द्रष्टिस्थान
द्रष्टि की नज़रों से राजस्थान
द्रष्टि | 21 फरवरी 2018
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पतंग उत्सव के अवसर पर जयपुर के रंग देखें
जब तक आप राजस्थान के रंगीले, शानदार उत्सवों में न डूब जाएं, यानी जब तक आप इन उत्सवों का हिस्सा न बनें तो समझिये आपने भारत के उत्सवों के सही रंग ही नहीं देखे। यहाँ के मेले और त्यौहार इस राज्य की संस्कृति में अन्दर गहराई तक रचे बसे हैं और जब इन मेले त्यौहारों के प्रदर्शन की बारी आती है तो जयपुर इन्हें अप्रत्याशित रूप से बड़े जोश के साथ प्रदर्शित करता है। भारत के अन्य शहरों के पारम्परिक रीति रिवाजों तथा उत्सवों के मुकाबले, ‘पिंकसिटी’ के आनन्द से भरपूर उत्सव अपनी अलग ही मिसाल बन गए हैं। जयपुर का पतंग उत्सव उन्हीं में से एक है जो कि देशी व विदेशी पर्यटकों को सर्वाधिक संख्या में आकर्षित करता है।
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यह सब यहाँ की संस्कृति में है
इस शाही राज्य (जो कभी रियासत था) के रीति-रिवाज और आतिथ्य यहाँ की संस्कृति में कूट कूट कर भरे हुए हैं। मेहमान नवाजी यानी आतिथ्य, आदर, सत्कार यहाँ के लोगों की ख़ासियत है। अतिथियों के स्वागत के लिए, यहाँ के लोग हमेशा गर्मजोशी दिखाते हैं, वहीं यहाँ का पर्यटन विभाग अतिथियों को प्रसन्न करने, उनका मनोरंजन करने के लिए, यहाँ की कला और संस्कृति का अनुभव कराने के लिए, विशेष प्रबन्ध करता है। प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में पर्यटन विभाग (राजस्थान सरकार के अधीन) द्वारा ’पतंग उत्सव’ का आयोजन करता है जिसके जोश और रंगों में पर्यटक आत्मसात होते हैं और उसमें भागीदारी कर उल्लासित होते हैं। प्रत्येक वर्ष मकर सक्रान्ति के अवसर पर 14 जनवरी की शाम को जयपुर के ’जलमहल की पाल’ पर, पतंग उत्सव, आयोजित किया जाता है।
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एक रंगबिरंगा चित्रफलक (कैनवास)
इस जीवंत उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं और अपने साथ जीवन पर्यन्त न भूलने वाली यादें लेकर जाते हैं। यहाँ पहुँचते ही आपको पतंगों के रूप में बनी रंगोली, आकाशीय परिदृश्य को धरती पर उजागर करती नजर आएगी। नीली, लाल, हरी, नारंगी रंग की, गुलाबी, गेरूए रंग की, छोटी बड़ी सभी आकार और रंगों की पतंगें, इस स्थल को रंगीन कर देती हैं लोगों में उत्सुकता और जोश भर देती हैं। यदि आप ग़ौर से देखें तो आपको आकाश में दो प्रतियोगियों के बीच में द्वन्द्व युद्ध चलता हुआ दिखाई देगा। जब दो पेशेवर अनुभवी प्रतिभागियों की टीमें पतंगबाजी में मुक़ाबला करती हैं तो देखने का मज़ा और भी बढ़ जाता है। ’इस दोस्ती भरी दुश्मनी’ को देखने के लिए पर्यटक, पतंगों के रंग बिरंगे इन्द्रधनुषी आकाश को उत्साहपूर्वक देखते हैं और साथ में जयपुर की प्रसिद्ध और मज़ेदार गज़क, तिल के लड्डू, फीणी और कुरकुरी पकौड़ियाँ मज़े ले लेकर खाते हैं। जब राजस्थानी गीत-संगीत तथा लोक नृत्यों का कार्यक्रम शुरु होता है, जिसमें कालबेलिया मयूर/पीकॉक डान्स आदि लोक कलाकारों द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं तो आप इस मनोरंजन और उत्सव के मोहपाश में बंध जाते हैं।
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शहर के अनुभव
मकर संक्रान्ति (उत्तरायण) के इस शुभ अवसर पर पतंगबाजी का उत्सव बड़े सवेरे ही शुरू हो जाता है। इस पल का बड़े दिनों से इन्तजार कर रहे लोग, सुबह 6 बजे उठ जाते हैं और 7-8 बजे से उल्लास भरे माहौल में इस जश्न का शुभारंभ करते हैं। पुराने शहर में अधिकतर लोग, अपनी अपनी छतों पर और कभी-कभी दोस्तों की छतों पर बच्चे, बूढे़ सभी चिल्ला-चिल्ला कर एक दूसरे को पतंग लड़ाने के लिए ललकारते हैं। कुछ घन्टों में ही पूरा आकाश, रंग-बिरंगी, विभिन्न आकारों की पतंगों से भर जाता है। यह उत्सव अपने उत्कर्ष पर तब पहुँचता है जब सौ पतंगों की एक लड़ी, जिसमें साइज़ के हिसाब से, छोटी से बड़ी तक पतंगें एक ही डोर में बंधी हुई आकाश की ऊँचाइयों को छूने के लिए रवाना की जाती हैं। पतंगबाज़ी का जोश सूर्यास्त के बाद भी समाप्त नहीं होता क्योंकि सूरज ढलने के बाद, आकाश में आपको पतंगों के स्थान पर जगमगाती, लहराती कन्दीलें (पतंग के रंग बिरंगे कागज से बनी गोल, चौकोर तथा कई अन्य रूपों में तैयार की गई लालटेन जिनके भीतर मोमबत्ती या दीपक रख कर, डोर से बाँध कर उड़ाया जाता है) नजर आएंगी। और इसके बाद जोरदार आतिशबाजी से आकाश चमक ठता है। जैसे ही यह जोश भरा उत्सव समापन पर आता है, आपको ऐसा लगने लगता है कि अभी तो सिर्फ यहाँ के शानदार आतिथ्य और उल्लास की एक झलक ही देखी है, अभी तो देखने को और घूमने के लिए बहुत कुछ बाक़ी है।