हमारे बारे में
राजाओं की भूमि राजस्थान शौर्य ,साहस ,गौरव और सम्मान का पर्याय है। यहाँ के चप्पे -चप्पे पर युद्ध और संघर्ष की ऐतिहासिक कहानियां और प्रेम कथायें अंकित हैं । यहाँ के गीतों में रची -बसी अपनी युगयुगीन युद्ध गाथाओं की महक के साथ यह खूबसूरत क्षेत्र आज भी सैलानियों का एक अलबेला ठिकाना है। अतीत के अवशेषों की ख़ोज करने वाले ही नहीं वरन रोमांच में दिलचस्पी रखने वाले यात्री भी यहाँ के सुनहरी और शांत आनंदमय माहौल के ताने - बाने से आह्लादित होते हैं । राजस्थान की यात्रा पर चलिए, खोजिए प्राचीन और नवीन राजस्थान को ,जो भारत का एक जगमगाता अनमोल रत्न है.
इतिहास के पन्नों से
राजपूताना की शुरूआत गुप्त साम्राज्य के विघटन से हुई है, इसमें कई रियासतों का समूह है। राजपूतों के साहस और अपने धरा के प्रति प्रेम और सम्मान ने हमेशा मज़बूती से मुगल साम्राज्य के आक्रमणों का सामना किया..
18 वीं शताब्दी में, मुगल साम्राज्य को एक बड़े झटके का सामना भी करना पड़ा क्योंकि उस समय अंग्रेज़ भारत में पैर पसार चुके थे। अधिकांश रियासतों ने अपना स्वतंत्र शासन किया। लेकिन स्वतंत्रता के समय, राजपूताना में 18 मुख्य रियासतें, दो सामंत और एक ब्रिटिश शासित अजमेर-मेरवाड़ प्रांत थे।
1950 के दशक में इन 18 प्रांतों को एकजुट कर एक राज्य में विलीन कर दिया गया और सवाई मान सिंह द्वितीय, जयपुर के महाराजा को राजप्रमुख बना दिया गया। आज राजस्थान में 33 जिलें हैं जो कुल मिलाकर 3,42,293 वर्ग किमी क्षेत्र में हैं।
तलरूप
राजस्थान का समूचा रूप भिन्न है और पूरे राज्य में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक फैली अरावली पर्वेत श्रृंखला द्वारा विभाजित है। पूर्व में अपेक्षाकृत उपजाऊ भूमि और दूसरी तरफ उत्तर-पश्चिम में बंजर क्षेत्र है। राजस्थान की स्थलाकृति रेतीले रेगिस्तान और विपुल वनस्पति का मिलाजुला रूप है। यह महान भारतीय थार रेगिस्तान और चंबल नदी का घर है जो इस क्षेत्र में जल की पूर्ति करता है |
आधारिक संरचना
कला और उद्योग
राजस्थान भारतीय संस्कृति के वैभव का द्वार है ! राजस्थानी सभ्यता, संस्कृति और कलाकृतियाँ इसकी साक्षी हैं । पत्थर,मिट्टी, चमड़े, ऊन, लकड़ी, लाख, कांच, पीतल,चांदी, सोना और यहाँ के वस्त्र , बस नाम लीजिये और राजस्थानी शिल्प उद्योग में वह अपने सुंदर स्वरुप में मिल जायगा।यह कला न केवल बड़े पैमाने पर राज्य में रोजगार लाती है बल्कि पीढ़ी -दर -पीढ़ी चले आ रहे पारिवारिक कारोबार को अक्षुण्ण रखने का मार्ग भी प्रशस्त करती है।
ताल और अनुगूंज
शाही दरबारों में जन्मी और फली -फूली कला की विरासत से समृद्ध राजस्थान विविध संगीत और कला रचनाओं की जन्मभूमि भी है। सजी –धजी रंगीन पोशाक में नर्तकों के समूह पारंपरिक तत वाद्ययो की आवाज़ से निकली मधुर धुनों पर थिरकते हैं और पृष्ठभूमि में स्वर्णिम कनक और लालिमा युक्त थार रेगिस्तान का आसमान उसे पूर्णता प्रदान करते हैं ,और तब समृद्ध विरासत यहाँ की लोक कथाओं के ताने -बाने में जीवंत हो उठती है। इस ग्राम्य लय-गूंज में राजस्थान के गौरवमयी स्वरूप की सच्ची झलक मिलती है । यहाँ कण –कण में राजपूताना शौर्य और वीरता की झांकी प्रतिध्वनित होती है.
स्थापत्यकला
राजस्थान का हर नगर अलग रंग में रंगा है ,प्रत्येक की समृद्ध संस्कृति एवं अद्भुत शिल्प स्थापत्य है। यह किसी भी शहर का परिचय हो सकता है ,चाहे वह जयपुर की गुलाबी रंगत हो, जोधपुर के राजसी नीले की आभा या जैसलमेर की सुनहरी दमक ।
लोग
कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी" यह माना जाता है कि राजस्थान में बोली, भोजन, पानी और पगड़ी हर 12 कोस पर बदल जाती है।
मारवाड़ी पश्चिमी राजस्थान में, जयपुरी या ढूंडाड़ी पूर्व और दक्षिणपूर्व में, अलवर में मेवाती, भरतपुर में ब्रजभाषा, उदयपुर में मेवाड़ी और ये सूची इसी प्रकार अनवरत चलती जाती है।
स्वतंत्र रूप स्थापित और तेजी से प्रगति की और बढ़ते इस राज्य में विभिन्न संस्कृतियों और जातियों की विविधता अनायास ही देखने को मिलती है। आधुनिक शहरीकरण के बाद भी राजस्थान के निवासी अभी भी अपनी परम्परा से जुड़े हुए हैं। बेशक ध्यान रखियेगा, राजस्थान में उनका आतिथ्य ,मान –मनुहार और सरल व्यवहार कहीं आपका जी न चुरा ले ....
भोजन
राजस्थान के लजीज व्यंजनों का स्वाद भुलाए नहीं भूलता / आपको चटकारे लेने को विवश कर देता है। ये शुद्ध स्वादिष्ट व्यंजन राजपूताना संस्कृति को मुखरित करते हैं। बोली की तरह, राजस्थान में भोजन भी हर कुछ मील की दूरी पर अलग रूप लिए मिलता है ।हालांकि, सबसे प्रसिद्ध व्यंजन अभी भी दाल-बाटी-चूरमा, लाल और सफेद गोश्त/मांस, सोयेता और लहसुन-की- चटनी हैं जो आपके भोजन को पूरा करती हैं। राजस्थान में पहले युद्ध से उपजी परिस्थितियों और वनस्पति की कमी के कारण महिलाएं लंबे समय तक संरक्षित रख सकने वाले व्यंजन तैयार करती थी।और वही यहाँ के निराले स्वाद का प्रतीक बना । देश में आधुनिकीकरण से पूरे विश्व भर के फल और सब्जियां राज्य में आसानी से उपलब्ध हैं। प्रमुख शहरों में अंतरराष्ट्रीय भोजन की भी कई दुकानें हैं।
राजस्थान की राजसी पहचान
राजस्थान के शाही घरानों में आज भी उसी राजसी ठाठ-बाठ की बानगी देखी जा सकती है जो कभी उनके वैभवशाली अतीत की पहचान थी।बीते युग की भव्य और समृद्ध जीवन शैली समय के साथ बदल गई पर मिटी नहीं।
मेवाड़ राजवंश
अल्सिसार का शाही परिवार
खेतड़ी राजा के रूप में भी जाना जाने वाले अल्सिसार के शाही परिवार के 16वें वंशज अभिमन्यु सिंह हैं। जयपुर के गुलाबी नगर और रणथंभौर में एक हवेली भी उनके स्वामित्व में है। इसके साथ ही वे एक वार्षिक ई डी एम त्यौंहार ........के सह-प्रायोजक भी हैं।
जोधपुर का शाही परिवार
जोधपुर का शाही परिवार कुछ किलों और महलों के अलावा दुनिया के सबसे बड़े निजी स्वामित्व वाले निवास स्थल उदय भवन पैलेस के स्वामी हैं ।.
बीकानेर के शाही परिवार
बीकानेर के महाराजा डॉ. करणी सिंह जी की राजकुमारी राज्यश्री कुमारी, शाही परिवार की वर्तमान वारिस हैं । राजस्थान में कई धर्मार्थ ट्रस्टों की संस्थापक और अर्जुन पुरस्कार विजेता की अध्यक्ष, राजकुमारी राजेश्री कुमारी ने अपने वंश का नाम रोशन किया है। वह शानदार महल और ऐतिहासिक होटल लालगढ़ महल का एकमात्र स्वामित्व रखती हैं।