लारास्थान
लारा की नजरों से राजस्थान
लारा | 5 सितम्बर 2017
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सरिस्का बाघ संरक्षण केंद्र
सरिस्का बाघ संरक्षण केंद्र को कैमरे की नजर से देखते हुए और लम्हा -लम्हा प्रकृति को जीते हुए उसे छायाचित्रों में कैद करना कितना रोमांचकारी अनुभव है। मेरा यह हमेशा से सपना रहा कि वन्यजीवन को करीब से देखूं । बाघों को उनके क्षेत्र में स्वच्छंद जीते हुए उस पल को कैमरे में लेना सचमुच अविस्मरणीय है। मैं सरिस्का बाघ अभयारण्य की यात्रा के लिए सचमुच उत्सुक थी। और क्यों नहीं होऊँ, यह जीवनभर की शानदार अनुभूति है। मैं और मेरे दोस्त गुड़गांव से सरिस्का की ओर चल दिये। सच पूछिये तो बाघ को अपनी और कैमरे की नजर से देखने का मेरे जीवन का सपना आज सच होने जा रहा था।
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रूट (मार्ग)
हमने गुड़गांव - एन एच 8 - भिवाड़ी - अलवर - सरिस्का का मार्ग तय किया। यात्रा बड़ी सुखद थी क्योंकि इस मार्ग की सड़कें चौड़ी और बिना किसी अवरोध के हैं। एक जगह थोड़ा नाश्ता करने के लिए रूकने के बावजूद हमें गुड़गांव से सरिस्का आने में सिर्फ चार घंटे का समय लगा। इससे पहले कि मैं अपनी सरिस्का यात्रा का अनुभव बाँटू मैं अपने पाठकों को इस स्थान के इतिहास में झाँकने को अवसर देना चाहती हूँ।
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सरिस्का का इतिहास
सरिस्का बाघ संरक्षण केंद्र (रिजर्व) अलवर जिले का एक हिस्सा है और अरावली की मनोरम पहाड़ियों के मध्य स्थित है। वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं से समृद्ध यह अभ्यारण्य विषेष तौर पर रॉयल बंगाल टाइगर के लिए जाना जाता है। 1955 में सरिस्का को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया गया था, बाद में इसे बाघ संरक्षण केन्द्र के रूप में विकसित किया गया। 1978 में यह भारत के टाइगर प्रोजेक्ट का एक हिस्सा बना। ऐतिहासिक और भूगर्भीय दृष्टि से अति महत्वपूर्ण कई स्थल इस संरक्षक केन्द्र (रिजर्व) में है। साथ ही कई मंदिरो, किलों और मंडप के खंडहर है। कांकरवाड़ी किला इसके मध्य में स्थित है। जिसके बारे में कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को सिंहासन के उत्तराधिकार की लड़ाई में यहाँ कैद रखा था। इस किले के भीतर प्रवेश की अनुमति नहीं है। इस रिजर्व में पांडूपोल (जहाँ पांडव आये थे) में भगवान हनुमान का प्रसिद्ध मन्दिर भी है जहाँ केवल शनिवार और मंगलवार मात्र 250 रूपये शुल्क के साथ प्रवेश मिलता है। कहा जाता है कि अपने निर्वासन के दिनो में पांडव यहाँ इन वनों में घूमते थे। यहाँ पांडुपोल में वसंत विशाल चट्टानों से प्रकट होता है।
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हमारा आवास
यूँ तो सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के आसपास कई रहने के स्थान है पर हमने सरिस्का पैलेस चुना जो शहर की भीड़-भाड़ से दूर इस रिजर्व के गेट के करीब है यहां आप पंछियों की आवाजें सुन सकते हैं। हमारा होटल 3 स्टार था और यहाँ साफ-सुथरे कमरे और अच्छे खान-पान के अवसर हैं।
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सरिस्का में सफारी
सरिस्का में दो सफारी होती हैं सुबह और शाम। सफारी का समय मौसम पर निर्भर करता है। चूँकि हमने जनवरी में यह यात्रा की इसलिए सुबह 6.30 बजे से 7.00 बजे का समय बुक किया। स्थानीय लोगों का कहना है कि सुबह के समय जीव-जन्तु विहार करते हैं इसलिए बाहर नजर आते हैं । हमारे मार्गदर्शक (गाइड) निरंजन सिंह ने हमें सरिस्का और इसकी वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं के बारे में अच्छी-खासी जानकारी दी। सरिस्का के भीतर वन-क्षेत्र में शुष्क (सूखी) पर्णपाती पायी जाती है। जिसमें ढोक प्रमुख है। वृक्षों की प्रजाति का लगभग 90% क्षेत्र को कवर करती है। 881 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ बाघ संरक्षण क्षेत्र का प्रभावशाली अस्तित्व है। यहाँ पहाड़ियाँ और घाटियां है जिन पर वसंत अपनी छटा दिखलाता है। यहाँ बहुत से जीव-जन्तुओं की विविधता पायी जाती है। जिसमें शेर, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, जंगली कुत्ता, लंगूर, बंदर, भेड़िया, मोर आदि शामिल हैं। हम किस्मत वाले थे जैसे ही हमने सफारी शुरू किया पेड़ पर बैठा काला तेंदुआ दिखा। मार्गदर्शक (गाइड) ने पेड़ से थोड़ी दूरी पर वाहन धीमा कर दिया ताकि हम इसे अपने कैमरे में कैद कर सकें। आगे चलने पर हमें जंगली बिल्ली, सांभर, चीतल, हिरण नजर आये। झीलों और जलाशयों के पास पक्षी थे । पर हम बाघ से मिलना चाहते थे। सरिस्का के जंगलो ने हमे निराश नहीं किया, धूप का आनंद ले रहे बाघ शावकों का समूह मस्ती में था ,हमने उन्हें जी भर के निहारा। सचमुच सरिस्का में प्राकृतिक सुन्दरता का खजाना है और भाग्यशालियों के लिए शेर की झलक भी।