रीति- रिवाज और परम्पराएं
राजसी राज्य राजस्थान की कला और संस्कृति भारतीय जीवन शैली का प्रतिबिम्ब है। राजस्थान के लोग धूम –धाम के साथ अपनी परंपराओं का उत्सव मनाते हैं। राजस्थानी परंपरायें, संस्कार और अनुष्ठान हजारों वर्षों से वेदों के युग के है। जीवन के महत्वपूर्ण अवसर विशेष प्रक्रियाओं और परम्पराओं के साथ मनाये जाते हैं जो इस राज्य में बहुत खास हैं। यहां उनमें से कुछ प्रस्तुत है:
जन्म :
एक बच्चे का जन्म राजस्थान में बड़े अनूठे आनन्द से मनाया जाता है। बच्चे के इस दुनिया में आने की खबर सुनने के लिये तांबे की थालियाँ बजाई जाती हैं । परिवार द्वारा एक पंडित को बच्चे को आशीर्वाद देने और उसकी कुंडली पढ़ने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
नामकरण
कुछ दिन बाद नामकरण संस्कार समारोह मनाया जाता है परिवार की महिलाएं गीत गाती जाती हैं । पंडित पवित्र मंत्रोच्चार से बच्चे को आशीर्वाद देते है और उसका एक नाम रखते हैं ।
मुंडन
एक छोटे बच्चे के पहले बाल पूर्व जन्म के नकारात्मक लक्षण से जुड़े होते हैं अतः एक से तीन वर्ष की उम्र के बीच बच्चे के बाल कटवा दिये जाते हैं।इस आयोजन को मुंडन कहा जाता है जब तक बच्चे के बाल कटते है तब तक वेदमंत्रो का उच्चारण किया जाता है।
राजस्थान में विवाह :
राजस्थान में विवाह आयोजन राजस्थान के विवाह उत्सव शानदार और यादगार होते है। सगाई से ही कई आयोजन शुरू हो जाते है और विवाह के बाद तक चलते रहते हैं ।
तिलक
यह सगाई समारोह दूल्हे के घर में आयोजित किया जाता है इस समारोह में विवाह के दोनों परिवारों की उपस्थिति में दूल्हे को मस्तक पर तिलक या टीका लगाया जाता है। इस परम्परा से उनके बीच गठबंधन हो जाता है। उपहार जैसे कपड़े, फल, मिठाई और कभी-कभी दूल्हे को एक तलवार भी दी जाती है। ये औपचारिकताएं पूरी हो जाने के बाद भव्य दावत संपन्न की जाती है।
तोरण
बैंड की धुन पर नाचती -गाती बारात साथ लेकर घोड़ी पर चढ़ कर दूल्हा दुल्हन के घर पहुँचते हैं। उससे बाद सबसे पहले भीतर प्रवेश करते समय दूल्हा प्रवेश द्वार पर बंधी एक पुष्प सजावट को सात बार छूता है, तब दूल्हे को उनकी सास माथे पर दही और सरसों लगाकर बधाई देती हैं ।
सप्तपदी
विवाह समारोह में हवन मंडप सजाया जाता है जहां पर दुल्हन और दूल्हा विवाह की शपथ लेते हैं ।दोनों ही पवित्र आग के चारों ओर सात बार चलते हैं। दुल्हन को पहले तीन राउंड के लिए दूल्हे के आगे चलना होता है, जबकि दूल्हे को पिछले चार राउंड के दौरान आगे रहना होता है। इन फेरों के दौरान पंडित वेद मंत्रों का उच्चारण करते हैं । पहले तीन फेरों के समय दुल्हन अपने परिवार का हिस्सा रहती है लेकिन चौथे फेरे में बताया जाता है कि वह अब किसी अन्य परिवार की है – दुल्हन की सखियों द्वारा इस पल के भाव को पिरोता गाया जाने वाला गीत बड़ा ही सुंदर क्षण रचता है।
संगीत और नृत्य
प्रत्येक अंचल की अलग शैली के साथ राजस्थान में लोक संगीत और नृत्य की एक विशिष्ट परंपरा है। संगीत का आंतरिक गुण इसकी आस्था है जो भक्ति के साथ गाया जाता है। अधिकांश गीतों में संतों जैसे सूरदास, कबीरदास, मीराबाई और अन्य प्रसिद्ध उपासक की लोकोक्तियाँ शामिल हैं।जिसे वे अक्सर रात भर समारोहों में गाते हैं।