संदीपस्थान
संदीप की नजरों से राजस्थान
संदीप | जनवरी 19, 2018
-
राजस्थान में वन्यजीवों की गूंज का जवाब देते हुए
यह तभी सम्भव है जब आप भीड़भाड़ भरी ज़िन्दगी से दूर हो जाएं और जंगली परन्तु मासूम, छल-कपट से परे, जानवरों को देखकर शांति और सुकून का एहसास करें। राजस्थान के क़िले और महलों में आप सतरंगी दुनियां और जादूभरे आकर्षण देख सकते हैं, जिनमें आपको इतिहास, संस्कृति और शाही ठाट-बाट के प्रतीक मिलेंगे, लेकिन शांति पाने के लिए आपको वन्यजीवों और उनके रहन-सहन को पास से देखने आना होगा। यहाँ के सर्वाधिक संरक्षित और सुरक्षित वन्यजीव अभ्यारण्य देख कर आप इन जंगली जानवरों के साथ भी असहज नहीं होंगे।
-
जोरबीड़ (जोरबीर)
बीकानेर से लगभग 15 कि.मी. दूर, एशिया के महत्त्वपूर्ण पक्षी विहारों में से एक है जोरबीर। यहाँ आपको जंगली शिकारी पक्षियों के समूह, अपने वास्तविक आवास में दिखाई देंगे। इनमें टॉनी ईगल्स, इजिप्शियन वल्चर्स (गिद्ध) हिमालयन तथा यूरेशियन ग्रिफॉन वल्चर्स तथा सभी प्रकार के गिद्ध, विशेषकर सर्दी के मौसम में दिखाई पड़ते हैं। यह नज़ारा आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेगा, चाहे आप पक्षी प्रेमी हों या नहीं। अद्भुत प्रजाति की चिड़ियाँ, पेड़ों पर तथा जमीन पर झुण्डों में बैठी हुई, इम्पीरियल ईगल, आईबीज, काली आँखों वाली चीलें, शिकरा, बाज़ पीली आँखों वाले कबूतर, तथा अन्य शिकारी पक्षी यहाँ बहुतायत में दिखाई देंगे। हमारे कहने का मतलब है यहाँ आने के लिए गिद्ध की सी नज़र रखनी होगी।
-
कैलादेवी वन्य जीवन अभ्यारण्य
कैलादेवी वन्य अभ्यारण्य, वास्तविक रूप से प्रसिद्ध रणथम्भौर नेशनल पार्क का ही एक हिस्सा है। राजस्थान और मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर, करौली जिले में यह स्थल वन्यजीव देखने के लिए उत्तम है। यह अभ्यारण्य कैला देवी के नाम पर है तथा कैला देवी मन्दिर के पास से ही इसकी सीमा शुरू होती है। करौली की अभिरक्षक देवी ’कैला देवी’ को यह मन्दिर समर्पित है। इस अभ्यारण्य के बॉर्डर पर बनास नदी व चम्बल नदी है तथा पश्चिम और दक्षिण-पूर्व में अभ्यारण्य है। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ ही यहाँ वन्य जीव भी काफी संख्या में हैं जैसे - चीता, भेड़िया, शेर, भालू, जंगली सूअर, चिंकारा, सांभर आदि। यहाँ पर बैठे सुन्दर किंगफिशर तथा सैन्डपाइपर्स को देखने के लिए जीप सफारी द्वारा जाना एक उत्तम साधन है।
-
मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व, कोटा
दर्राह सैंक्चुअरी, भारत की प्राचीनतम अभ्यारण्यों में से एक है, जहाँ पर मुकुन्दरा हिल्स नैश्नल पार्क स्थित है। आजादी से पहले, यह क्षेत्र कोटा स्टेट की शिकारगाह था तथा शेर चीते व हिरणों का घर था। दर्राह, जवाहर सागर तथा नैश्नल चम्बल सैंक्चुअरी को मिलाकर, यह मुकुन्दरा हिल्स नैश्नल पार्क बनाया गया था। इसे सुविकसित तथा संरक्षित किया गया है तथा यहाँ जल्द ही शेरों को लाकर रखा जाएगा। इस रिजर्व की पहाड़ियों की ढलान पर, धोक के पेड़ तथा शीशम, बील, इमली, अर्जुन, फीकस, खेर, गुर्जन, सालार के पेड़ हैं। सांभर, चीतल, नीलगाय, हिरण, बारहसिंगा इस अभ्यारण्य में देखे जा सकते हैं। चीते और भेड़िए भी काफी संख्या में यहाँ मौजूद हैं। मुकुन्दरा का यह भाग फ्लाई कैचर, गोल्डन ओरियोल, वुड पैकर, डव्ज, बैबलर, मैना, सैन्डग्राउज़, नाइटजार्स, गिद्ध, उल्लू तथा बाज के लिए उपयुक्त संरक्षित स्थल है। यहाँ की झीलें व तालाब विविध प्रकार के प्रवासी पक्षियों जैसे बतख़ें व ग़ीज़ को आकर्षित करते हैं। इस अभ्यारण्य में वन्य जीव प्रजातियों के अलावा बहुत से ऐतिहासिक स्मारक भी हैं। पर्यटकों के लिए दर्राह, बाड़ोली के मन्दिर, गागरोन का क़िला तथा गुफा-पेन्टिंग्स आकर्षण का केन्द्र हैं।
-
सोर्सन
गोडावण के संरक्षण के लिए मानवीय सहायता काफी न हो सकी, परन्तु गोडावण ने इस क्षेत्र को अन्य वन्य जीवों जैसे ब्लैक बक, चिंकारा, इण्डियन फॉक्स, भेड़िया तथा जंगली घास में रहने वाली चिड़ियों के लिए सुरक्षित रखा है। सन् 1990 में इस क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया गया था, जब यहाँ पहली बार 35 ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड को घास के मैदान में घूमते हुए, पक्षी-प्रेमियों ने देखा। परन्तु सोर्सन की महत्ता, गोडावण की कमी के कारण समाप्त हो गई, क्योंकि यहाँ पर आने वाले लोगों तथा ख़तरनाक, शिकारी पशु व पक्षियों की बहुतायत हो गई है। ब्लैकबक तथा चिंकारा के झुण्ड यहाँ घास के मैदान में भागते-दौड़ते नज़र आते हैं, जहाँ खेजड़ी तथा बेर की झाड़ियाँ काफी मात्रा में हैं। यह पक्षी प्रेमियों के लिए स्वप्नलोक है, जहाँ कोयल, उल्लू, बाज, हैरियर, कोर्सर्स, गिद्ध, सैन्डग्राउज आदि की अच्छी फोटोग्राफी की जा सकती है। कोटा (35 किमी) तथा बारां (30 किमी) की दूरी पर होने के कारण यहाँ प्रकृति के गंतव्य स्थल तक पहुँचना आसान है।