इतवास्थान
इतवा की नज़रों से राजस्थान
इतवा | 22 मई, 2018
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गणगौर तथा मेवाड़ उत्सव
मानव सभ्यता के शुभागमन के समय से ही लोगों ने सभी प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों में भाग लेना शुरू कर दिया था। समय के साथ - साथ कुछ उत्सव अधिक महत्वपूर्ण माने जाने लगे। केवल प्रसिद्धि ही नहीं अपितु इन उत्सवों का वैभव और अधिक बढ़ता गया। राजस्थान में गणगौर का त्यौहार, इन उत्सवों का एक उपयुक्त उदाहरण है।
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गणगौर का त्यौहार: यह क्या है और क्यों मनाया जाता है
मुख्यतया राजस्थान में तथा पश्चिमी और मध्य भारत में गणगौर का त्यौहार महिलाओं द्वारा हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी तथा भगवान शिव की सहचरी 'गौरी' की पूजा और अनुरंजन के लिए जाना जाता है। गणगौर शब्द दो मूल शब्दों से मिलकर बना है - गण (शिव) और गौर (गौरी या पार्वती)। गौरी, जो कि देवी हैं, जिन्होंने धरती पर जीवन की उत्पत्ति की तथा सृजन व रचनात्मकता, उर्वरता और बदलाव के लिए महाशक्तिशाली मानी जाती हैं। इसीलिए महिलाएं इनकी पूजा करती हैं और अपने वैवाहिक जीवन में सुख तथा सद्भाव के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। जबकि गणगौर का त्यौहार मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों के लिए अधिक महत्त्व रखता है। परन्तु अविवाहित महिलाएं और लड़कियाँ भी अपने लिए अच्छा वर (पति) पाने की आशा में इस त्यौहार को मनाती हैं। गणगौर की कहानी मुख्यतया पार्वती के इर्द गिर्द ही घूमती है, जिस में भगवान शिव द्वारा पार्वती को अपने पीहर से विदा करके लिवा लाने का तथा इस उपलक्ष में पार्वती के पैतृक घर से विदाई के अवसर पर भव्य रूप में आयोजित किए गए ,विदाई समारोह की कहानी है। प्राचीन उद्धरण के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान् शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए बहुत समय तक घोर तपस्या की थी। देवी पार्वती के इस दृढ़ संकल्प और भक्तिभाव ने शिव जी को प्रभावित कर दिया था।
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समारोह की प्रचुरता
गणगौर का त्यौहार, हिन्दू कैलेन्डर के माह चैत्र के पहले दिन से शुरू होता है तथा इसी माह के शुक्लपक्ष के तीसरे दिन पूरा होता है। इसी के बाद अगला त्यौहार होली का आता है। गणगौर का त्यौहार असल में 18 दिन तक चलता है, जिसमें महिलाएं उपवास करती हैं तथा प्रतिदिन सीमित मात्रा में केवल एक बार भोजन करती हैं। पावन शिव - शक्ति अर्थात् ’गण’ और ’गौरी’ की मूर्तियों को सजाया जाता है तथा पूरे अट्ठारह दिन तक लकड़ी और मिट्टी से बनी मूर्तियों की पूजा तक की जाती है। पूजा के अन्तिम दिन से दो दिन पहले ‘सिणजारा’ मनाया जाता है। जिसमें विवाहित स्त्रियों को उनके माता-पिता की तरफ से कपड़े, गहने, मिठाईयां, साज श्रृंगार का सामान, आदि दिया जाता है, जिसे वे मुख्य त्यौहार के दिन मिठाई बांट कर तथा नए कपड़े पहन-ओढ़ कर सजती - संवरती हैं। गणगौर के त्यौहार के समय हाथ पैरों पर सुन्दर, विभिन्न और विचित्र डिजाइनों में मेहंदी लगाना महिलाओं का बहुत ही लोकप्रिय रिवाज है। राजस्थान में गणगौर का त्यौहार उत्साह और बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गणगौर के त्यौहार के दौरान मेले आयोजित किए जाते हैं और भव्य जुलूस निकाले जाते हैं, जो कि इस त्यौहार के मुख्य आकर्षण हैं। वैसे तो जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, जैसलमेर, नाथद्वारा और बीकानेर क्षेत्र में मुख्य रूप से गणगौर का त्यौहार मनाया जाता है परन्तु जयपुर और उदयपुर में मनायी जाने वाली गणगौर महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय है।
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जयपुर में गणगौर का त्यौहार
गणगौर के त्यौहार की जयपुर में बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा की जाती है और सारे शहर की महिलाएं कई सप्ताह पहले से गणगौर के त्यौहार के लिए जोर शोर से तैयारियां करना शुरू कर देती हैं। जयपुर में दो दिन तक गणगौर का वैभवशाली जुलूस, सिटी पैलेस की ज़नानी ड्योढ़ी से शुरू होकर त्रिपोलिया बाजार होते हुए, छोटी चौपड़, गणगौरी बाजार, चौगान स्टेडियम और अन्त में तालकटोरा गार्डन में जाकर समाप्त होता है। इस विशाल जुलूस में शानदार सजे - धजे ऊँट, घोड़े, बैल-गाड़ियाँ, रथ, पुरानी शाही पालकियों के साथ साथ लोक कलाकारों द्वारा मनमोहक नृत्य व गीतों की प्रस्तुति भी दी जाती है जो कि इस समारोह के वैभव में चार चाँद लगा देती हैं। यह भव्य और लम्बा जुलूस इतना मनमोहक, मनोरम तथा दिलकश होता है कि इसे देखने के लिए भारत के सुदूर प्रान्तों और विदेशों से भी लोग इसमें शामिल होने के लिए आते हैं।
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उदयपुर का मेवाड़ उत्सव
उदयपुर में गणगौर का त्यौहार ’मेवाड़ फैस्टिवल’ के रूप में मनाया जाता है। उदयपुर में मनाए जाने वाले इस उत्सव के नाम के साथ साथ जयपुर में मनाए जाने वाले ’गणगौर उत्सव’ में कुछ समानताएं हैं। परन्तु कुछ विभिन्नताएं भी हैं । विशेषकर दोनों जगह निकाले जाने वाले जुलूस में कुछ विविधता अवश्य दिखाई देती है। उदयपुर के ’मेवाड़ फैस्टिवल’ में तीन दिन तक उत्सव का माहौल बना रहता है तथा यहाँ पर महिलाएं तीसरे और अन्तिम दिन ‘ईसर’ और ’गणगौर’ की मिट्टी से बनी मूर्तियों को लेकर, पूरे उदयपुर शहर में आकर्षक झुंड के रूप में अपना जुलूस बनाकर चलती हैं। मनमोहक गीत संगीत तथा लोक नृत्यों के साथ यहाँ पर जुलूस निकाला जाता है जो कि अपने चरम उत्कर्ष पर आकर पिछोला झील पर पहुंचता है, जहाँ से सुन्दर सजीली नावों में बैठकर ’मेवाड़ फैस्टिवल’ का शुभारम्भ किया जाता है। उदयपुर में यह पर्व, यह उत्सव और भी कई प्रकार के रोमांचकारी झूले, सवारियाँ, स्वादिष्ट और मुँह में पानी लाने वाले मीठे व चटपटे व्यंजनों का भी मजा देता है। इस उत्सव के दौरान जीवंत और उत्साहपूर्ण गीत संगीत और नृत्य, वाद्य - वृन्द की रचनाओं की प्रस्तुतियाँ भी देखने लायक होती हैं। इस दौरान मेले में सजी मेहंदी लगाने की दुकानों पर महिलाएं और नवयुवतियां लाइन लगा कर अपनी बारी का इन्तजार करती दिखाई पड़ती हैं, जो कि इस अवसर पर एक सहज दर्शनीय नजारा है। पर्यटन विभाग द्वारा उत्सव के दौरान शाम के समय कई तरह की सांस्कृतिक गतिविधियां तथा मनोरंजक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष तौर पर विविध परिधान पहनने की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिससे कि वे इस उत्सव के विभिन्न रंगों और यहाँ की संस्कृति को नजदीक से देख सकें और समझ सकें। जयपुर और उदयपुर में ’गणगौर’ और ’मेवाड़ उत्सव’ मनाने के लिए नाम तथा रीति- रिवाज अलग अलग हो सकते हैं, परन्तु इस उत्सव की धार्मिक महत्ता, पृष्ठभूमि तथा सामाजिक महत्त्व का सन्देश सब जगह लगभग एक जैसा है। विवाह और उससे सम्बन्धित रीति-रिवाज, भारत में केवल सामाजिक संस्था या दृष्टांत नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर और पवित्र सामाजिक कार्यकलाप है तथा जिसे मानव जाति के साथ साथ भगवान ने भी साझा किया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ जाएं, कौन से उत्सव में शामिल हों, परन्तु इस समारोह का प्रभाव देशव्यापी, सर्वत्र, जादुई, मंत्रमुग्ध तथा मोहित कर देने वाला है।