ट्रभक्त आदिवासियों पर अंग्रेज़ों ने निर्ममता पूर्वक गोलियां चलाकर उनकी नृशंष हत्या कर दी थी। मानगढ़ धाम पर प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश से हज़ारों श्रृद्धालु आते हैं। वर्तमान में इसे राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है। गुजरात सरकार एवं राजस्थान सरकार द्वारा इसके विकास के कार्य किए जा रहे हैं।

  • छींछ

    छींछ

    बागीदौरा मार्ग पर छींछ गांव में तालाब के किनारे 12वीं शताब्दी का प्राची ब्रह्मा मंदिर है। यहाँ कृष्ण पाषाण पर हंस की आकृतिनुमा चतुर्भुज ब्रह्माजी की आदमक़द प्रतिमा, शिल्प की दृष्टि से अद्भुत और विलक्षण है। ब्रह्माजी के बांयी तरफ भगवान विष्णु की दुर्लभ प्रतिमा श्रृद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार खण्डित प्रतिमा के स्थान पर वर्तमान प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.सं. 1503 में महारावल जगमालसिंह द्वारा करवाई गई थी। यहां एक शिलालेख है जिसमें वि.सं. 1952 का उल्लेख है जिसके अनुसार कल्ला के पुत्र देवदत्त ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर मंे सप्तऋषि की ब्रह्माजी की मूर्ति भी है।

  • सिंगपुरा - बांसवाड़ा

    सिंगपुरा - बांसवाड़ा

    छुट्टियां बिताने के लिए सिंगपुरा (बांसवाड़ा) एक समकालीन स्थल है परन्तु अन्य स्थानों की तुलना में, लीक से हट कर है। ’सिंगपुरा’ राजस्थान के बांसवाड़ा ज़िले में शहर से लगभग 10 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। सिंगपुरा में एक सुन्दर झील है, छोटी पहाड़ियां हैं, एक जंगल और चारों ओर हरियाली नज़र आती है तथा यहीं आपको घूमने के अन्य स्थानों से अधिक प्राकृतिक सुन्दरता देखने के अवसर मिलेंगे। कई प्रकार से सिंगपुरा एक ग्रामीण परिवेश में राहत और सुकून पाने की जगह है, जहाँ आप प्रकृति के नज़दीक रहकर, अपनी छुट्टियों का आनन्द ले सकते हैं। राजस्थान का यह गाँव छोटा अवश्य है परन्तु सुखद और रमणीक स्थल है।

  • जुआ झरने - बांसवाड़ा

    जुआ झरने - बांसवाड़ा

    राजस्थान एक ऐसा ज़िला है जहाँ अनगिनत संख्या में रहस्यमय रत्न छिपे हुए हैं, जिन में से कुछ ऐसे अनछुए और अनदेखे स्थानों में से एक हैं बांसवाड़ा के ’जुआ फॉल्स’ यानी ’जुआ झरने’। ’जुआ फॉल्स’ को देखने के लिए सबसे अच्छा समय बारिश का मौसम है, जब यहां प्राकृतिक रूप से पहाड़ियों से निकलने वाले झरने अपने पूरे शबाब पर होते हैं। शांत और निर्मल वातावरण में रोजाना की भाग - दौड़ भरे जीवन में, कुछ पल सुकून के बिताने के लिए, यहाँ आकर आपको आराम करने और घूमने का भरपूर मौक़ा मिलेगा। ’जुआ फॉल्स’ को देखने और यहाँ के दृश्यावलोकन को यादगार बनाने के लिए यहाँ पर आना सार्थक रहेगा।

बांसवाड़ा के उत्सव और परम्पराओं के आंनद में सम्मिलित हों। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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बांसवाड़ा में गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजस्थान में करने के लिए सदैव कुछ निराला है।

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यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है जो कि 185 कि.मी. दूर है।
  • Car Icon बांसवाड़ा से उदयपुर, जयपुर और भरतपुर के लिए बसें उपलब्ध हैं।
  • Train Icon निकटतम रेल्वे स्टेषन रतलाम है जो कि 80 कि.मी. दूर है।

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बांसवाड़ा के समीप देखने योग्य स्थल

  • डूंगरपुर

    104 कि.मी.

  • उदयपुर

    164 कि.मी.

  • चित्तौड़गढ़

    196 कि.मी.