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  • ब्रज होली 2018 का पुनरावलोकन

    ब्रज होली 2018 का पुनरावलोकन

    ब्रज होली यानि ब्रज क्षेत्र में खेली जाने वाली होली के विभिन्न रूप हैं। लोक कलाकारों की मनभावन प्रस्तुतियां, रंगों से भरपूर सांस्कृतिक रूप में छैल छबीली होली, हास परिहास और उल्लास का आनंद लेकर ब्रज में होली मनाई जाती है जो कि अद्वितीय होती है। यह समय अपने आराध्य देवी-देवताओं को नमन करने का, लोगों को खुशियों के रंगों में भिगाने का, लुभावनी स्वर लहरियों की धुन पर नाचने, गाने का और जश्न मनाने का है। भारत में होली के त्यौहार से कुछ दिन पहले ब्रज होली का दो दिवसीय त्यौहार प्रति वर्ष फरवरी या मार्च के महीने में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 25 और 26 फरवरी को बड़ी धूम-धाम से भरतपुर, डीग और कामां में मनाया गया। यह मनोरंजन से भरपूर त्यौहार सांस्कृतिक रस के रंगों से सराबोर करने वाला और मस्ती भरा था। यदि आप उस समय वहाँ होते तो आप सोचते काश, यह मस्ती कभी समाप्त न हो।

  • रंगों और श्रद्धा का उत्सव

    रंगों और श्रद्धा का उत्सव

    इससे पहले कि हम इस वर्ष हुई सांस्कृतिक गतिविधियों और इस उत्सव की मस्ती का बखान करें, आइए इस त्यौहार के पौराणिक महत्व को समझ लें। भारत में सभी मेले-त्यौहारों में धार्मिक महत्ता विशेष रूप से गहराई तक नजर आती है। भारतीय (हिन्दू) कैलेन्डर के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला यह त्यौहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था राजस्थान के ब्रज-क्षेत्र में गुजारी थी। ब्रज होली केवल त्यौहार और उल्लास का ही अवसर नहीं है, परन्तु राधा और कृष्ण की प्रेम गाथा और रास लीला के क्षणों की यादें ताजा करने का भी अवसर होता है। ब्रज के स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि ब्रज ही वह स्थान है जहाँ भगवान कृष्ण ने अपनी सहचरी राधा के साथ पहली बार होली खेली थी और इसी भावना को महत्व देते हुए, ब्रज में होली का त्यौहार मनाना शुरू हुआ और इसी कथा को दोहराने वाला यह ब्रज होली उत्सव राजस्थान में उक्त परम्परा का निर्वहन करता प्रतीत होता है।

  • धर्म, रीति रिवाज और जश्न

    धर्म, रीति रिवाज और जश्न

    होली का त्यौहार एकता, प्रेम और भाईचारे का उदाहरण देता है जो कि भारत के लोगों के मन में सदा जीवित रहता है। प्रत्येक भारतवासी द्वारा यह त्यौहार, रस-रंग, आनंद, तन और मन को रंगों में भिगो कर, जोश के साथ मनाया जाता है। ब्रज में होली का त्यौहार सूर्योदय के साथ ही शुरू हो जाता है जब लोग पवित्र बाणगंगा नदी के पानी में स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस नदी में डुबकी लगाते हैं उन्हें अपने शरीर और आत्मा, दोनों को शुद्ध करने का चमत्कारिक अवसर और लाभ प्राप्त होता है। पवित्र स्नान के बाद लोग राधा कृष्ण की पूजा आराधना करते हैं। जैसे ही धार्मिक अनुष्ठान तथा प्रचलित प्रथागत स्तुति पूर्ण होती है, लोग रंग-बिरंगे, चमकीले वस्त्र धारण करके उत्सव मनाना शुरू कर देते हैं। उत्सव का आनंद तो अनंत ही होता है जिसमें विभिन्न प्रकार का लुभावना मदमस्त नृत्य, संगीत, लोक कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, फोटोग्राफी प्रतियोगिताएं, क्रीड़ाएं और बहुत कुछ शामिल हैं। आपको लगेगा कि काश, आपके पास और अधिक समय यहाँ बिताने और इस उल्लासमय गतिविधियों को देखने के लिए होता।

  • इस उत्सव की शुरूआत कैसे हुई

    इस उत्सव की शुरूआत कैसे हुई

    दो दिन का यह विशाल महोत्सव था जिसमें विभिन्न क्रियाकलाप प्रतियोगिताएं और प्रस्तुतियां शामिल थीं। इस उत्सव का प्रारम्भ नेचर - वॉक से किया गया, जिसमें बच्चों को भरतपुर के केवलादेव घना नैश्नल पार्क में सैर के साथ बातचीत की गई और एक सेमिनार आयोजित किया गया। अधिक परस्पर संवाद के लिए फोटोग्राफी प्रदर्शनी भी लगाई गई। खेल-कूद को अधिक जीवंत बनाने के लिए, डीग के महल में ग्रामीण खेल जिनमें कुश्ती, रस्साकशी, रूमाल झपट्टा आदि भी आयोजित किए गए। डीग के महल राजा महाराजाओं के समय के बने हुए हैं तथा बेहद प्रभावित करते हैं। इस वर्ष के ब्रज होली उत्सव में, लम्बे-चौड़े क्षेत्र में फैला यह महल जीवंत हो उठा। डीग के महल में स्टेज पर लोक संगीत और नृत्य के कार्यक्रमों द्वारा राजस्थान की असली तस्वीर पेश की गई। लोक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और जादुई धुनों के साथ ही डीग के महल में स्थित फव्वारों से रंग बिरंगे पानी में इन्द्रधनुष की सतरंगी छटा नजर आई। ग्रामीण खेलों और राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य की प्रस्तुतियों के बाद जो सर्वाधिक प्रभावशाली प्रदर्शन ‘मीरा’ एक डान्स ड्रामा प्रस्तुत किया गया, जो कि नई दिल्ली के ‘श्रीराम भारतीय कलाकेन्द्र’ द्वारा आयोजित किया गया था। मीरा एक नृत्य नाटिका- डीग के महल में ‘मीरा’ एक नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गई। भगवान कृष्ण की भक्त मीराबाई, जो कि एक रहस्यवादी कवियित्री थी, उनकी जीवनी को इस नृत्य नाटिका द्वारा दर्शाया गया। इनमें नृत्यांगनाओं की भावभीनी प्रस्तुति और संगीत द्वारा मीराबाई की आध्यात्मिक यात्रा के पहलुओं को जीवंत कर दिखाया। यह नृत्य नाटिका इतनी प्रभावशाली थी कि शुरू से अन्त तक दर्शक इसे अपलक निहारते रहे।

  • समापन-दिवस

    समापन-दिवस

    दूसरे और अन्तिम दिन, लोहागढ़ स्टेडियम, भरतपुर में ख्याति प्राप्त गायक सोनू निगम द्वारा सांस्कृतिक संगीत का कार्यक्रम पेश किया गया। सोनू निगम की प्रस्तुति बेहद भाव विभोर करने वाली थी और उन्होंने बड़े मनभावन और रसीले अन्दाज में यादगार अदायगी दी। कामां में भी विभिन्न आकर्षक रूपों में होली का यह उत्सव मनाया गया। यहाँ पर गुलाल होली, कुंज गुलाल होली, दूध दही होली, लड्डू होली और लट्ठमार होली खेली गई। इन दो दिनों के विशाल उत्सव में एक सांस्कृतिक संध्या में ’महारास’ नामक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। रंगों से भरपूर लोक संगीत, नृत्य, खेल, अन्य प्रस्तुतियों और प्रतियोगिताओं ने यह साबित कर दिया कि प्रतिवर्ष पूरे विश्व से लोग यहाँ ब्रज होली उत्सव मनाने क्यों आते हैं।

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